टीम इंडिया (Team India) की विश्व कप में सेमीफाइनल की हार के बावजूद भी टीम में बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा नहीं थी. कयास जरूर लगे थे कि एमएस धोनी (MS Dhoni) संन्यास की घोषणा करेंगे, लेकिन धोनी ने ऐसा कुछ नहीं किया. वहीं विश्व कप के बाद अगले महीने शुरू होने वाले वेस्टइंडीज दौरे के लिए जब टीम इंडिया चुनी गई तब कुछ नए चेहरे तो दिखाई दिए, लेकिन ऐसा नहीं लगा कि भारतीय क्रिकेट किसी बड़े बदलाव की ओर जा रहा है. काफी समय से बहस चल रही है कि किसी देश की टीम में टी-20, वनडे टीम, और टेस्ट टीमें अलग- अलग होनी चाहिए. यह बहस टीम इंडिया के लिहाज से भी शुरू हो गई है.
दुनिया में ऑस्ट्रेलिया ऐसा देश है जहां वनडे, टी-20 और टेस्ट टीमें में बहुत ज्यादा अंतर काफी समय से वहां वनडे और टेस्ट टीम के कप्तान तो अलग ही होते हैं. कई बार टी-20 और वनडे कप्तान भी अलग ही रहे. विश्व कप के बाद आयरलैंड के खिलाफ चुनी गई इंग्लैंड की टीम में वनडे विश्व कप टीम के 10 खिलाड़ी नदारद थे. दुनिया के लगभग सभी टीमों के कई खिलाड़ी केवल टेस्ट टीम के खिलाड़ी हैं. इंग्लैंड के जेम्स एंडरसन और स्टुअर्ट ब्रॉड अब केवल टेस्ट प्लेयर रह गए हैं. ऑस्ट्रेलिया की तरह इंग्लैंड में टेस्ट और वनडे दोनों टीमों के अलग-अलग कप्तान हैं.
हर फॉर्मेंट में एक तरह के प्लेयर्स होना चाहिए
इस मुद्दे पर भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली का मानना है कि हर फॉर्मेंट में एक ही तरह के खिलाड़ियों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि टीम में लय बनी रहे और टीम के अंदर आत्मविश्वास आए. विंडीज दौर के लिए जब टीम का ऐलान हुआ था तब गांगुली ने ट्वीट कर लिखा था, “समय आ गया है कि भारतीय चयनकर्ता सभी प्रारुपों के लिए एक ही तरह की टीम चुनें. कुछ खिलाड़ी सभी प्रारुप में खेल रहे हैं. महान टीमों के पास निरंतर खेलने वाले खिलाड़ी होते हैं. यह सभी को खुश करने वाली बात नहीं है बल्कि देश के लिए सर्वश्रेष्ठ चुनने वाली बात है. कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो सभी प्रारुप में खेल सकते हैं. ”
फॉर्मेट के मुताबिक चुनी जाए टीम
गांगुली के पूर्व साथी विनोद कांबली बिल्कुल अलग राय रखते हैं. कांबली का कहना है कि फॉर्मेट के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का चुनाव किया जाना चाहिए. टीम चयन पर कांबली ने ट्वीट कर कहा था, “मैं प्रारूप के हिसाब से खिलाड़ियों को चुनने में विश्वास रखता हूं. हमें प्रारुप के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुनने चाहिए और उनके साथ खेलना चाहिए. इससे भारतीय टीम को खिलाड़ी बचाने में मदद मिलेगी और प्रबंधन खिलाड़ियों को बड़ी सीरीज के लिए उपयोग में ले सकेगा. इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया इसके मुख्य उदाहरण हैं.”
अभी समय है उस मुकाम पर पहुंचने के लिए
इस मामले में गौर किया जाए तो सबसे अहम मसला खिलाड़ियों के उपलब्ध होने और कार्यक्रमों की व्यस्तता का है. जिस तरह से पिछले कुछ समय से क्रिकेट में व्यस्तता बढ़ी है, वहीं भारत जैसे देश में भी टेलेंट की कोई कमी नहीं हैं. आईपीएल के बाद से प्रतिभाशाली क्रिकेटरों में भी काफी इजाफा हुआ है. यह देखकर लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब हर फॉर्मेट के लिए अलग-अलग टीम इंडिया देखने को मिले. लेकिन अब भी भारत के प्लेयर्स के लिए घरेलू फॉर्मेट से इंटरनेशनल लेवल पर जाना आसान नहीं है. ऐसे में कहा जा सकता है कि फिलहाल हर फॉर्मेट के लिए अलग टीम दूर की कौड़ी ही लग रही है.