नई दिल्ली। जून की पहली तारीख, तपती गर्मी और इसी दिन सियासत में भी खूब तपिश देखने को मिली. मोदी 2.0 में कई केंद्रीय मंत्री अपना पदभार ग्रहण कर रहे थे और इसमें एक नाम था अमित शाह का. 1 जून को अमित शाह ने गृह मंत्रालय का पदभार ग्रहण किया. उसी दिन यह सवाल उठा कि अब बीजेपी का ‘घर’ कौन देखेगा. सवाल वाजिब भी था क्योंकि बीजेपी के ‘चाणक्य’ अमित शाह अब सरकार में आ चुके थे और उन्हें एक अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली थी. सरकार में उनकी भूमिका को देखते हुए जगत प्रकाश नड्डा को बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया. साथ ही बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में ये फैसला हुआ कि अगले कुछ महीने तक अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष बने रहेंगे.
लोकसभा चुनाव में पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली और इस जीत के 5 महीने बाद जब महाराष्ट्र ,हरियाणा विधानसभा के जो चुनावी नतीजे आए हैं, उसके बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या अमित शाह के सरकार में चले जाने से पार्टी को वैसे नतीजे नहीं मिल पाए. गृह मंत्रालय जैसे अहम विभाग संभालने के कारण अमित शाह पार्टी को उतना समय नहीं दे पाए जिसका असर चुनाव परिणामों पर पड़ा है. इन पांच महीनों में जैसे मौसम में बदलाव आ गया है और हल्की ठंड ने दस्तक दे दी है, क्या कुछ ऐसा ही असर बीजेपी में भी हुआ है.
महाराष्ट्र और हरियाणा में नंबर-1, लेकिन वो बात नहीं
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. महाराष्ट्र की 288 सीटों में बीजेपी को 105 और हरियाणा की बात की जाए तो बीजेपी 40 सीटों पर सिमट कर रह गई है. इन दोनों ही राज्यों में भले ही बीजेपी नंबर एक पर हो लेकिन वह अपने बलबूते सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई. इतना ही नहीं बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले भी इस बार कम सीटें मिली हैं. पिछली बार विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में बीजेपी को 122 सीटें मिली थीं. वहीं इस बार बीजेपी को केवल 105 सीटें मिली हैं. वहीं हरियाणा में पिछले चुनाव में बीजेपी को 47 सीटें मिली थीं और अपने दम पर बीजेपी ने सरकार बनाई थी, वहीं इस बार यह आंकड़ा 40 पर ही सिमट कर रह गया. इन दो राज्यों के जो नतीजे आए हैं उसके बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बीजेपी के ‘चाणक्य’ की कम सक्रियता का असर नतीजों पर पड़ा है.
बतौर गृह मंत्री अमित शाह पहले दिन से ही एक्टिव हो गए जैसे वो पार्टी में थे. एक के बाद एक वो कई फैसले ले रहे थे. कम समय में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया. यह एक ऐसा फैसला था जिसको लेकर बीजेपी लंबे समय से अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा तो करती आई थी लेकिन पूरा नहीं कर पाई थी. अमित शाह ने सदन के अंदर और बाहर इसको लेकर जो सक्रियता दिखाई उसे लंबे समय तक याद किया जाएगा. अनुच्छेद 370 को समाप्त करना ही नहीं बल्कि उसके बाद हालात को संभालना भी एक बड़ी चुनौती थी लेकिन जिस तरीके से पूरे मसले पर अमित शाह ने बारीक नजर बनाए रखी उसी का नतीजा है कि वहां हालात पूरी तरह नियंत्रण में है. 370 ही नहीं कम समय में ही ट्रिपल तलाक और एनआरसी पर भी सरकार की ओर से अहम फैसला लिया गया और यह अमित शाह की सक्रियता का ही नतीजा था.
यूं ही नहीं बन गए बीजेपी के ‘चाणक्य’
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 80 सांसदों वाले उत्तर प्रदेश का प्रभारी अमित शाह को बनाया गया. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी जिसके बाद लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कुछ तो बात है. इस जीत के बाद जुलाई 2014 में अमित शाह को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. बतौर अध्यक्ष पहले कार्यकाल में पार्टी ने कई राज्यों में ऐतिहासिक सफलता अर्जित की. जनवरी 2016 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में दोबारा से अमित शाह को चुना गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली और इस वक्त भी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ही थे. इसके बाद उनकी सरकार में एंट्री हुई और वो पार्टी को अब पहले जैसा वक्त नहीं दे पाते. ये माना जा रहा था कि गृह मंत्रालय जैसे अहम विभाग संभालने के कारण अमित शाह की पार्टी पर ज्यादा ध्यान देने की संभावना कम ही रहेगी. अब जो नतीजे आए हैं उसके बाद यह सवाल उठ रहा है बीजेपी को इस बारे में भी सोचने की जरूरत पड़ेगी.
नए अध्यक्ष के सामने बड़ी चुनौती
कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में जेपी नड्डा की चुनौती बीजेपी की जीत की लय को बरकरार रखना था. लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार महाराष्ट्र, हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. बीजेपी भले ही किसी राज्य में नंबर दो पर नहीं गई है लेकिन जीत है जबर्दस्त वाली बात भी नहीं. अकेले अपने दम पर इन दोनों ही राज्यों बीजेपी सरकार बनाने से चूक गई है. अमित शाह ने अपने कार्यकाल में बीजेपी को जिस मुकाम पर पहुंचाया है उसे बनाए रखना नए अध्यक्ष के लिए चुनौती भरा रहेगा. जेपी नड्डा अभी कार्यकारी अध्यक्ष हैं, लेकिन उनके सामने पार्टी को शीर्ष पर बनाए रखने के साथ-साथ खुद को एक सशक्त और दमदार अध्यक्ष के रूप में पेश करना होगा.