अजय देवगन की फ़िल्म ‘तान्हाजी’ शुक्रवार (जनवरी 11, 2020) को बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई। फ़िल्म को अधिकतर समीक्षकों और दर्शकों का प्यार मिला। लेकिन मीडिया का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसने इसे लेकर नकारात्मकता फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फ़िल्म ने पहले दिन भारत में 16 करोड़ रुपए नेट ग्रॉस का कारोबार कर ‘छपाक’ के प्रमोशन में जुटे प्रोपेगेंडा पोर्टलों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दीपिका पादुकोण की फ़िल्म पहले दिन महज 4.75 करोड़ रुपए का ही कारोबार कर सकी। अब बात करते हैं प्रोपेगंडा पोर्टलों की, जो ‘तन्हाजी’ से खार खाए बैठे हैं।
मुस्लिमों को आक्रांता बताने पर ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की आपत्ति
‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ अपनी समीक्षा में यह याद दिलाना नहीं भूला है कि हाल ही में आई आशुतोष गोवारिकर की ‘पानीपत’ में भी ‘हर-हर महादेव’ की गूँज सुनाई दी थी और ये अब मराठा पर आधारित फ़िल्मों का ट्रेंड बन गया है। इसने ‘भगवा ध्वज’ और ‘देश प्रेम’ जैसे डायलॉग्स पर आपत्ति जताने के अंदाज़ में चर्चा की है। इस समीक्षा में क्रूर इस्लामी शासकों को बाहरी आक्रांता बताए जाने पर भी आपत्ति जताई गई है। पहाड़ों पर चढ़ते मराठा सैनिकों के बारे में भी ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ पूछता है कि ये कैसे संभव है?
अंत में इस समीक्षा में फ़िल्म को सपाट बता दिया गया है। इस समीक्षा में ये दर्द साफ़-साफ़ दिखता है कि आखिर औरंगज़ेब, गद्दार उदयभान और अन्य मुस्लिम आक्रांताओं की असलियत क्यों दिखाई गई है? साथ ही एक तरह से यह सवाल भी उठाया गया है कि मराठा इतने भी वीर थे क्या? शायद अजय देवगन ने पूरा फैक्ट्स जाने बिना जेएनयू हिंसा पर टिप्पणी नहीं की, इससे वामपंथियों को जो गुस्सा आया है, उसकी बानगी इस समीक्षा में दिखती है। अगर अजय देवगन ने हिंसक वामपंथियों के बचाव में अनुराग कश्यप की तरह गालियाँ बकी होतीं तो उन्हें 5 स्टार दिए जा सकते थे।
‘स्क्रॉल’ ने अँग्रेजों के आने से पहले भारत के अस्तित्व को ही नकारा
‘स्क्रॉल’ तो अपनी समीक्षा में पहले ही घोषित कर देता है कि इतिहास में जैसा पढ़ा गया है, ये फ़िल्म वैसी नहीं है। बता दें कि ‘तान्हाजी’ फ़िल्म शुरू होते समय कई इतिहासकारों को उनके नाम के साथ क्रेडिट दिया गया है, जिनकी सलाह फ़िल्म निर्माण के दौरान ली गई थी। ‘स्क्रॉल’ लिखता है कि तानाजी की मजबूत सत्यनिष्ठा अथवा ईमानदारी बर्दाश्त से बाहर हो जाती है, सच्ची नहीं लगती। ‘स्क्रॉल’ को तानाजी और उनकी पत्नी की बातचीत भी ‘धार्मिक उपदेश’ ही लगती है। ‘स्क्रॉल’ फ़िल्म के लेखक को लेकर आपत्ति जताता है, क्योंकि मुगलों को लुटेरा दिखाया गया है, जो लोगों पर अत्याचार करते हैं।
‘स्क्रॉल’ ने अपनी समीक्षा में ये भी पाया है कि फ़िल्म में औरंगज़ेब विदेशी जैसा दिख रहा है। आश्चर्य की बात ये है कि एक-एक ख़बर को पूर्वाग्रह के साथ लिखने वाली ‘स्क्रॉल’ का कहना है कि ‘तान्हाजी’ की कहानी आज की राजनीति और पूर्वाग्रह से प्रेरित है। ‘स्क्रॉल’ ने झूठा दावा किया है कि ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ तो वर्षों बाद आया, फिर फ़िल्म में ‘स्वराज’ की बात दिखाना सही नहीं है। शायद ‘स्क्रॉल’ ये भूल गया कि भारत अथवा भारतवर्ष हज़ारों वर्षों से अस्तित्व में है और अंग्रेजों के आने से हमें अपनी पहचान नहीं मिली।
मराठा वीरों की प्रशंसा में कवियों ने ‘बलाड’ लिखे हैं। ‘स्क्रॉल’ मानता है कि इस फ़िल्म को भी कुछ उसी तरह बनाया है? क्या भारतवर्ष के हिन्दू वीरों की बहादुरी को दिखाना ग़लत है? ‘स्क्रॉल’ ने ‘छपाक’ की प्रशंसा में कसीदे पढ़े हैं। शायद इसलिए, क्योंकि दीपिका पादुकोण ने जेएनयू जाकर वामपंथियों के सरकार-विरोधी प्रदर्शन में हिस्सा लिया। दीपिका से ख़ुश वामपंथी प्रोपेगेंडा पोर्टलों ने उनकी फ़िल्म को अच्छी समीक्षा दी है, क्योंकि वामपंथियों के समर्थन में जो भी खड़ा होगा, वामपंथी मीडिया उसके पाँवों में लोटेगा।
‘द वायर’ को ॐ, जय श्री राम, भगवा, हर-हर महादेव और जय भवानी पर आपत्ति
सबसे ज़हरीली समीक्षा तो ‘द वायर’ ने की है। उसने बताया है कि इस फ़िल्म को भावनाओं की जगह ‘भगवाओं’ में बह कर बनाया गया है, जो ‘हिन्दू राष्ट्र’ को समर्थन देता है। ‘तान्हाजी’ से सबसे ज़्यादा इसी पोर्टल की सुलगी हुई है। इसने इस बात पर आपत्ति जताई है कि शिवाजी के राज्य को ‘हिन्दू साम्राज्य’ और औरंगज़ेब को ‘बाहरी आक्रांता’ क्यों बताया गया है? ‘द वायर’ ने भी अपने सौतेले भाई ‘स्क्रॉल’ की तरह भारत को कुछ राज्यों का टुकड़ा बता कर इसे एक देश के रूप में देखने से इनकार कर दिया है। अब इन्हें कौन बताए कि इस घटना से 2000 वर्ष पहले से भी पुराने समय में चाणक्य ने सम्पूर्ण भारतवर्ष की परिकल्पना की थी और इसे साकार भी किया था।
इन प्रोपेगंडा पोर्टलों का इतिहास मुगलों से शुरू होकर मुगलों पर ही ख़त्म हो जाता है। ‘द वायर’ को ‘ॐ’, ‘भगवा’, ‘हर हर महादेव’ और ‘जय श्री राम’, इन सभी चीजों से परेशानी है। क्या इन प्रोपेगेंडा पोर्टलों के लिए छत्रपति शिवाजी के ‘जय भवानी’ को ‘अल्लाहु अकबर’ कर दिया जाए? ‘द वायर’ ने अपनी समीक्षा में नरेंद्र मोदी और सीएए प्रोटेस्ट को भी घुसेड़ा है, जबकि ‘तान्हाजी’ के प्री-प्रोडक्शन का कार्य जुलाई 2017 से ही शुरू हो गया था, जब कैब या सीएए ख़बरों में भी नहीं आया था। सबसे हास्यास्पद बात तो ये है कि अंत में ‘द वायर’ ने इस फ़िल्म को मोदी-शाह के विचारों की उपज करार दिया है।
‘द क्विंट’ ने फ़िल्म को बताया मुस्लिमों से घृणा करने वाला
‘द क्विंट’ ने इस फ़िल्म को इस्लामोफोबिक करार दिया है। अर्थात इस्लाम के प्रति घृणा में बह कर बनाई गई फ़िल्म। क्या ‘हल्ला बोल’ में समीर ख़ान नामक सुपरस्टार का किरदार निभाने वाले अजय देवगन अब मुस्लिमों से घृणा करते हैं? उनकी आने वाली फ़िल्म में भी वो भारत के पहले फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम का किरदार अदा करेंगे। ऐसे में, प्रोपेगंडा पोर्टलों के ये दावे हास्यास्पद हैं। तानाजी तिलक क्यों लगाते हैं? युद्ध में हिन्दू राजा बनाम मुस्लिम शासक क्यों दिखाया गया है? गानों में ‘माँ भवानी’ और ‘शंकरा से शंकरा’ जैसे शब्दों का प्रयोग क्यों किया गया है? ‘द क्विंट’ को इस सभी चीजों से आपत्ति है।
Fools!
Those dialogues are NOT the creation of the film-makers. Those exact words are found right in the Bakhar. Do a basic research before writing reviews of historical film. https://twitter.com/TheQuint/status/1215505198698754048 …
The Quint✔@TheQuint
In one scene, Tanhaji (Ajay Devgn) tells a gathering of Hindus who were loyal to the Mughals, “khul ke Jai Shri Ram bhi nahi bol sakte (can’t even chant Jai Shri Ram openly).”
This Hindu-Muslim narrative is reinforced throughout, writes @MeghnadBose93.https://www.thequint.com/voices/opinion/tanhaji-the-unsung-warrior-bollywood-islamophobia-ajay-devgn-saif-ali-khan …
ज़हरीले पोर्टल ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए ट्विटर ट्रोल और फ़िल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर के बयान का सहारा लिया है, जिन्होंने कुछ दिनों पहले कहा था कि बॉलीवुड हिंदुत्व को बढ़ावा दे रहा है। इससे ही पता चल जाता है कि ये समीक्षा कितनी प्रासंगिक है? प्रोपेगेंडा पोर्टल ने इस पर भी आपत्ति जताई है कि इस्लामी आक्रांताओं को बुरा क्यों दिखाया गया है और स्वराज के लिए लड़ने वाले हिन्दू राजाओं को एकदम अच्छा क्यों दिखाया गया है? ‘द क्विंट’ को ये भी डर है कि कहीं इस फ़िल्म को सर्जिकल स्ट्राइक को हाइलाइट करने के लिए तो नहीं बनाया गया है?
तानाजी अच्छे क्यों हैं, गंगा-जमुनी को क्यों नहीं बढ़ावा दिया: NDTV
एनडीटीवी पहले ही लिखता है कि ये फ़िल्म आपके दिमाग के लिए सही नहीं है। एनडीटीवी लिखता है कि मुख्य किरदारों की वैधता से छेड़छाड़ की गई है। उसे जानना चाहिए कि ये एक डॉक्यूमेंट्री नहीं है, फ़िल्म है। उसे इस बात से भी आपत्ति है कि तानाजी इतने वीर और साहसी क्यों दिखाए गए हैं और ओरंगजेब की तरफ़ से लड़ने वाले उदयभान को बुरा क्यों दिखाया गया है? साथ ही आपत्ति जताई गई है कि भगवा को फ़िल्म में क्यों हाइलाइट किया गया है? एनडीटीवी को आपत्ति है कि तानाजी को नैतिक रूप से इतना सत्यनिष्ठ क्यों दिखाया गया है और गंगा-जमुनी तहजीब की बात क्यों नहीं दी गई है?
कुल मिला कर बात ये है कि वामपंथी समीक्षकों ने ‘तान्हाजी’ के जरिए अपनी भड़ास मिटाई है, क्योंकि वे चाहते हैं कि कथित गंगा-जमुनी तहजीब के लिए इतिहास से छेड़छाड़ की जाए, इस्लामी आक्रांताओं को बुरा नहीं दिखाया जाए और हमारे देशभक्त योद्धाओं का गुणगान न किया जाए। अगर इतिहास में हुए वीर भारतीय योद्धाओं के बारे में कुछ अच्छा दिखाया जाता है तो इन वामपंथी समीक्षकों को इससे आपत्ति होती है। साथ ही सभी प्रोपेगेंडा पोर्टलों ने माना है कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत का कोई अस्तित्व ही नहीं था।