राजेश श्रीवास्तव
जब हम कोरोना वॉयरस की तीसरी स्टेज के मुहाने पर खड़े हंै और दुनिया के कई देशों में मचे हाहाकार को देख रहे हैं तब भी चेत नहीं रहे हंै। क्या यही भारत है। प्रधानमंत्री जी जब आपने संपूर्ण देश में लॉक डाउन का ऐलान किया था तब कहा था कि यह कफ्र्यू ही है और कफ्र्यू से भी बड़ा है तो क्या यह महज कुछ कार्यालयों को बंद करने की रस्म भर थी या कुछ व्यापारियों की रोजी-रोटी पर चोट करने की। क्योंकि न तो सड़कों पर चहलकदमी रुकी है न आवाजाही। बसों व रेलवे स्टेशनों पर आज भी सन्नाटा नहीं है। कहा जाता है कि तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलतीं।
उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र आदि के बार्डर पर जिस तरह लाखों लोगों की भीड़ जमा है न उनके चेहरों पर मास्क हैं और न सेनेटाइजर की कोई व्यवस्था। तो क्या हम ऐसे ही कोरोना की जंग जीतेंगे। क्या लॉक डाउन इसी को कहते हैं। क्यों इन लोगों को बड़ी संख्या मंे सीमा तक पहुंचने की इजाजत मिल गयी। क्या दिल्ली देश से बाहर है। क्यों इन्हें जहां थ्ो वहीं नहीं रोका गया। क्यों इन्हें यूपी सरकार बार्डर से घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था कर रही है।
क्या इतनी बड़ी संख्या में आ रहे लोगों की जांच करने की कोई व्यवस्था जमीनी स्तर पर है भी या बस प्रेस विज्ञप्तियों में है। जिस तरह बसों की छतों पर सवार लोग दिख रहे हैं। निश्चित रूप से यह कोरोना की जंग जीतने में प्रधानमंत्री जी आपके दावों की पोल खोल रहे हैं।
यहां सवाल यह भी उठता है कि आखिर उत्तर प्रदेश और बिहार आदि से इतनी बड़ी संख्या में लोग पलायन करते क्यों है। आज जब लाखों लोग सीमाओ ंपर खड़े हैं और जब इनसे बात की गयी तो यही कहते हैं कि दस से 15 हजार की नौकरी के लिए यह लोग अपना घर छोड़कर दिल्ली, मुंबई की राह पकड़ी। ऐसे में सरकारों का यह दावा कि अब उत्तर प्रदेश में ही लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध हैं।
मुख्यमंत्री का यह दावा कि यहां के लोगों को अब बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती, क्या यह तस्वीरें इसका सच नहीं खोल रहीं। एसोचैम की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2००1 से 2०11 के बीच करीब 59 लाख लोगों ने पलायन किया तो 2०11 से 2०2० के बीच माना जा रहा है कि करीब यह संख्या 7० लाख के करीब पहुंच रही है। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं और हाल के दशकों में यह सिलसिला दोगुनी तेजी से बढ़ा है।
भारतीय वाणिज्य उद्योग मंडल (एसोचैम) और थॉट आर्बिट्रेज रिसर्च इंस्टीट्यूट टारी की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। एसोचैम ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए सरकार बनने के बाद छह सूत्री एजेंडा भी बनाया था जिसे ‘एक्शन प्लान फॉर द न्यू गवर्नमेंट’ नाम दिया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं और हाल के दशकों में यह सिलसिला और तेज हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार इसे रोकने के लिए विस्थापन अथवा पलायन से प्रभावित क्षेत्रों में क्षमता विकास तथा रोजगार सृजन की जिला आधारित नीतियां बनायी जानी चाहिए। पूर्वी क्षेत्रों से चूंकि ज्यादा पलायन हो रहा है इसलिये कौशल विकास केंद्रों की स्थापना इन्हीं इलाकों में की जानी चाहिए। लेकिन इन नीतियों पर और रिपोर्ट पर कितना अमल हुआ है इसकी बानगी तो यूपी-दिल्ली की सीमाओं पर खड़ी भीड़ की तस्वीरें ही बयां करती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 2० से 29 साल आयु वर्ग के सबसे ज्यादा लोगों ने रोजगार के लिए दूसरे स्थानों पर पलायन किया जबकि 1991 से 2००1 के बीच यह आंकड़ा 29 लाख 55 हजार था। इस तरह से पलायन का आंकड़ा लगभग दोगुना हो चुका है। जबकि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार कहा है कि प्रदेश से रोजगार के वास्ते पलायन रोकने के लिये कौशल विकास कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
डिफेंस एक्सपो के माध्यम से लोगों को रोजगार दिया गया। ओडीओपी (वन डिस्टि्रक्ट वन प्रोडक्ट) योजना के तहत लोगों को उनके जिले में ही रोजगार मुहैया कराया गया। लेकिन तस्वीरें तो बिल्कुल उलट हैं। राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में पलायन का मुद्दा खासतौर से उठाया था। उत्तर प्रदेश में कृषि तथा सम्बन्धित गतिविधि क्षेत्र उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।
यह क्षेत्र अपने कार्यबल के 66 प्रतिशत हिस्से को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ-साथ कुल आय में 23 प्रतिशत का योगदान करता है। इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश घट रहा है और ग्रामीण मूलभूत ढांचा लगातार खराब होता जा रहा है।