रवीश कुमार ने मोतिहारी में क़दम रखा और वहाँ उनका ख़ूब स्वागत किया गया। मैं भी चम्पारण से हूँ, इसीलिए रवीश कुमार के जहाँ से उठ कर यहाँ तक पहुँचे हैं, उस पर हर चम्पारणवासी की तरह मुझे भी गर्व है। लेकिन हाँ, यहाँ तक पहुँचने के बाद उन्होंने क्या-क्या गुल खिलाए हैं, ये ज़रूर बहस का मुद्दा है। अंधविरोध में उन्होंने ऐसी-ऐसी बातें कहनी शुरू की और सभी मोदी समर्थकों को कमअक्ल, व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी के छात्र और न जाने क्या-क्या उपाधियाँ दे डाली। रवीश की हिंदी डिक्शनरी मजबूत है लेकिन उनकी भोजपुरी भी अच्छी है। वह अच्छे से अच्छे अवसर को भी कैसे अपने प्रोपेगंडा के लिए प्रयोग कर लेते हैं, इसका नमूना आगे देखेंगे।
अपने गृह प्रदेश पूर्वी चम्पारण के अरेराज पहुँचे रवीश कुमार ने बताया कि भोजपुरी उनकी ‘माई’ है। माई का मतलब माँ। अरेराज एक पावन धरती है, जहाँ सोमेश्वरनाथ महादेव विराजते हैं। इसीलिए रवीश भगवान शिव के दर्शन करने भी पहुँचे, तिलक लगाया और पूजा-अर्चना की। यही काम अगर भाजपा नेता करते हैं तो वो रवीश के निशाने पर होते हैं। उनका आरोप होता है कि वो वोट के लिए ऐसा कर रहे हैं। ख़ैर, यहाँ रवीश ने अपनी भोजपुरी डिक्शनरी में से ‘लबरई’ शब्द निकाला, जिसका अर्थ होता है झूठ बोलना और किसी को बेवकूफ बनाने के लिए इधर-उधर की बेढंगी बातें करना।
थोड़ा आप भी इस भोजपुरी भाषा का आनंद लीजिए। भले ही रवीश कुमार के मुँह से निकली हो लेकिन भोजपुरी बहुत ही अच्छी भाषा है, ज़मीन से जुडी है और भारत के दिल में बसती है। रवीश ने अरेराज में कहा- “जे हमरा दिमाग में आई से कहेब लेकिन लबरई ना कहेब। काहे कि हमरा सरकार बनावे के त नइखे। त ना हम लबरई ढिलेम आ ना रउआ लोगन लबरई लपेटेम।” दरअसल, रवीश कुमार ने बताया था कि वो दो रातों से सो नहीं पाए हैं, इसीलिए उन्हें क्या बोलना था- ये याद नहीं है। उपर्युक्त भोजपुरी पंक्तियों में वो कह रहे हैं कि वो झूठ नहीं बोलेंगे क्योंकि उन्हें सरकार नहीं बनानी है। उनका इशारा किधर था, आप समझ सकते हैं।
अच्छा हुआ कि रवीश कुमार ने यहाँ ‘लबरई’ शब्द का प्रयोग कर दिया क्योंकि इस हबड़ के द्वारा उन्हें समझने में काफ़ी आसानी होगी। आपको मैं समझाता हूँ। जब कोई व्यक्ति दो लोगों के बीच ज़मीन की खरीद बिक्री करा कर दोनों तरफ़ झूठ बोलता है और न इधर की बात उधर सही-सही पहुँचने देता है और न उधर की बात इधर, तो लोग उस व्यक्ति को ‘लबरा’ कहते हैं। उससे भी बड़े झूठे को ‘बड़का भारी लबरा’ कह सकते हैं। ऐसा हर क्षेत्र में लागू होता है। जो केवल एक पक्ष की ही बात बताए और दूसरे पक्ष की बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करे, उसे भी ‘लबरा’ कहा गया है क्योंकि वो ‘लबरई बतियाता है।’
रवीश ने अपने गृहक्षेत्र में जनता को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘लबरा लोगों’ से घबराने की ज़रूरत नहीं है। रवीश का आरोप है कि अब सरकार ऐसा प्रयास करती है कि कोई पत्रकार न बचे और इसी कारण अब पत्रकार होना बहुत मुश्किल हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इजरायल की कम्पनी को बुला कर बचे-खुचे पत्रकारों का फोन टाइप कराया जा रहा है। उनका आरोप था कि पत्रकारों को ख़त्म कर दिया गया है। साथ ही उन्होंने अपनी भाषण कला का प्रयोग करते हुए कहा कि अगर भारत सरकार के खजाने में हाथ डाल कर देखा जाए तो वहाँ ग़रीब जनता का ख़ून मिलेगा। बकौल रवीश, इसी खजाने से राजनीतिक सफलताएँ प्राप्त की जा रही हैं।
सरकार के बड़े अधिकारियों ने कहा है कि व्हाट्सप्प ने सरकार को बताया ही नहीं कि उसका सिस्टम ब्रीच किया गया है। इजरायल की जिस कम्पनी की बात हो रही है, उसकी सेवा लेने के आरोप से सरकार ने इनकार किया है। फिर भी रवीश इसका सीधा आरोप भारत सरकार पर ही लगा रहे हैं। ऐसा करते हुए दूसरों को ‘लबरा’ बताना क्या रवीश को शोभा देता है? कम से कम वो अपने जिले, अपने गाँव के कार्यक्रम को तो राजनीति और प्रोपेगंडाबजी से दूर रख सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। भारत सरकार ने प्राइवेसी ब्रीच को लेकर व्हाट्सप्प को नोटिस जारी किया है, जवाब माँगा है। फिर भी रवीश का आरोप सीधा भारत सरकार पर ही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खुन्नस के कारण रवीश अब सार्वजनिक मंचों पर भी भला-बुरा कहते हुए झूठ फैलाने लगे हैं और उलटा दूसरों को ही ‘लबरा’ बता रहे हैं। अव्वल तो ये कि इजरायल की कम्पनी और व्हाट्सप्प के कारनामों के लिए वो इस मामले में नोटिस जारी करने वाले मोदी सरकार पर दोषारोपण कर रहे हैं और साथ ही जनता को ‘लबरा’ लोगों से बच कर रहने की सलाह दे रहे हैं। रवीश कुमार को समझना चाहिए कि भोजपुरी में बोलने से भी झूठ झूठ ही रहता है, वो सच नहीं हो जाता। उनका आरोप है कि सरकार उनके फोन में ‘ढुका लाग के’ देख रही है, अर्थात छिप कर झाँक-ताक कर रही है।
इससे पता चलता है कि रवीश कुमार सोने से पहले भी अपने चादर के नीचे ज़रूर देखते होंगे कि मोदी ने कहीं कोई यंत्र तो नहीं फिट कर दिया है? अपने बिस्तर के नीचे देखते होंगे कि कहीं भाजपा ने उनके चारों पायों में चार अलग-अलग सूक्ष्म मशीनें तो नहीं फिट कर रखी हैं। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकारी खजाने से रुपए निकाल कर चुनाव जीत रहे हैं और देश-विदेश में अपना ढिंढोरा पीट रहे हैं। रवीश का तो यही मानना है। शायद रवीश कुमार को भाजपा के खजाने और सरकारी खजाने के बीच का अंतर नहीं पता। उन्हें नहीं पता कि चुनाव भाजपा लड़ती है, भारत सरकार नहीं। विदेशी दौरों पर मोदी के रूप में देश का प्रतिनिधि जाता है, भाजपा का नहीं।
रवीश का ये दर्द भी छलक आया कि पीएम मोदी ने उन्हें बधाई नहीं दी। बकौल रवीश, पीएम के होठ और हाथ दोनों ही उन्हें बधाई देने से पहले काँप गए। अर्थात, जिसे भला-बुरा कह कर रवीश अपनी पत्रकारिता की दुकान चला रहे हैं, उसी व्यक्ति से वो अवॉर्ड की बधाई लेने को भी बेचैन देख रहे हैं। अगर भारत के खजाने में ग़रीबों का ख़ून है तो क्या ये कुछ वर्ष पूर्व आई सरकार की ग़लती है? रवीश का इस दौरान मंदिरों के निर्माण से द्वेष भी छलक गया। उनका आरोप था कि शिक्षा नीति बनाने वाले मंदिर बनवा रहे हैं। क्या रवीश आँकड़ा दे सकते हैं कि भारत सरकार ने पिछले 5 वर्षों में कितने मंदिर बनवाए हैं?
क्या राम मंदिर के लिए सरकार लड़ रही है? क्या भारत सरकार राम मंदिर मामले या अयोध्या विवाद की पक्षकार भी है? फिर रवीश ऐसा क्यों कहते हैं कि सरकार मंदिर बनाने में व्यस्त है? भोली-भाली जनता को झूठ कौन परोस रहा? और ऐसे में दूसरों को ‘लबरा’ की संज्ञा देना तो उनकी इस हरकत में चार चाँद लगता है। मोदी सरकार के खजाने में ग़रीबों का ख़ून है, मोदी रवीश के फोन में झाँक-ताक कर रहे हैं, मोदी मंदिर बनवा रहे हैं और मोदी जनता के रुपए से विदेश में अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं- रवीश कुमार के पूरे सम्बोधन का सार यही था। यह देख कर लगा कि शायद अब वो भी नेता हो गए हैं, पत्रकारिता तो उन्होंने कब की छोड़ दी थी। नेताजी रवीश चम्पारण को मुबारक हो। मुझे भी, क्योंकि मैं भी उसी क्षेत्र का हिस्सा हूँ।
अनुपम कुमार सिंह