दयानंद पांडेय
भारत का संविधान बनाया था संविधान सभा ने। अकेले भीमराव अंबेडकर भर ने नहीं। 1946 में संविधान सभा गठित हुई तो इस के 389 सदस्य थे। सच्चिदानंद सिनहा अध्यक्ष। बाद में राजेंद्र प्रसाद अध्यक्ष हुए और सदस्य संख्या घट कर 299 हो गई। 26 जनवरी, 1948 को इस पर 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए। तो क्या बाकी सदस्य लोग घास छील रहे थे? सिर्फ़ अंबेडकर ही संविधान लिख रहे थे? और बाकी लोग सिर्फ़ दस्तखत कर रहे थे?
हां, अंबेडकर प्रारुप समिति के अध्यक्ष थे। फिर यह संविधान सारे देश के लिए है। वी पीपुल आफ़ इंडिया। और कि यह संविधान भी देश में कितना प्रभावकारी है यह बात हम और आप भी जानते हैं। दूसरे, इस संविधान में इतने संशोधन हो चुके हैं, इतनी ऐसी-तैसी हो चुकी है इस की भी कुछ खबर है आप को? बस एक पहाड़ा रट लिया है कि अंबेडकर का संविधान ! साठ प्रतिशत-अस्सी प्रतिशत वाली बात लोहिया ने चलाई थी। जिस में सारे दलित, सारे पिछड़े और सारी स्त्रियां समाहित थीं। सिर्फ़ पिछड़ों और दलितों की ही स्त्रियां नहीं। लोहिया की राय में सभी स्त्रियां दलित हैं। चाहे वह किसी भी वर्ग की हों। रही बात संविधान में सब के हित की तो वह सर्वजन की ही है, बहुजन की नहीं। बुद्ध को भी ठीक से पढ़ लीजिए। और हां मनुस्मृति को भी। बिना पढ़े कौवा कान ले गया सुन कर उस के पीछे भागने का अभ्यास गुड बात नहीं है।