नई दिल्ली। अयोध्या मामले (Ayodhya case) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ में 34वें दिन की सुनवाई (hearing) सोमवार को होगी. शुक्रवार को 33वें दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) की ओर से वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने पुरातत्व विभाग (ASI) की रिपोर्ट के निष्कर्ष पर सवाल उठाते हुए कहा था कि रिपोर्ट की समरी में नंबरिंग के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है जबकि फीमेल डेटी के बारे में कुछ पेश नहीं किया गया. मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा था कि यह स्पष्ट करता है कि यह सटीक नहीं है. 15 पिलर (pillar) के आधार पर ASI ने निष्कर्ष निकाला था कि वहां पर मंदिर (Mandir) था, जिसमें विरोधाभास दिखता है. जस्टिस बोबड़े ने मीनाक्षी अरोड़ा से कहा था कि आप साक्ष्य अधिनियम के सेक्शन-45 पर अपनी दलीलें पेश करें. मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा था कि पुरातत्व विभाग कि रिपोर्ट (report) महज राय होती है, क्योंकि विशेषज्ञों को ही इसके तहत रखा जाता है? आमतौर पर राय को साक्ष्य अधिनियम के तहत नहीं रखा जाता जब तक सटीक तथ्य नहीं हो. ऐसे में हमारी तरफ से पेश हुए विशेषज्ञों को हाई कोर्ट (High Court) ने स्वीकार किया था. चूंकि विषय पर विशेषज्ञों की समझ न्यायिक अधिकारी या जजों से कहीं ज्यादा होती है जो सटीक तथ्यों के साथ स्वीकार की जाती है.
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा था कि हिन्दू पक्ष (Hindu side) की ओर से पेश हुए गवाहों की राय भी पुरातत्व विभाग से इतर थी. जयंती प्रसाद श्रीवास्तव, रिटायर्ड पुरातत्व अधिकारी ने विभाग की रिपोर्ट से इतर राय रखी. जस्टिस बोबड़े ने कहा था कि दोनों ही पक्षों के पास कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है. सभी पक्ष का मामला पुरातत्व रिपोर्ट के नजरिए पर टिका हुआ है. पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में कहीं नहीं कहा गया कि अमुक स्थान राम मंदिर (Ram Mandir) है. जबकि राम चबूतरे को वॉटर टैंक बताया गया है. मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा था कि साक्ष्य अधिनियम के तहत जांच रिपोर्ट में भी पुरातत्व विभाग ने प्रक्रिया को निभाया, जिसे हाईकोर्ट ने भी स्वीकारा पर अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और हाईकोर्ट के फैसले की समीक्षा कर रहा है जिसके चलते मैं विभिन्न स्तरों पर सवाल उठा रही हूं.
मीनाक्षी अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक पुराने फैसले (old decision) का हवाला देते हुए पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट (report) को गलत करार दिया था. जस्टिस नजीर ने कहा था कि पुरातत्व भी पूरी तरह से विज्ञान नहीं है और सेक्शन 45 इस पर लागू नहीं होता है. ASI रिपोर्ट की जांच की गई और आपत्तियों पर विचार किया गया. आप रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर सवाल नहीं उठा सकते क्योंकि एक कमिश्नर ने यह रिपोर्ट दी, जो जज के समान थे. इसके साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) की वकील मीनाक्षी अरोड़ा की बहस पूरी हुई.
इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) की तरफ से पेश एक और वकील शेखर नाफेड ने बहस शुरू की थी. शेखर नाफडे ने कहा था कि फारुख अहमद की ओर से दायर 1961 में निचली अदालत (lower court) का आदेश रेस ज्यूडी काटा है यानी न्यायिक समीक्षा का अंतिम आदेश. रघुबर दास ने मंदिर निर्माण के लिए सूट दाखिल किया था. जिनकी ओर से चबूतरे (Ram Chabutara) को जन्म स्थान करार देते हुए मंदिर निर्माण कि मांग की गई. उसका ब्यौरा भी उन्होंने दिया, इसका मकसद फकीरों और साधुओं की राहत से जुड़ा था. डिप्टी कमिश्नर ने 1885 में रघुबर दास के सूट पर अपना फैसला दिया था और कहा था कि चबूतरे पर मंदिर बनाने का दावा खारिज कर दिया था, ऐसे में यह रेस ज्यूडी काटा है. चीफ जस्टिस ने नफाड़े से पूछा था कि उनको बहस पूरी करने में कितना समय लगेगा. नफाड़े ने कहा था कि उनको बहस पूरी करने के लिए दो घंटे बीस मिनट का समय चाहिए अभी तो उन्होंने 45 मिनट ही बहस किया है. जिस पर चीफ जस्टिस (Chief Justice) ने कहा था कि पहले से तय शेड्यूल के अनुसार बहस नहीं हो रही है और अब शेड्यूल बदलाव नहीं होगा.