शवयात्रा में भी नहीं थी राम नाम लेने की इजाजत, Tanhaji ने बताया औरंगज़ेब कितना ‘महान’

यहाँ बाकी समीक्षकों की तरह फ़िल्म की कहानी नहीं बताई जाएगी। फ़िल्म ‘तानाजी’ झूठे सेक्युलर दिखावों में नहीं फँसती। इसमें ‘अच्छा मुसलमान’ और ‘बुरा मुसलमान’ वाला कॉन्सेप्ट दिखाने से बचा गया है, जो अब तक बॉलीवुड का ट्रेंड रहा है। मराठों के ‘हर हर महादेव’ और ‘जय भवानी’ की गूँज से आपका रोम-रोम खड़ा हो जाएगा। इसे Goosebumps कह लीजिए। सबसे अच्छी बात ये है कि छत्रपति शिवाजी राजे के किरदार की गरिमा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया गया है। राजे जब स्क्रीन पर आते हैं तो हाव-भाव और दमदार आवाज़ से लगता है कि उनके किरदार को पूरी सावधानी से लिखा गया है।

अजय देवगन ने ‘सिंघम’ सरीखी फ़िल्मों में मराठी किरदार निभाया है, इसीलिए एक मराठा वीर के किरदार में वो फिट बैठे हैं। लेकिन, सैफ अली ख़ान एक ‘सरप्राइज पैकेज’ हैं, जिन्होंने उदयभान के किरदार को पूरी शिद्दत के साथ निभाया है। गाय और भेंड़ की माँस खाने वाला उदयभान। हिंदुओं को हिंदुओं के साथ लड़ाने की मुगलिया रणनीति और गद्दारों की वजह से हिंदुओं का सत्यानाश कैसे होता था, इसे भी दिखाया गया है।

औरंगज़ेब जैसा कट्टर मुस्लिम था, उसे वैसे ही दिखाया गया है। संजय मिश्रा ने कहानी को नैरेट किया है, पूरे संजीदापन के साथ। स्क्रिप्ट इतनी कसी हुई है कि इंटरवल कैसे आ गया, पता ही नहीं चला। ‘भगवा’ हमारी पहचान है, ये आपको फ़िल्म देखने पर पता चलेगा।

शिवाजी राजे की तलवार चलती है तो ब्राह्मणों का जनेऊ और लोगों का घर-बार सुरक्षित रहता है- भंसाली जैसों की फ़िल्मों में इस तरह के डायलॉग के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। मुस्लिम आक्रांताओं के डर का आलम ये था कि लोग राम नाम बोलते हुए शवयात्रा निकालने से भी डरते थे, तानाजी के किरदार में अजय देवगन का ये डायलॉग उस समय की परिस्थियों की बयान करता है।

आप जरा उस महिला के बारे में सोचिए, जो 17वीं शताब्दी में औरंगज़ेब जैसों के डर के कारण घर से बाहर तक नहीं निकल पाती थीं। ऐसी हज़ारों महिलाओं की जगह पर ख़ुद को रख कर देखिए, जो इस्लामी आक्रांताओं से आए दिन इज़्ज़त बचाते फिरती थीं। काजोल का किरदार फ़िल्म के दूसरे भाग में ऐसे उभर कर आया है, जैसी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। इमोशनल दृश्यों में इस जगह पर उनसे अच्छा अभिनय शायद ही कोई कर पाता।

तानाजी को बिना ‘Larger Than Life’ दिखाए हुए, अजय देवगन ने उनकी वीरता, बहादुरी, साहस और कारनामे को इस तरह से दिखा कर फ़िल्म के साथ पूरा न्याय किया है। एक और महिला किरदार है। नेहा शर्मा ने उस किरदार को बखूबी अदा किया है। चाहे वो किसी जीत के लिए गए राजपरिवार की महिला हो या फिर एक ऐसे योद्धा की पत्नी, जिसका पति एक ऐसे युद्ध में गया है, जहाँ से लौटने की संभावना न के बराबर है- इस्लामी आक्रांताओं के क्रूरकाल की एक अच्छी झलक मिलेगी आपको।

3,913 people are talking about this
दूसरे हाफ में अधिकतर युद्ध ही है, जो कहानी के हिसाब से आवश्यक भी था। लेकिन, वीर शिवाजी की महानता की झलकियाँ भी आपको मिलेंगी। भगवा हमारी पहचान है, भगवा हमारी स्वाधीनता का प्रतीक है और भगवा ही हमारा इतिहास एवं संस्कृति है- इस फ़िल्म से आपको पता चलेगा। शिवाजी राजे के किरदार में शरत केलकर गजब के जँचे हैं। उन्हें पता था कि वो किसका किरदार निभा रहे हैं।

सबसे बड़ी बात कि स्क्रिप्ट को कसी हुई रखने के लिए फ़िल्म की लंबाई को जबरदस्ती नहीं खींचा गया। सवा 2 घण्टे से भी कम में सब कुछ दिखा दिया गया है। अजय देवगन ने बॉलीवुड की फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली ‘पोलिटिकल करेक्टनेस’ को ठेंगा दिखा दिया है। कुल मिला कर ये मातृभूमि के लिए लड़ने वाले एक ऐसे योद्धा की कहानी है, जिसे आपको देखनी चाहिए।

अनुपम कुमार सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *