राहुल कुमार गुप्त
लखनऊ। चौथे चरण में झाँसी-ललितपुर संसदीय सीट इसलिये भी चर्चा में है क्योंकि यह केंद्रीय मंत्री देने वाली सीट है और अघोषित बुंदेलखंड राज्य की भावी राजधानी के साथ दो वीरांगनाओं लक्ष्मीबाई व अवंतीबाई की कर्मभूमि भी। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में यहाँ से कांग्रेस के सांसद प्रदीप जैन के बाद पिछले लोकसभा में भाजपा सांसद बनीं साध्वी उमा भारती भी केंद्र सरकार में मंत्री बनीं। अतः यह सीट बुंदेलखंड में कई मामलों में चर्चा पर है। यहाँ से भाजपा, महागठबंधन और कांग्रेस गठबंधन के तीनों प्रत्याशी ही पहली बार लोकसभा चुनाव का सामना कर रहे हैं तो इनमें दो दल-बदलू और एक पर बाहरी प्रत्याशी होने का ठप्पा लगा है। इन तीनों दलों के बड़े राजनेता व समर्थकों के मन के प्रत्याशी न होने से सभी पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं में शुरुआती दौर पर नाराजगी भी देखी गयी किन्तु समय के साथ यह नाराजगी रूपी चिंगारी राख की ढेर में दबी सी प्रतीत आने लगी। केंद्रीय मंत्री उमा भारती के चुनाव लड़ने से इंकार करने पर अन्य भाजपा नेताओं के चुनाव लड़ने के सपनों को बल मिलना शुरू ही हुआ था कि अंदरखानों से आती खबरों ने उनके सपनों पर भी सेंध लगाना शुरू कर दिया यह केवल भाजपा के साथ घटित नहीं हो रहा था बल्कि तीनों दलों के संभावित प्रत्याशियों के साथ घटित हो रहा था। उमा भारती अपनी विजित सीट से स्वजातीय गंगाचरण राजपूत के लिये हाईकमान से टिकट की गुजारिश में लगीं थीं लेकिन वो बसपा नेता सतीशचंद्र मिश्र की समधन के भतीजे अनुराग शर्मा को मिल गयी। इससे पिछले चुनावों में यही परिवार बसपा से चुनाव लड़ता था, जिससे भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं व नेताओं की उम्मीदों को धक्का सा लगा। उधर गठबंधन ने झाँसी के कद्दावर सपा नेता चंद्रपाल सिंह को टिकट न देकर उनके प्रतिद्वंद्वी भगवाधारी श्यामसुंदर यादव को टिकट दे दिया। काँग्रेस ने भी यही रुख अपनाया उसने एक नये व बाहरी प्रत्याशी पूर्व में कद्दावर मंत्री व जन अधिकार पार्टी के संस्थापक बाबूसिंह कुशवाहा के भाई एडवोकेट शिवशरण कुशवाहा को दे दी। ऐसे में वहाँ के कांग्रेस नेता भी शुरुआती दौर पर अनमन से दिखायी दिये। जिससे तीनों प्रत्याशियों को अपने दलों के प्रबल लोगों का मान-मनौवल चलता रहा। ऐसे हालात में बुंदेलखंड के गौरव झाँसी-ललितपुर संसदीय क्षेत्र की यह सीट त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी है जनता का रुझान भी अभी बँटा-बँटा सा नजर आ रहा है अतः अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन तीनों प्रत्याशी एक-दूसरे को काँटे की टक्कर दे रहे हैं।।
कई मीडिया चैनल व कुछ अखबारों के पत्रकार जनमत को बदलने का भरसक प्रयास करते भी नज़र आ रहे हैं। यह सीट जहाँ सर्वाधिक बार कांग्रेस के खाते में गयी वह कांग्रेस आज भी यहाँ अपना दल (कृष्णा पटेल) व जन अधिकार पार्टी के साथ गठबंधन कर मजबूती की स्थिति में है किन्तु जानबूझकर पूर्व प्रायोजित मीडिया इसको काँटे की टक्कर से बहुत पहले बाहर कर चुकी है जिससे जनमत पर असर पड़े। जबकि सारे पहलुओं पर नज़र डालें तो कांग्रेस प्रत्याशी शिवशरण कुशवाहा भी अन्य को यहाँ से काँटे की टक्कर दे रहे हैं। झाँसी संसदीय क्षेत्र से सर्वाधिक बार कांग्रेस ने ही अपना परचम लहराया है। भाजपा, गठबंधन और कांग्रेस तीनों के प्रत्याशी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा और गठबंधन के प्रत्याशियों पर जहाँ दल-बदलूओं का ठप्पा लगा है पर केवल कांग्रेस के प्रत्याशी पर बाहरी होने का पत्रकारों द्वारा रोना रोया जा रहा है जबकि दलबदलुओं के लिये कोई रोना नहीं है। हाँ! कांग्रेस प्रत्याशी बाहरी जरूर है लेकिन है बुंदेलखंड का ही, इनकी पकड़ और समर्थक झाँसी संसदीय क्षेत्र में बहुतायत में हैं तथा अतिपिछड़ी जातियों, कांग्रेस का बेसिक वोट और प्रदीप आदित्य जैन की मेहनत तथा प्रियंका गाँधी के आने से पार्टी समर्थकों में नई ऊर्जा संचारित होना तथा मुस्लिमों का रुझान भी कांग्रेस की ओर फिर होना, ‘न्याय’ योजना का गरीबों पर बेहतर प्रभाव पड़ना भी कांग्रेस प्रत्याशी को भी बाज़ीगर बना सकता है। जीएसटी और नोटबंदी की मार से परेशान व्यापारियों की बीजेपी से नाराजगी और किसानों तथा छात्रों के लिये कांग्रेस की घोषित बेहतर योजनाएं भी कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में रुझान बना रही हैं। सपा -बसपा गठबंधन प्रत्याशी अभी तक भगवा चोले पर ही थे इसलिये उन पर कई लोगों का विश्वास न होना भी कांग्रेस के प्रत्याशी को कहीं से कमजोर नहीं होने दे रहा है। बसपा के कद्दावर नेता रहे बाबूसिंह कुशवाहा का अतिपिछड़ी जातियों के अलावा अनुसूचित जातियों पर भी गहरा प्रभाव है। वहीं कांग्रेस में नसीमुद्दीन सिद्ददिकी के आने से भी उस क्षेत्र का मुस्लिम कांग्रेस को ही पसंद कर रहा है।
लोधी राजपूतों का भी मत अब केवल एक जगह ही नहीं पड़ने वाला है बल्कि वो भी बँटेगा। लोधी राजपूतों के एक प्रदेश स्तरीय नेता रहे पूर्व मंत्री स्व. डाॅक्टर सुरेंद्रपाल वर्मा के पुत्र लोधी महेंद्रपाल वर्मा का इस क्षेत्र में महीनों से सक्रिय होना भी भाजपा के वोटबैंक में पूर्णतः सेंध लगाने का कार्य कर चुका है। कुछ प्रदेश स्तरीय व राष्ट्रीय स्तर के वैश्य नेता भी कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में वैश्य वर्ग को मनाने की कोशिशों में लगे हैं जिनकी मिली-जुली प्रक्रिया भी देखने को मिल रही है। ऐसे हालात में झाँसी संसदीय क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला ही है जिसे कुछ मीडिया वाले भाजपा और गठबंधन के बीच का ही बता रहे हैं तथा कांग्रेस के वोटों को गुमराह कर उन्हें बँटाना चाहते हैं। आज का पढ़ा-लिखा मतदाता ऐसे झूठे आँकड़ों के जाल में नहीं आने वाला किन्तु हाँ! ऐसी खबरों से काफी प्रभाव तो पड़ता ही है। पत्रकारिता में ईमानदारी और हर पक्ष को लेकर चलने वाले गुण गौण होते जा रहे हैं। झाँसी संसदीय क्षेत्र के महारण में तीनों प्रत्याशी अपनी प्रबल स्थित में हैं इनमें से कोई भी बाज़ीगर बनकर इस क्षेत्र की सेवा में लगेगा।