राहुल कुमार गुप्त
नागरिकता बिल में संशोधन समय-समय पर देश में होते रहे हैं किन्तु मोदी-2 सरकार का यह संशोधन न्यायिक पैमानों पर एकदम खरा साबित हो रहा है, जो भविष्य के भारत को मजबूती प्रदान करने के अलावा पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्रों में पीड़ित अल्पसंख्यकों को मानव जीवन जीने के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।इस बिल पर विपक्ष द्वारा हंगामा धार्मिक उन्माद के अंधेरे में अपनी टूटी-फूटी सियासत को रफू करने जैसा है।
इसी वजह से विपक्ष, सत्ता दल को धार्मिक आधार पर देश बाँटने का आरोप लगा रही है। देश, विपक्ष की मंशा से भली भाँति परिचित हो रहा है कि उसे देश की, न्याय की और मानवता की चिंता नहीं बल्कि इस बिल के आने से उनके वोट बैंक का खिसकाव बस नज़र आ रहा है। असल विरोध और हंगामा मात्र इसीलिये हो रहा है। पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्रों बांग्लादेश, पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुस्लिमों के साथ किसी प्रकार का कोई अत्याचार नहीं होता वो स्वतंत्र हैं अपने जीवन व रोजी रोटी के लिये किन्तु वहाँ के अल्पसंख्यकों ( हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों ) के साथ हुए और हो रहे अत्याचारों से पूरा विश्व परिचित है।
अपने पड़ोस की यह गंभीर समस्या सत्तर सालों से कांग्रेस व कुछ दशकों से उसके सहयोगी दलों को नहीं दिखी।वजह थी उनका एक ही समुदाय का तुष्टीकरण और उनका मजबूत वोटबैंक! और इसी वोटबैंक के खिसकने का बेफ़िजूल डर! धारा 370 का नासूर भी किसकी देन थी? यह देश और विश्व को भलीभाँति ज्ञात है। इस नासूर का सफल ऑपरेशन मोदी-2 सरकार में संभव हो पाया। उस पर भी विपक्ष ने ऐसी बयानबाजियाँ की जो देशहित को परे कर के दलहित तक सीमित हो गयीं।
किन्तु बहुत दुर्बल पड़े विपक्ष को इस वक्त केवल दलहित के लिये वोटबैंक साधने की राजनीति तक ही सीमित रहना पड़ रहा है। राष्ट्रहित उसके लिये गौण सा हो चुका है। यहाँ नागरिकता बिल पर सियासत क्यों? जब गृहमंत्री ने विश्वास दिलाया की यह न्याय की प्रक्रिया पर समग्र रूप से खरा है। पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्रों में दुर्भावना का शिकार नाॅन मुस्लिम ही हैं न कि मुस्लिम। इस बड़ी वजह को आधार मानकर शायद यह बिल अपने नये प्रारूप पर सदन में आया है। किंतु विपक्ष इसलिये चिंतित है कि ज्यादा मात्रा में शरणार्थी मुस्लिम ही हैं और उनके नागरिक बने रहने व बनने से उनके वोटबैंक में इजाफ़ा होगा। नागरिकता बिल-2019 स्वीकृत हो जाने पर पूर्वोत्तर और पश्चिम बंगाल में शरणार्थी मुस्लिमों की संख्या में कमी आने के साथ विपक्ष के वोटबैंक में भी कमी आ जायेगी किन्तु नाॅन मुस्लिम के नागरिक बनने से कहीं न कहीं बीजेपी को भी कुछ लाभांश जरूर मिलेगा। एक तरफ सियासत का यह खेल भी जनता समझ रही है।
लेकिन बीजेपी को कुछ वक्त का मिलने वाला लाभांश बड़ी मंशा नहीं है यहाँ तो बड़ा और न्यायिक निर्णय यही है कि गैर मुस्लिमों की दशा पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्रों में कैसी है? क्या उन्हें मानवीय जीवन जीने को मिल रहा है? सत्तर सालों से वहाँ के अल्पसंख्यकों की आह, सत्तर सालों से सत्ता में रही कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को नहीं सुनाई पड़ी। उधर बिना पाॅवर के उनकी आह और चीखें एक राष्ट्रीय दल खामोशी से सुनता रहा इस वक्त का इंतेजार करते हुए कि जब वो सत्ता में आयेंगे तो इन वंचितों के साथ न्याय जरूर करेंगे। और अपनी इस सकारात्मक मंशा को वो सफल करने के लिये बहुमत में हैं। एक कारक यहाँ जरूर उन मुस्लिम शरणार्थियों को परेशान कर रहा होगा जो दशकों से तन-मन-धन से यहाँ रम गये हों। जिन्होंने इसी महान भारत को ही अपनी सरजमीं मान ली हो।
रोजी-रोटी का अधिकार तो बिना मताधिकार के भी रह सकता है। व्यापार करने के लिये और ऐसे लोगों को देश में अस्थाई तौर पर रहने का प्रावधान भी किया जा सकता है। किन्तु पहले उन लोगों का ईलाज जरूरी है जो ज्यादा गंभीर हैं और ज्यादा गंभीर हैं पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम शरणार्थी! जो काम कांग्रेस को अपने वक्त पर कर देना चाहिये था वो अगर बीजेपी कर रही है तो उसे अपनी कमजोरी छिपाने के लिये ये हंगामा भी जरूरी हो जाता है। सन् 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता केवल भारत ने निभाया और पाक ने सदा उल्लंघन किया अब पकिस्तान को इस पर बोलना हास्यास्पद है।
विपक्ष व उसके कुछ सहयोगी दल के सदस्यों ने एक बार फिर धर्म को लेकर देश में खाईं बनाने का कार्य किया है और पाक के सुर में सुर मिला रहे हैं। देश में प्रतिष्ठित एक कौम को फिर से बरगलाने का कार्य किया है। सत्ता पक्ष द्वारा अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद नागरिकता बिल में संशोधन देशहित के लिये मील का पत्थर साबित होगा। यही मजबूती सत्ता दल को पुनः सत्ता में वापसी का आमंत्रण दे रही है और विपक्ष अपना अस्तित्व बचाने के लिये देशहित को ताक पर रखते हुए हंगामा बरपा रही है।
कांग्रेस के संसदीय दल के नेता अनुच्छेद 370 के संशोधन के वक्त हताशा में अपनी अज्ञानता जाहिर करते हुए जे&के को भी पीओके की तरह माना था कि इसमें भी अंतरराष्ट्रीय विवाद है इसके लिये सोनिया जी की फटकार के बाद उन्हें माफी भी माँगनी पड़ी थी, कल लोकसभा में नागरिकता बिल-2019 पेश होने पर भी उन्होंने विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई और संविधान के अनुच्छेद -14 ( समानता के अधिकार ) का हवाला दिया। भारतीय संविधान भारत व भारत के नागरिकों के लिये है। मूल अधिकार भी भारत के नागरिकों के लिये हैं। अनुच्छेद-14 भी मूल अधिकार का हिस्सा है और विदेशियों और शरणार्थियों पर मूल अधिकारों का हवाला नहीं दिया जा सकता। संविधान संसद को संशोधन का अधिकार देता है और संसद नागरिकता बिल को लेकर उसी के तहत अपना कार्य कर रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने कहा कि राष्ट्रीयता धर्म के आधार पर तय नहीं होनी चाहिये। ऐसा कहकर वो धर्म को पुनः बीच में लेकर आ गये अगर धर्म की ही बात होती तो हिंदू के अलावा अन्य पाँच धर्मों को राष्ट्रीयता प्रदान करने का बिल में प्रावधान न होता। यहाँ बीजेपी धर्म को लेकर नहीं बल्कि न्याय को लेकर नागरिकता निर्धारित करने पर बल दे रही है।
कांग्रेस के ही दिग्गज नेता मनीष तिवारी ने भी विरोध जताया और नागरिकता बिल को भारतीय परंपरा के खिलाफ वाला बताया। यह बिल विश्व की शायद ही किसी परंपरा के खिलाफ हो बस नजरिया बदलने की जरूरत है। यह बिल पहले गंभीरतम शरणार्थियों से कम गंभीर शरणार्थियों की ओर विचार कर रहा है यह धर्म से परे न्यायिक प्रक्रिया पर आधारित है।