नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के पूरे नतीजे आने में तो अभी कई घंटे लगेंगे, लेकिन रुझानों से तस्वीर लगभग साफ हो गई है. आम आदमी पार्टी 58 सीटों और बीजेपी 12 सीटों पर आगे है. कांग्रेस के खाते में एक बार फिर शून्य आता दिख रहा है. यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति है जो कुछ साल पहले ही शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 साल शासन कर चुकी है.
1998 में हुई थी शीला युग की शुरुआत
साल 1998 का चुनाव दिल्ली में कांग्रेस के उभार की शुरुआत थी. इन चुनाव में महंगाई एक प्रमुख मसला था और ऐसा कहा जाता है कि प्याज की महंगाई ने बीजेपी की सरकार गिरा दी. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. शीला दीक्षित के उभार की शुरुआत भी यहीं से हुई और वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं. उसे करीब 48 सीटें मिलीं. सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली बीजेपी हार गई और उसे महज 15 सीटें मिलीं. बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले.
2003 में फिर कांग्रेस राज
साल 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर जबरदस्त जीत मिली थी. उस चुनाव में कांग्रेस ने 47 सीटें हासिल कर एक बार फिर शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48.13 फीसदी वोट हासिल किए थे. दूसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 20 सीटें और करीब 35 फीसदी वोट हासिल किए थे.
साल 2008 के चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जीत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. कांग्रेस को कुल 43 सीटें हासिल हुई थीं. कांग्रेस को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे.
2013 में पलट गई बाजी
2013 के चुनाव में बाजी पूरी तरह से पलट गई. कॉमनवेल्थ घोटाले की गूंजी और अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी के उदय ने माहौल को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. विधानसभा के नतीजे त्रिशंकु रहे. भारतीय जनता पार्टी को 31, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें मिलीं.
बीजेपी को करीब 33 फीसदी, AAP को करीब 29 फीसदी और कांग्रेस को करीब 24 फीसदी वोट मिले. आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, हालांकि यह सरकार महज 49 दिन चल सकी. इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
2015 में AAP चरम पर
साल 2015 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे खराब प्रदर्शन वाले वर्षों में था. आम आदमी के उभार से विपक्ष के सारे किले ढह गए. बीजेपी को जब तीन सीटें मिल पाईं तो कांग्रेस के लिए क्या उम्मीद बची थी. कांग्रेस को मिला शून्य यानी एक भी सीट नहीं. कांग्रेस के दिग्गज नेता भी हार गए. आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें हासिल हुईं.
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में फिर AAP की सरकार बनी. आम आदमी पार्टी को करीब 54 फीसदी, बीजेपी को 32 फीसदी और कांग्रेस को महज 9.7 फीसदी वोट मिले. यानी दो साल के भीतर ही कांग्रेस के वोट प्रतिशत 24 से घटकर 10 पर आ गए.
2020 में कांग्रेस को फिर शून्य
साल 2020 का विधानसभा चुनाव भी पस्त पड़ चुकी कांग्रेस के लिए कोई उम्मीद नहीं जगा पाया. एक बार फिर कांग्रेस के खाते में शून्य दिख रहा है. खबर लिखने तक कांग्रेस एक भी सीट पर न तो आगे थी और न ही किसी सीट पर उसे जीत मिली.