नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाने के बाद लगाई गई पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘जम्मू कश्मीर में पाबंदियों के आदेश की समीक्षा के लिए कमेटी बनेगी. यह कमेटी समय-समय पर पाबंदी की समीक्षा करेगी. सरकार पाबंदियों पर आदेश जारी करके इनकी जानकारी दे’. SC ने कहा कि अुनच्छेद 19 में लोगों को इंटरनेट की आजादी का हक है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध की तत्काल प्रभाव से समीक्षा की जाए. जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया.
इंटरनेट लोगों का मौलिक अधिकार- SC
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इंटरनेट लोगों का मौलिक अधिकार है. J&K में इंटरनेट अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता. जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर लगी पाबंदी को हटाने के लिए सरकार स्थिति की समीक्षा तत्काल करे. इंटरनेट का अस्थायी निलंबन, नागरिकों की बुनियादी स्वतंत्रता में मनमानी नहीं होनी चाहिए, न्यायिक समीक्षा के लिए खुलापन होना चाहिए. जम्मू कश्मीर में इंटरनेट निलंबन की तत्काल समीक्षा की जानी चाहिए.
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि जम्मू-कश्मीर में सरकारी वेबसाइटों और ई-बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच की अनुमति देने पर विचार करने को कहा. साथ ही कहा कि रिव्यू कमेटी द्वारा हर 7 दिनों में क्षेत्र में इंटरनेट प्रतिबंधों की आवधिक समीक्षा की जानी चाहिए. इंटरनेट को बंद करने की कार्रवाई आर्टिकल 19(2) के सिद्धांतों के अनुरूप ही होनी चाहिए.
जम्मू कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी है- सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करना होगा. आजादी और सुरक्षा में संतुलन जरूरी है. राजनीति में दखल देना हमारा काम नहीं है. जम्मू कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी है.
दरअसल, पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था. आपको बता दें कि कांग्रेस नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर लगाई गई पाबंदियों को चुनौती दी थी.
सुनवाई के दौरान गुलाम नबी आजाद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने नियंत्रण का विरोध करते हुए कहा था कि वह ये समझते हैं कि वहां राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है, लेकिन 70 लाख लोगों को इस तरह बंद करके नहीं रखा जा सकता. यह जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. राष्ट्रीय सुरक्षा और जीवन के अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिए.कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन की ओर से पेश वकील वृन्दा ग्रोवर ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में जारी पाबंदियां असंवैधानिक हैं.ऐसे मामलों में संतुलन का ध्यान रखा जाना चाहिए.
तुषार मेहता ने इंटरनेट सेवा पर लगी रोक को जायज ठहराया
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गत मंगलवार को अनुच्छेद 370 हटने के बाद से राज्य में इंटरनेट सेवा पर लगी रोक को जायज ठहराते हुए कहा था कि ऐसा न होने से अलगाववादी, आतंकी और पाकिस्तानी सेना सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जिहाद के नाम पर भड़का सकती है.मेहता ने कहा था कि यहां सिर्फ अंदरूनी शत्रुओं से ही नहीं लड़ना है, बल्कि सीमा पार के दुश्मनों से भी लड़ना है और उन्होंने इस संबंध में कई उदाहरण भी दिए थे.