नई दिल्ली। एक बच्ची, जो 10 दिन बाद 4 साल की होने वाली थी। अपने चौथे जन्मदिन के लिए केक लाने की तैयारियों में जुटी थी। उसकी आवाज को एक झटके में गोली मारकर हमेशा के लिए चुप करा दिया गया। आखिरी वक़्त में वो सिर्फ़ यही बोल पाई- ‘डैडी, मुझे बचा लो, मुझे बचा लो डैडी…।’ सोचिए कितना दर्दनाक मंजर होगा उस पिता के लिए जिसने अपनी बिटिया को ऐसे दम तोड़ते देखा होगा।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के एक गुरुद्वारे पर 25 मार्च को आतंकी हमला हुआ। 26 सिखों की मौत हो गई। इनमें 3 साल की तान्या और उसकी माँ सुरपाल कौल भी शामिल हैं। तान्या को याद करते हुए उसके पिता हरिंदर सिंह सोनी (40) ने बताया कि 10 दिन बाद उसका जन्मदिन था। वो चार साल की होने वाली थी। वो तो अपने जन्मदिन पर केक लाने की तैयारी कर रही थी।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस दर्दनाक पल को याद करते हुए हर राय साहिब गुरुद्वारे के कीर्तन सेवादार हरिंदर सिंह सोनी ने बताया कि कैसे एक हमले ने उनकी पूरी जिंदगी उजाड़ दी। उनका परिवार उनसे छीन लिया। वे बताते हैं कि इस हमले में उन्होंने सिर्फ अपनी बेटी तान्या और पत्नी सुरपाल कौर को ही नहीं खोया। अपने पिता निर्मल सिंह को भी खो दिया, जो कि गुरुद्वारे के मुख्य ग्रंथी थे। ससुर भगत सिंह (75), भतीजा कुलविंदर सिंह खालसा और उनकी माँ बुरी तरह घायल हो गए। हमले के समय गुरुद्वारे में मौजूद न होने के कारण वे, उनके दो बच्चे (गगनदीप सिंह, गुरजीत कौर) और चार भाई ही परिवार में अब बाकी बचे हैं।
आज पूरे परिवार की स्थिति देखकर हरिंदर कहते हैं कि मैंने अफगानिस्तान में जन्म लिया है लेकिन अब समय आ गया है कि मैं अपनी माँ, बच्चों और भाइयों के साथ ये देश छोड़ दूँ। इससे पहले कि वे भी किसी हमले में मार दिए जाएँ। वो बताते हैं कि उनकी बिटिया के सिर में गोली मारी गई थी। वो बार-बार बोल रही थी, “डैडी मुझे बचा लो, मुझे बचा लो डैडी…”
हरिंदर के मुताबिक, “उस दिन साढ़े 6 बजे रोज की तरह अरदास करने के लिए सब गुरुद्वारे में एकत्रित हुए। मैं स्टेज पर था। वहाँ 100 से ज्यादा श्रद्धालु थे। तभी एक श्रद्धालु की चिल्लाने की आवाज आई, चोर आ गए हैं, डाकू आए हैं। बस इसके बाद वहाँ हड़कंप मच गया।” वे कहते हैं कि गुरुद्वारे में 4 आतंकी घुसे और ताबड़तोड़ गोली चलानी शुरू कर दी। मैं स्टेज पर था। मेरे भतीजे ने मुझे नीचे उतारा। मगर जैसे ही मैं नीचे आया मेरी बेटी और पत्नी का शव मुझ पर आ गिरा। उनके अनुसार, आतंकियों का कहर 4 घंटे जारी रहा। इस दौरान उन आतंकियों ने कोशिश की कि हर श्रद्धालु के सिर पर गोली मारी जाए। लेकिन उनकी पत्नी और पिता के छाती में गोली लगी। इस बीच मोहर्रम अली नाम का सुरक्षा गार्ड भी भेंट चढ़ा। वो गुरुद्वारे में 5 साल से काम करता था, सबसे पहले उसे ही गोली मारी गई।
हरिंदर के अनुसार, अफगानिस्तान में करीब 80 सिख परिवार बचे हैं। ज्यादातर काबुल, जलालाबाद और गजनी में रहते हैं। इनमें से अधिकतर ने आतंकी हमले में किसी न किसी अपने को खोया है। अब शायद ही कोई परिवार यहाँ हो जिनका कोई अपना इस हमले में नहीं मरा। इसलिए सब यहाँ से जाना चाहते हैं। खुद 40 वर्ष उस देश में गुजार चुके हरिंदर कहते हैं, “पहले मुझे लगता था कि अफगानिस्तान मेरा देश हैं। पर अब नहीं। मैं यहाँ बिलकुल नहीं रहना चाहता।” उनसे जब पूछा गया कि वे कहाँ जाएँगे तो उन्होंने सिर्फ़ यही कहा, जहाँ पनाह मिलेगी चले जाएँगे पर अब यहाँ नहीं रहेंगे।