राष्ट्रपति कोविंद ने महाराष्ट्र में लगाया राष्ट्रपति शासन
मोदी कैबिनेट ने की थी राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा
ढाई साल शिवसेना और ढाई साल एनसीपी का हो मुख्यमंत्री,
5 साल तक कांग्रेस का होगा उपमुख्यमंत्री
मुंबई। महाराष्ट्र में सत्ता का संघर्ष अपने चरम पर है. भारतीय जनता पार्टी के सरकार बनाने से मना करने के बाद राज्यपाल के द्वारा पहले शिवसेना और अब राष्ट्रवादी कांग्रेस (NCP) को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया था. लेकिन मोदी कैबिनेट की अनुशंसा के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्य में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दी. इस तरह पिछले कई दिनों से चल रहे सत्ता संघर्ष का आज पटापेक्ष हो गया.
अभी भी जारी है बातचीत का दौर
राज्यपाल ने बीजेपी और शिवसेना के बाद एनसीपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था. एनसीपी के पास अपना दावा पेश करने का रात 8.30 तक वक्त था. इसी वजह से पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का संदेश लेकर एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिलने महाराष्ट्र गए थे.
यह है सरकार गठन का एनसीपी-कांग्रेस का फॉर्मूला
बातचीत के दौरान कांग्रेस ने सरकार गठन के लिए अपनी कुछ शर्तें एनसीपी के समक्ष रखी हैं. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस का न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर जोर है. लेकिन एनसीपी चाहती है कि कांग्रेस सरकार का हिस्सा हो ताकि राज्य को मजबूत और स्थायी सरकार दिया जा सके.
इसके साथ ही एनसीपी चाहती है कि ढाई साल महाराष्ट्र की सत्ता शिवसेना का मुख्यमंत्री चलाए और बाकी के ढाई साल एनसीपी का. इसके साथ ही एनसीपी कांग्रेस को पांच साल डिप्टी सीएम का पद भी देना चाहती है.
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर को मतगणना हुई थी. चुनावों में बीजेपी-शिवसेना की महायुति को स्पष्ट बहुमत मिला था. बहुमत मिलने के बाद भी सरकार गठन में उनकी आपस में ठन गई और दोनों ही दलों के रास्ते अलग हो गए. इसके बाद राज्य में किसी भी दल के पास बहुमत न होने की वजह से मतगणना के बाद से अब तक 19 दिन बीत चुके हैं और राज्य में सरकार गठन नहीं हो पाया है.
चुनावों बाद यह थी दलीय स्थिति
चुनावों के बाद राज्य में बीजेपी को कुल 105 सीटों पर जीत मिली थी और वह सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी. 56 सीटों पर जीत के साथ शिवसेना राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. यानी बीजेपी-शिवसेना महायुति के पास कुल 161 सीटें थी जो बहुमत के आंकड़े से काफी ज्यादा थीं. इसके बाद 54 सीटों के साथ एनसीपी जबकि चौथे नंबर कांग्रेस थी जिसे 44 सीटों पर जीत मिली थी.