NOTA से 15 गुना पीछे वामपंथ: दिल्ली चुनाव में लेफ्ट का सूपड़ा साफ़, JNU तक सिमटे

नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जहाँ भाजपा की लगातार आलोचना की जा रही है, वामपंथियों को लेकर कोई चर्चा नहीं चल रही। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, आम आदमी पार्टी 53.54% मतों के साथ नंबर एक पर चल रही है और पार्टी के खाते में 61 सीटें जाती हुई दिख रही हैं, भारतीय जनता पार्टी 38.78% वोट शेयर और 9 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर चल रही है। हालाँकि, पहले और दूसरे स्थानों पर चल रही पार्टियों के बीच काफ़ी बड़ा फासला है।

इस बड़ी टक्कर के बीच लोगों ने कॉन्ग्रेस को तो थोड़ा-बहुत याद भी किया लेकिन वामपंथियों को पूरी तरह भुला दिया। कॉन्ग्रेस 4.29% वोट शेयर के साथ तीसरे नंबर पर ज़रूर चल रही है लेकिन पार्टी का वोटिंग प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले गिरा है और मुस्लिम वोटर भी AAP के पाले में जाते दिख रहे हैं। कॉन्ग्रेस के वोट्स केजरीवाल की पार्टी को ट्रांसफर हुए हैं। अब आते हैं लेफ्ट पर।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में वामपंथियों और नोटा के बीच कड़ी टक्कर चल रही है। ताज़ा आँकड़ों के अनुसार, नोटा वामपंथियों से 15 गुना वोटों से आगे चल रहा है। जहाँ नोटा पर अब तक कुल 0.47% वोटरों ने भरोसा जताया है, सीपीआई और सीपीएम को मिला दें तो वो 0.03% वोटरों की पसंद बने हैं। इससे पता चलता है कि वामपंथी अब सिर्फ़ जेएनयू तक ही सीमित रह गए हैं। दिल्ली में उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं बचा है। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में उनका आधार खिसक चुका है। एक केरल में वो किसी तरह टिके हुए हैं।

कन्हैया कुमार के रूप में वामपंथ को एक चेहरा मिला है, जिसे वो बिहार में भुनाना चाह रहे हैं। कन्हैया बिहार में जहाँ भी रैली करने जा रहे हैं, जनता उन्हें मारने दौड़ रही है। कहीं अंडे-मोबिल तो कहीं जूते-चप्पलों से उनका स्वागत किया जा रहा है। वामपंथी भले ही भाजपा की हार से ख़ुश हो जाएँ, उनकी ख़ुद की पार्टी का क्या हाल है- इस पर कोई सवाल नहीं कर रहा। स्पष्ट है, वामपंथी विचारधारा को पूरी तरह, सिरे से नकार दिया गया है।

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