नई दिल्ली। भारत के कानूनी मामलों में अदालतें भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई करती हैं. लेकिन जम्मू कश्मीर में ऐसा नहीं होता था. वहां भारतीय दंड संहिता यानी IPC का प्रयोग नहीं होता था. लेकिन धारा 370 को हटाए जाने के बाद अब जम्मू कश्मीर में पूरे देश की तरह भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी लागू होगी. अब यहां यह समझने की ज़रूरत है कि आखिर रणबीर दंड संहिता थी क्या?
क्या थी रणबीर दंड संहिता
भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में रणबीर दंड संहिता लागू थी. जिसे रणबीर आचार संहिता भी कहा जाता था. भारतीय संविधान की धारा 370 के मुताबिक जम्मू कश्मीर राज्य में भारतीय दंड संहिता का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था. यहां केवल रणबीर दंड संहिता का प्रयोग होता था. ब्रिटिश काल से ही इस राज्य में रणबीर दंड संहिता लागू थी.
दरअसल, भारत के आजाद होने से पहले जम्मू कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी. उस वक्त जम्मू कश्मीर में डोगरा राजवंश का शासन था. महाराजा रणबीर सिंह वहां के शासक थे. इसलिए वहां 1932 में महाराजा के नाम पर रणबीर दंड संहिता लागू की गई थी. यह संहिता थॉमस बैबिंटन मैकॉले की भारतीय दंड संहिता के ही समान थी. लेकिन इसकी कुछ धाराओं में अंतर था.
रणबीर दंड संहिता में नहीं थे ये कानून
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 4 कंप्यूटर के माध्यम से किये गए अपराधों को व्याख्यित और संबोधित करती है, लेकिन रणबीर दंड संहिता में इसका कोई उल्लेख नहीं है. आईपीसी की धारा 153 CAA के तहत सार्वजनिक सभाओं या जमावड़ों के दौरान जान बूझकर शस्त्र लाने को दंडनीय अपराध माना जाता है, जबकि रणबीर दंड संहिता में इस महत्वपूर्ण विषय का उल्लेख नहीं है.
आईपीसी की धारा 195A के तहत अगर कोई किसी को झूठी गवाही या बयान देने के लिये प्रताड़ित करता है, तो वह सजा का हकदार माना जाता है, जबकि रणबीर दंड संहिता में इस संबंध में कोई निर्देश नहीं है. आईपीसी की धारा 281 के तहत जो व्यक्ति किसी नाविकों को प्रकाश, निशान या पेरक में काम आने वाले पहियों से गुमराह करता है, तो वह सजा का हकदार है, जबकि रणबीर दंड संहिता में ऐसा कुछ नहीं है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 304B, दहेज के कारण होने वाली मौतों से संबंधित है, लेकिन रणबीर दंड संहिता में इसका कोई उल्लेख नहीं है. रणबीर दंड संहिता की धारा 190 के तहत सरकार ऐसे किसी भी व्यक्ति को सज़ा दे सकती है, जो सरकार द्वारा अमान्य या जब्त की गई सामग्री का प्रकाशन या वितरण करता है. इस मामले में अपराध का निर्धारण करने का अधिकार मुख्यमंत्री को है. यह विशेष धारा पत्रकारिता, सोच, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बुरी तरह से प्रभावित करती है.
आईपीसी में नहीं हैं ये कानून
रणबीर दंड संहिता की धारा 167A के मुताबिक़ जो भी सरकारी कर्मचारी नाकरदा काम के लिए किसी ठेकेदार का भुगतान स्वीकार करते हैं, वह कानूनी तौर पर सज़ा के हक़दार हैं. रिश्वतखोरी से जुड़ी यह महत्वपूर्ण धारा आईपीसी में मौजूद नहीं है. रणबीर दंड संहिता की धारा 420A के तहत सरकार, सक्षम अधिकारी या प्राधिकरण किसी भी समझौते में होने वाले छल या धोखाधड़ी की सज़ा का निर्धारण करते हैं. ऐसा स्पष्ट व्याकरण आईपीसी में नहीं है.
रणबीर दंड संहिता की धारा 204A सबूत मिटाने या बिगाड़ने की सज़ा का साफ निर्धारण करती है. इस विषय पर ऐसा स्पष्टीकरण आईपीसी में नहीं है. रणबीर दंड संहिता की धारा 21 सार्वजनिक नौकरी का दायरा व्याख्यित करती है जबकि भारतीय दंड संहिता में इसका दायरा सीमित है.