लखनऊ। जिसे ना दे मौला उसे दे आसिफुद्दौला। अवध की इस कहावत की दो जिंदा मिसालें गोरखपुर में मिलती हैं, एक है इमामवाड़ा और दूसरा गोरखपुर मठ। आसिफुद्दौला की मुलाकात जब अपने वक्त के दो बड़े फकीर बाबा रौशन अली शाह और बाबा गोरखनाथ से हुई तब उन्होंने इन दोनों फकीरों के नाम दो बड़ी जागीरें की। एक पर इमामवाड़ा बना और दूसरे पर गोरखनाथ मठ। कभी इमामवाड़े के जुलूस का स्वागत गोरखनाथ मठ की तरफ से किया जाता था लेकिन जब से मठ की राजनीति में हिंदुत्व की एंट्री हुई तबसे इमामबाड़ा और मठ का रिश्ता कमजोर हुआ है जिसे गोरखपुर के लोग आज भी याद करते हैं।
बाबा गोरखनाख के शहर में कुल मतदाता करीब 20 लाख हैं जिनमें मुसलमान वोटर करीब दो लाख हैं। गोरखपुर राजनीति के हिंदुत्व वाले फॉर्म का गढ़ रहा है। यहां मठ का अच्छा खासा दबदबा है लेकिन पिछले उपचुनाव में गोरखपुर ने उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश को चौंका दिया था। योगी के गढ़ में मठ वाले उम्मीदवार की हार हुई थी लेकिन उपचुनाव में जीतने वाले निषाद अब बीजेपी के हो चुके हैं। इस बार बीजेपी रवि किशन की स्टार इमेज के जरिए गोरखपुर लोकसभा सीट हासिल करना चाहती है तो गठबंधन की तरफ से राम भुआल निषाद अपनी दावेदारी पेश कर रहे है।
बता दें कि गोरखपुर वो सीट है जहां योगी आदित्यनाथ का डंका बजता है। जब तक योगी मैदान में रहे, जीतते रहे। 1998 से लेकर 2014 तक लगातार 5 बार योगी जीते लेकिन बाबा गोरखनाथ और बाबा रोशन अली शाह के शहर में उपचुनाव के बाद जब से गठबंधन ने जोर पकड़ा, योगी के लिए चुनौती बढ़ गई और गोरखपुर का समीकरण भी बदल गया। इस समीकरण में मुसलमान वोटर कहां है?
गोरखपुर में योगी के घर के मुसलमानों को उनसे जरा भी डर नहीं लगता। यहां के मुसलमान भी अपनी फरियाद लेकर योगी के पास जाते हैं लेकिन क्या वोट के सवाल पर मुसलमान योगी के साथ हैं?