राजेश श्रीवास्तव
इस सप्ताह एक ऐसी खबर आयी जो मीडिया की सुर्खियां बनने से चूक गयी न उसको किसी अखबार ने लगातार प्रकाशित किया और न ही किसी चैनल में वह लंबे समय तक ब्रेकिंग खबर या छह सात घंटों तक भी स्थान पा सकी। क्योंकि इस खबर में किसी को अपनी टीआरपी और पाठकों का रुझान नहीं दिख रहा था। हम बात कर रहे हैं पालघर में दो साधुओं और एक ड्राईवर की कथित भीड़ द्बारा पीट-पीटकर हत्या किये जाने की। अब इस घटना की सीआईडी जांच का ऐलान करके इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। शनिवार को जरूर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आक्रोशित हिंदू संतों के जूना अखाड़ा आदि से बातचीत का सख्त कार्रवाई के आदेश दिये। लेकिन जिस निर्दयता पूर्वक पालघर में दो बुजुर्ग साधुओं की पीट-पीटकर निर्मम हत्या कर दी गयी उसके आक्रोश में शिवाजी की धरती के लोग और हिंदू समाज जिस तरह सोता रहा वह सोचने पर यह जरूर विवश करता है कि क्या यह वही समाज है जिसने कसाब की हत्या को रोकने के लिए रात में सुप्रीम कोर्ट खुलवाया। क्या यह वही समाज है जहां निर्भया के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए सात साल तक उसकी मां को भटकना पड़ा और हत्यारों के वकील उसे फांसी के एक घंटे पहले तक सुप्रीम कोर्ट में रात भर दहाड़ते रहे। अगर किसी अन्य धर्म के अनुयायियों के साथ यह घटना घटी होती तो क्या लोग सड़कों पर नहीं होते, क्या लोग कैंडल जुलूस न निकाल रहे होते, क्या पुलिस को आक्रोश रोकने के लिए सड़कों पर लाठी चार्ज न करना पड़ता, क्या सड़कों पर आक्रोश का लहू नहीं बहता। शायद जवाब यही है कि यह सब कुछ होता लेकिन हम एक बार फिर खामोश बैठ गये और यही खामोशी का नतीजा है कि दो साधुओं को कथित भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला। कुछ लोगों ने तो इसे राजनीतिक साजिश का रंग देने की भी कोशिश की। भाजपा की ग्राम प्रधान और एनसीपी के जिला पंचायत अध्यक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी मढ़ गये।
लेकिन अब जबकि हिसा का शिकार हुए लोग संत समुदाय से हैं तो भाजपा समर्थक पुलिस की भूमिका पर, राज्य सरकार पर सवाल कर रहे हैं और वीएचपी जैसे संगठन वामपंथियों की साजिश बता रहे हैं। लेकिन यह कौन सा कानून है जो भीड़ को खुद न्याय करने पर विवश कर रहा है। अगर बच्चा चोर की अफवाह भी थी तो भी भीड़ को किसी की हत्या करने की छूट दी जा सकती है क्या ? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरूर इस मामले पर मुखर हुए और महाराष्ट्र की उद्धव सरकार को कार्रवाई करने का आदेश दिया। कहा जा रहा है कि यह पूरी घटना वहां मौजूद कुछ पुलिसकर्मियों के सामने हुई। मौके पर पुलिस पहुंच गई थी, और भीड़ को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन भीड़ ने उल्टा पुलिस पर ही हमला कर दिया। पुलिस पीड़ितों को अस्पताल ले जाना चाहती थी, तो भीड़ और उग्र हो गई। पुलिस की गाड़ी तोड़ दी। पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। किसी तरह अस्पताल लाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित किया गया। यह पूरी घटना सभ्य समाज के नाम पर तमाचा है और कानून व्यवस्था का सिर इससे नीचा हो गया है। इस मामले में सुनवाई और सजा इसी नजरिए से होनी चाहिए कि व्हाट्सऐप या किसी भी तरह के सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल अफवाह फैलाने के लिए किसने किया। इस तरह की अफवाहों से समाज में डर का माहौल बना कर कौन फायदा लेना चाहता है। भीड़ को मारने के लिए किसने उकसाया, पुलिस पर हमला करने की जुर्रत किसने की। अगर किसी पर चोरी का शक है तो पुलिस को सूचित करने की जगह कानून हाथ में लेने किसने कहा। सवाल यह भी है कि आखिर दस लोगो की पुलिस क्या 2००-25० लोगों की भीड़ को नियंत्रित नहीं कर पायी। क्या पुलिस इतनी विवश हो गयी थी।
अगर इन सवालों के आधार पर जांच हो तो सचमुच कानून का राज कायम हो सकेगा। लेकिन फिलहाल इस मामले को माब लिचिग का नाम देकर घटना को दबाने का जिस तरह प्रयास किया जा रहा है, निंदनीय है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि सबसे शर्मनाक बात ये है कि पुलिस के सामने भीड़ लोगों को मारती है, पुलिस के हाथ से छीन कर मारती है। कहीं न कहीं महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था लचर हो गई है। तो बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी घटना का वीडियो ट्वीट कर लिखा कि महाराष्ट्र के पालघर में 2 संत और उनके ड्राइवर को बड़े ही बेरहमी से लिचिग कर मौत के घाट उतार दिया गया। आज तक सारे लिबरल पूरी तरह से खामोश हैं। कोई लोकतंत्र या संविधान की दुहाई नहीं दे रहा। विश्व हिदू परिषद ने इसके पीछे वामपंथियों का हाथ बताते हुए मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। वीएचपी ने कहा है, ‘पूज्य संतों पर घात लगाकर हमला गहरे षड्यंत्र का हिस्सा लगता है, क्योंकि पहले भी इस क्षेत्र में वामपंथियों ने क्रूर हत्या की हैं। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने भी इस मामले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात कर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का आग्रह किया है। ये तमाम प्रतिक्रियाएं दर्शाती हैं कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। यह मॉब लिचिंग नहीं है। पालघर की घटना की हर हाल में निदा होनी चाहिए और इसके दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
इस घटना में कई बिंदुओं पर जांच आवश्यक है। मसलन इस भीड़ को किसने बुलाया। किसका इतना साहस हो गया कि तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। क्यों पुलिस नहीं रोक पायी। यह इतने बुर्जुग साधु किसी को बच्चा चोर दिख रहे थ्ो। सवाल बहुत हैं और जवाब एक भी नहीं। सभी को इंतजार है जवाब का।