के विक्रम राव
आभासी प्रधानमन्त्री, दलितपुत्री बहन सुश्री कुमारी मायावती ने निर्वाचन आयोग से माँग की है कि पूजा स्थलों से चुनावी प्रचार करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाय| ऐसा अभियान पंथ-निरपेक्ष कानून के प्रतिकूल है| मायावती अपने उस्ताद काशीराम के प्रस्ताव का अनुमोदन कर चुकी हैं कि अयोध्या में शौचालय बने, न कि मंदिर अथवा मस्जिद|
यूँ इस लोकसभाई निर्वाचन में वोटार्थी इतने दबाव में हैं कि कई लोग सेक्युलर मुखौटे को फेंक कर, पक्के हिन्दूवादी बन गये| इससे भाजपाइयों के धर्म पर एकाधिकार को चुनौती मिल गई| मसलन पश्चिम बंगाल, जहाँ ममता बनर्जी ने मुसलमानों को अपना पक्का वोटर-बिरादर बना लिया था| किसी ने चुटकी भी ली कि ओसामा बिन लादेन की वे दूर की रिश्तेदार हैं| लेकिन अमित शाह की भगवा रैली (14 मई 2019) से कलकत्ता काँप गया था| अतः अब ममता ने अपनी रैलियों में चंडीपाठ कराना शुरू कर दिया है| “उलु ध्वनि” भी कराती हैं जिसमें जीभ को उलट कर “ॐ” की संगीतमय आवाज निकालते हैं| तृणमूल कांग्रेस वाले शंख भी फूँकते हैं| शुभ होता है| ममता जी ने नवदेवियों पर अपने वृहत ज्ञान को बघारते हुए दावा किया है कि अमित शाह को माता दुर्गा और माता काली में अन्तर नहीं पता| शायद गुजराती वणिक होने के नाते शाह केवल लक्ष्मी देवी को पहचानते हैं और सूत्र “शुभ –लाभ” को भी| मगर ममता बनर्जी आजकल अपनी विप्रश्रेष्ठता को खुलेआम दर्शाना नहीं भूलतीं|
भोपाल चलें| “हिन्दू आतंकवाद” नामक भाषाशास्त्रीय पद के पटु रचयिता, राघोगढ़ नरेश राजा दिग्विजय सिंह की मुठभेड़ हो गई उनसे काफी कम उम्र की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से| अब घबरा कर या आत्मरक्षा में दिग्गी राजा ने हर मंदिर और फुटपाथी शिवाले में माथा नवाया| लखनऊ के दैनिकों में उनकी तस्वीर छपी थी जिसमें सड़क किनारे कूड़ाकरकट के ढेर में मुँह मारती हिन्दुओं की माँ को राजा साहब ने तिलक लगाया, माला पहनायी और फलाहार कराया| वोटरजन इस चौपायेवाले मंजर को निहार कर मुस्करा रहे थे| अर्थात् हिन्दू सम्प्रदाय के अथक विरोधी (दिग्गी राजा) ने भी हिन्दू वोटरों के समक्ष अष्टांग टेके|
नास्तिकता के कट्टर प्रचारक द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी के प्रत्याशियों ने मदुरायी मीनाक्षी तथा कांची के कामाक्षी मंदिरों के सामने चुनावी जुलूस ले जाते समय हथेली जोड़ना चालू कर दिया| इसी पार्टी के मुख्यमंत्री स्व. एम. करूणानिधि ने देवालयों में दलित अर्चकों और पुजारियों की नियुक्ति करायी थी| सदियों से चले आ रहे पंडित-पुरोहित की परम्परा को खंडित कर दिया| कर्नाटक में पूर्व प्रधानमन्त्री देवेगौड़ा ने अपने नए लोकसभाई क्षेत्र तुमकुर में वक्कालिगा मठाधीश के चरणों की धूल लेकर अपनी पार्टी जनता दल (सेक्युलर) का चुनाव अभियान शुरू किया|
लेनिन-स्टालिन-माओ के उपासकों की भूमि केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने शबरीमाला मंदिर में युवतियों के प्रवेश पर लगी धार्मिक पाबन्दी को ख़ारिज करने वाले न्यायिक आदेश को लागू कराने में सक्रियता नहीं दिखाई| उनकी माकपा का प्रत्याशी हिन्दू वोट खोना नहीं चाहता था| उसी समय वायनाड में जब माकपा सांसद के विरुद्ध राहुल गांधी ने अपना नामांकन किया था, तो चाँद सितारोंवाला हरा परचम लहराते उनके समर्थक मुस्लिम लीगी लोग भी सेक्युलर कांग्रेसी तिरंगा ध्वज के साथ चले थे| तब राहुल के लोग मजहबी हो गये थे| बड़ा संकट आया होगा तिरुपति के बालाजी वेंकटेश्वर स्वामी के समक्ष जब हर प्रतिस्पर्धी पार्टी के उम्मीदवार ने अपनी-अपनी विजय पर चढ़ावे का वायदा किया होगा| दोनों तेलुगु देशम और राहुल-कांग्रेस साथ-साथ दैवी अनुकम्पा के इच्छुक हो गये| दोनों दृढ़ पंथनिरपेक्ष तो हैं ही|
सबसे आकर्षक और गौरतलब चर्चा हुई प्रियंका वाड्रा की जब वे महाकाल मन्दिर (उज्जैन) में आरती करने भाई के साथ गई थीं| बाद में पार्टी चुनाव अभियान शुरू किया| पारसी पिता (फिरोज गांधीपुत्र राजीव) और इसाई माँ (सोनिया माइनो) की संतान प्रियंका और राहुल यूरेशियन हैं, दो महाद्वीपों के रक्त का सम्मिश्रण| शायद ही कोई मंदिर (बाबा विश्वनाथ तथा बालाजी) छूटा हो जहाँ जाकर पंजे को जिताने की इन भाई–बहन ने मन्नत न मांगी हो| दोनों बड़े सेक्युलरवादी हैं|
लेकिन खूब प्रशंसा करनी होगी इस्लामी वोटरों की| इन लोंगों ने कोई भी समझौता करने से साफ़ इनकार कर दिया| उनके मुल्लों, मौलवियों और मौलानाओं ने फतवा दिया कि नरेंद्र मोदी दुश्मन है| उसे हराना मिल्लत का फर्ज है| अतः उम्मीदवारों की पहली पसंद अपना सहधर्मी हो| दूसरा जो भी भाजपा को शिकस्त दे सके, चाहे जिस पार्टी का हो| इतनी वैचारिक सुस्पष्टता किसी भी समाज में नहीं दिखी| मस्जिदों से, मदरसों से बस यही नारा था कि सारे मतभेद भूल जाओ, देवबंदी, बरेलवी, सुन्नी, शिया आदि| मोदी पर नजर टिकाओ| उसे हराओ, हटाओ| यही इन मुस्लिम वोटरों द्वारा सेक्युलर लोकतंत्र हेतु महान योगदान माना जायेगा| अतः धर्म और मजहब का विरोध काहे हो ? वोटरों को पीनक में आना ही है तो मजहबरुपी अफीम तो है ही| कार्ल मार्क्स ने यही कहा था|
याद आते हैं प्रधानमन्त्री स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह| मैंने पूछा था कि : “आप सत्य निष्ठा से शपथ क्यों लेते हैं?” उनका उत्तर था, “राजनीति से ईश्वर को अलग रखना चाहिये|” यही निखालिस सेक्युलर रक्षामंत्री थे जिन्होंने बोफोर्स के तोप की दलाली का भंडा फोड़ा था|
(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से)