नई दिल्ली। उम्मीद की जा रही है कि इस बजट में FDI के नियम और आसान किए जा सकते हैं. इसके संकेत इकोनॉमिक सर्वे में मिले हैं. सरकार का जोर इस वित्त वर्ष में ज्यादा से ज्यादा निवेश लाने पर होगा, क्योंकि इसके बिना आर्थिक गतिविधि में तेजी नहीं आएगी. साथ ही चालू खाता घाटा (करेंट अकाउंट डेफिसिट) को भी कम करना सरकार की प्राथमिकता है.
एक रिपोर्ट पर गौर करें तो, देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में पिछले छह सालों में पहली बार 2018-19 में गिरावट दर्ज की गई. दूरसंचार, फार्मा और अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेश में गिरावट से FDI एक प्रतिशत गिरकर 44.37 अरब डॉलर रह गया. उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) के ताजे आंकड़ों से यह जानकारी मिली. आंकड़ों के मुताबिक , इससे पहले 2017-18 में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (FDI) के जरिए 44.85 अरब डॉलर आए थे.
वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में विकास दर घटकर 5.8 फीसदी पर पहुंच गई थी. इस दौरान अंतर्राष्ट्रीय कारणों से कच्चा तेल भी महंगा हो गया था. अप्रैल के अंत में अमेरिका द्वारा ईरान से तेल खरीदने पर रोक लगाने के बाद भारत के लिए कच्चे तेल का आयात और ज्यादा महंगा हो गया. इसके अलावा चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव का भी असर दिखाई दिया.
वित्त वर्ष 2019 में भारत की विकास दर 7 फीसदी से भी घटकर 6.8 फीसदी पर पहुंच गई. कृषि उत्पादन, निवेश, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Industrial Production Index) में भी गिरावट दर्ज की गई है. मांग की कमी की वजह से कई सेक्टर में प्रोडक्शन में कटौती की गई है. बेरोजगारी के आंकड़े चरम पर है. ऐसे में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है और इसके लिए सरकार FDI के नियमों को आसान कर सकती है.