दयानंद पांडेय
इकबाल , फैज़ अहमद फ़ैज़ , जावेद अख्तर , असग़र वजाहत जैसे तमाम-तमाम नायाब रचनाकार भी अंतत: क्यों लीगी और जेहादी जुबान बोलने और लिखने लगते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र , मैथिलीशरण गुप्त , प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद , पंत , निराला , दिनकर , बच्चन , नीरज , मुक्तिबोध , धूमिल , दुष्यंत कुमार , अदम गोंडवी आदि तो हिंदुत्व की भाषा नहीं बोलते और लिखते।
भले भाकपा के महासचिव डी राजा अपनी नीचता और घृणा में कहते फिरें कि हिंदी , हिंदुत्व की भाषा है। अच्छा गजवा ए हिंद की अवधारणा का कितने बुद्धिजीवी निंदा करते हैं ? समूची दुनिया आखिर इस्लामिक आतंकवाद से क्यों दहली हुई है ? शाहीनबाग का शांतिपूर्ण धरना क्यों समूचे देश में हिंसा और दंगे की पूर्व पीठिका तैयार करता है। मुझे नहीं याद आता कि गांधी या जे पी आंदोलन ने कभी कोई हिंसात्मक आंदोलन किया हो ? हां , पुलिस की लाठियां और अत्याचार ज़रूर भुगते लोगों ने। जालियावाला बाग़ में नृशंस हत्याओं के बाद भी , तमाम अत्याचार के बाद भी गांधी आंदोलन हिंसात्मक नहीं हुआ।
कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर में गजवा ए हिंद के कायल लोगों ने क्या-क्या नहीं किया पर कश्मीरी पंडितों ने आज तक कोई हिंसा नहीं की। कभी कोई हथियार नहीं उठाया। यहां तक कि अन्ना आंदोलन में तमाम अराजक लोगों के शामिल होने के बावजूद कभी कोई हिंसा नहीं हुई। रामदेव भले सलवार समीज पहन कर भागे पुलिस से डर कर लेकिन उन के लोगों ने भी कभी कोई हिंसा नहीं की। नो सी ए ए लिख-लिख कर अपने समुदाय के लोगों के घर और दुकान बचाने की रणनीति बनाने वाले लोगों ने दूसरों की संपत्ति और जान की कीमत क्यों नहीं समझी। दिल्ली के मुस्तफाबाद , सीलमपुर , जाफराबाद जैसी जगहों को लोग खुलेआम पाकिस्तान कहते हुए क्यों गुस्सा हो रहे हैं ?
यह जिन्ना वाली आज़ादी का क्या मतलब है ?