पाकिस्तान के टूटते मन्दिर और मलाला प्रलाप
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
नोबेल धारिणी सुश्री मलाला ने कश्मीर पर एक चर्चित बयान दिया है। नोबेल उत्कोच मिलने के बाद व्यक्ति का हर बयान बड़ा हो जाता है। वह कुछ भी कह दे तो लोगों को सुनना पड़ता है। हालांकि सुश्री मलाला की औकात यह है कि उनकी बात उनके अपने प्रिय देश में ही कभी नहीं सुनी जाती। यदि सुनी जाती तो वे भाग कर यूरोपीय देशों में नहीं छिपी होतीं।
वस्तुतः मलाला राजनैतिक हलाला की प्रक्रिया से गुजर रही हैं। उन्होंने बचपन में अपने देश की बहुत आलोचना की है, उनकी वजह से उनका प्रिय वतन बहुत बेइज्जत हुआ है। वह मलाला की बचपन की गलतियाँ थीं, और बचपन की गलतियाँ बड़े होने पर बड़ा परेशान करती हैं। भारत के लड़के इस बात को बखूबी जानते हैं।
असल में मलाला अब उन गलतियों को सुधारना चाहती हैं। अब वे पाकिस्तान की गिरी हुई इज्जत को तो उठा नहीं सकतीं क्योंकि कुछ कर सकने की योग्यता उनमें है नहीं। उनकी एकमात्र योग्यता यही है कि गोली लगने के बाद भी वे मरी नहीं। अब इस योग्यता के बल पर तो पाकिस्तान की इज्जत बढ़ नहीं सकती, सो पाकिस्तान को कम बुरा बताने के लिए वे भारत को अधिक बुरा बता रही हैं।
असल में मलाला एक अनपढ़ और पिछड़े देश से आती हैं। उन्हें पता नहीं कि यह खेल भारत के बच्चे तीसरी-चौथी कक्षा में ही खेल चुके होते हैं। दूसरे को मार के खुद ही रोना हमारे बचपन का प्रिय खेल रहा है, सो सुश्री मलाला हमें मूर्ख बनाने की सोचें तो मूर्ख ही कहलाएंगी।
सुश्री मलाला को कश्मीर की बड़ी चिन्ता है। वैसे सुश्री मलाला की चिन्ता के बीच एक खबर आज ही उनके देश से आयी है जहाँ सिंध प्रांत में उनके शांतिप्रिय भाइयों ने हिंदुओं का एक मंदिर तोड़ा है। ईश्वर की मूर्तियों को नाले में डाल दिया गया है। मलाला उस विषय पर कुछ नहीं बोलेंगी। उनकी सामर्थ्य ही नहीं बोलने की… असल में मलाला जैसी एक अनपढ़ लड़की इन मुद्दों पर बोल सकने की योग्यता ही नहीं रखती। उन्होंने दुनिया के सामने अपनी चोट बेंची है। उन्होंने विश्व बाजार में अपनी पीड़ा बेंची है।
दुनिया उन्हें इसी कारण जानती है कि स्कूल जाने के कारण उनके शांतिप्रिय देशवासियों ने उन्हें गोलियों से भून दिया था। बस इसी एक योग्यता के बल पर उनकी रोजी-रोटी चल रही है। यदि उनके जीवन से इस “गोलीकांड” को निकाल दिया जाय तो भारत की अठानवे प्रतिशत लड़कियाँ उनसे योग्य और बौद्धिक निकलती हैं।
वस्तुतः नोबेल और मैग्सेसे जैसे उत्कोच व्यक्ति की योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि यूरोपीय हितों को ध्यान में रख कर दिए जाते हैं। यदि मेरी बात अतिशयोक्ति लग रही हो तो स्वयं से पूछिए कि क्या सचमुच भारत में “गीतांजली” से अच्छी कोई पुस्तक नहीं लिखी गयी है? क्या सचमुच लेट सेंट टेरेसा से अधिक सेवा भावना भारत मे किसी की नहीं रही है?
खैर! यह एक बड़ा विवाद है। अभी बात सुश्री मलाला की। तो मलाला बेगम! भारत के बारे में तो आप सोचिये ही नहीं, क्योंकि जो लड़की सिर्फ पढ़ना चाहने के कारण देश निकाला झेल रही हो उसके मुह से भारत के लिए मानवता का पाठ हास्यास्पद लगता है।
चिनॉय सेठ! जिसके अपने घर सीसे के हों, वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते…