वाराणसी/लखनऊ। एनडीए के सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुन लिया है और वह 30 मई को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. इसी बीच श्रीकाशी विद्वतपरिषद ने प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया है कि काशी के प्रतिनिधि होने के नाते वह देव भाषा (संस्कृत) में शपथ लें.
काशी विद्वत परिषद की मंगलवार को हुई बैठक में विद्वानों ने यह फैसला लिया है. परिषद के मंत्री डॉ. रामनारायण द्विवेदी ने उम्मीद जताई कि पीएम मोदी काशी के साहित्यकार, समाजसेवी और प्रबुद्ध जनों की इच्छा का सम्मान जरूर करेंगे. उन्होंने बताया कि परिषद ने शपथ पत्र के साथ वाराणसी के पी.एम.ओ प्रभारी शिवशरण पाठक को मेल किया है और आग्रह किया कि प्रधानमंत्री को इस पत्र के बारे में बताया जाए और काशी की जनभावनाओं का सम्मान किया जाए.
कई भाषाओं में संवाद करते रहे हैं मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संवाद करने के लिए मुख्य रूप से तो हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वह जिस भी राज्य में जाते हैं तो वह क्षेत्रीय भाषा में भी जनता को संबोधित करते सुने गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी की मातृभाषा गुजराती है. इसके अलावा वह विदेशी मंचों पर अंग्रेजी में भी भाषण दे चुके हैं. संघ के स्वंयसेवक होने के कारण वह संस्कृत भी बोलते हैं.
पहले भी ली गई है संस्कृत में शपथ
इससे पहले भी संस्कृत भाषा में शपथ ली गई है. 2014 में मोदी सरकार में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत में शपथ ली थी. इसके अलावा जल एवं संसाधन मंत्री एवं झांसी से सांसद उमा भारती और चांदनी चौक से सांसद हर्षवर्धन ने भी संस्कृत में शपथ ली थी.
संसद में इन भाषाओं में ली जा सकती है शपथ
22 संवैधानिक भाषाओं में से किसी में भी शपथ ली जा सकती है. इनमें अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, उर्दू समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाएं हैं.