प्रखर श्रीवास्तव
कमल हासन ने कहा कि गांधी का हत्यारा गोडसे पहला हिंदू आतंकवादी था… यानि गोडसे के नाम पर उन्होने पूरे हिंदू धर्म को कटघरे में खड़ा कर दिया… यानि कमल हासन ने एक तरह से ये कह दिया कि इस देश में आतंकवाद का जनक कोई है तो वो हिंदू धर्म ही है… अब आप जानिए कि इसी कमल हासन ने अपनी फिल्म ‘हे राम’ में राष्ट्रपिता गांधी को कैसे प्रस्तुत किया था और उसका क्या असर होता है… फिल्म ‘हे राम’ में कमल हासन की बीवी रानी मुखर्जी का कोलकाता में ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ (अगस्त 1946 में मुस्लिम लीग द्वारा कराए गए दंगे) के दौरान बलात्कार के बाद निर्मम हत्या कर दी जाती है… ये सीन देख कर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे… फिल्म का नायक कमल हासन इसके लिए महात्मा गांधी की नीतियों को जिम्मेदार मानने लगता है… और वो ये तय करता है कि वो एक दिन बापू की हत्या कर देगा।
फिल्म का एक दृश्य है जिसमें 15 अगस्त 1947 को जब गांधी कलकत्ता में दंगे (जो डायरेक्ट एक्शन डे के एक साल बाद भड़के थे) रोकने के लिए मौजूद थे तो नायक कमल हासन उनसे संवाद करता है… जिसमें डायरेक्ट एक्शन डे के खलनायक सुहरावर्दी (मुस्लिम लीग नेता और तत्कालीन बंगाल के मुख्यमंत्री) गांधी के साथ होते हैं… नायक कमल हासन बापू को अपमानित करता है, और दर्शक ताली बजाते हैं… फिर अचानक फिल्म में परिवर्तन आते हैं… कमल हासन के मुस्लिम दोस्त शाहरुख खान की एंट्री होती है और उसके बाद हिंदू-मुस्लिम दोस्ती के नाम पर कमल हासन का दिल बदल जाता है और वो बापू की हत्या का प्लान त्याग देता है… फिर वो 30 जनवरी 1948 के दिन अपने इसी पाप का प्रायश्चित करने के लिए बापू के पास बिड़ला भवन जाता है… लेकिन जब तक वो गांधी के सामने अपने पाप का प्रायश्चित कर पाता उसके पहले ही गोडसे बापू की हत्या कर देता है।
अब इसी सीन में खुलती है कमल हासन के गांधी प्रेम की हकीकत… बापू बने नसीरूद्दीन शाह को जब गोडसे गोली मारता है तो बापू पांच फीट उछल कर दूर जा गिरते हैं… उनके दोनो हाथ पैर हवा में होते है… आजतक बापू की हत्या का इतना विभत्स दृश्य किसी फिल्म में नहीं फिल्माया गया… बापू का सम्मान करने वाला कोई भी कलाकार, निर्देशक इस तरह का सीन नहीं फिल्माता… लेकिन कमल हासन ने ये किया… हे राम का ये दृश्य ये भाव पैदा करता है कि जैसे किसी विलेन को किसी हीरो ने मार दिया है।
दरअसल इस 3 घंटे की फिल्म में करीब पौन तीन घंटे तक सिर्फ गांधी को हर एंगल से कोसा गया है… नतीजा ये हुआ कि हे राम फिल्म में गांधी की हत्या जैसे ही होती है… इंदौर के रीगल सिनेमा हाल में ताली बजने लगी थीं… जी हां… मैं गवाह हूं… मैंने ये फिल्म साल 2000 में रीगल सिनेमा हॉल में देखी थी इसलिए दावे के साथ ये कह सकता हूं… मेरे साथ मेरे दो दोस्त अनिल मिश्रा और मुकुंद नायर (Mukund Nair) साथ थे… मुझे आज तक सब याद है।
(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से )