मालेगांव ब्लास्टः ATS की वो रिपोर्ट, जिसकी वजह से 9 साल जेल में रहीं साध्वी प्रज्ञा

नई दिल्ली। मालेगांव ब्लास्ट केस में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह के खिलाफ जांच एजेंसियों को कई अहम सबूत मिले थे. उसी के आधार पर उसकी गिरफ्तारी हुई थी. इनमें सबसे अहम सबूत था, धमाके में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, जो प्रज्ञा सिंह के नाम पर पंजीकृत थी. इसके अलावा साध्वी प्रज्ञा और संदिग्ध हमलावर के बीच फोन पर हुई बातचीत कुछ अंश एजेंसियों को मिले थे. जिससे पता चला था कि धमाके की साजिश रचने के लिए भोपाल में एक बैठक आयोजित की गई थी. जिसमें साध्वी भी मौजूद थी.

प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर कई आरोप हैं. दरअसल, महाराष्ट्र आतंकवाद-रोधी दस्ते (एटीएस) ने उसे मालेगांव विस्फोट के प्रमुख षड्यंत्रकारियों में से एक बताया था. 29 सितंबर, 2008 मालेगांव में हुए ब्लास्ट के दौरान 7 लोग मारे गए थे जबकि 101 लोग घायल हो गए थे.

इस मामले में अक्टूबर 2008 में प्रज्ञा सिंह को गिरफ्तार किया गया था. वर्तमान में वो गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम (रोकथाम) समेत हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश, और धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे आरोपों का सामना कर रही है. अदालत ने पाया कि आरोपी प्रज्ञा ने आतंक फैलाने और समाज में सांप्रदायिक दरार पैदा करने के उद्देश्य से इस साजिश की योजना बनाई थी.

बम को एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) के साथ गोल्डन रंग की एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल में फिट किया गया था. वो मोटरसाइकिल प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर पंजीकृत थी. एटीएस ने ही साध्वी को गिरफ्तार किया था. एटीएस का कहना था कि साध्वी ने अपने करीबी सहयोगी रामजी कलसांगरा को विस्फोट के लिए मोटरसाइकिल मुहैया कराई थी. वो भी इस मामले का एक वांछित आरोपी था.

2011 में इस मामले की जांच एटीएस से लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी गई थी. मगर 2016 में जब एनआईए ने अपनी पहली फाइनल चार्जशीट कोर्ट में दायर की तो उसमें साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट दे दी थी. एनआईए ने कहा कि एटीएस ने रिकॉर्ड में जिस अहम सबूत यानी मोटरसाइकिल का जिक्र किया है, उनकी जांच में पाया गया कि वह साध्वी के नाम पर पंजीकृत तो थी, लेकिन उसका कब्जे किसी और के पास था.

एनआईए का तर्क था कि वो मोटरसाइकिल दो साल से रामजी कलसांगरा इस्तेमाल कर रहा था. इसलिए साध्वी इस घटना से जुड़ी नहीं थी. एनआईए का कहना था कि अन्य सबूतों में बयान भी शामिल हैं, जो सभी वापस ले लिए गए थे, इसलिए साध्वी के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता था.

ये बात अभियोजन पक्ष के गवाह और कलसांगरा के चचेरे भाई के बयान पर भी निर्भर करती थी. उसने अपने बयान में कहा था कि उसने साध्वी प्रज्ञा और कलसांगरा के बीच हुई एक बातचीत सुनी थी. जिसमें वो लोग विस्फोट की बात कर रहे थे. साध्वी ने कलसांगरा से पूछा था कि इससे कुछ ही लोग हताहत क्यों हुए.

एनआईए ने एटीएस पर आरोप लगाते हुए कहा था कि वो उस गवाह के बयान पर भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि वो गवाह एटीएस के हाथों इस्तेमाल किया जा रहा था. इसके बाद अदालत ने कहा था कि ऐसी परिस्थितियों में गवाह के मुंह से सच जानने के लिए विटनेस बॉक्स में ही उसकी परीक्षा ली जा सकती है.

हालांकि इस सबके बावजूद अदालत ने प्रज्ञा को आरोप मुक्त करने की याचिका को खारिज करते हुए बताया था कि अन्य साक्ष्यों से साफ है कि धमाके से पहले भोपाल में हुई बैठक में प्रज्ञा मौजूद थी. एक गवाह ने एटीएस को बताया था कि प्रज्ञा के सह-अभियुक्त लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने बढ़ती जिहादी गतिविधियों को रोकने का हवाला देकर उनके संगठन अभिनव भारत की गतिविधियों का विस्तार करने की आवश्यकता पर बल दिया था.

गवाह ने कथित तौर पर एटीएस को बताया था कि कर्नल पुरोहित ने मुस्लिम बहुल इलाके में बम विस्फोट के साथ मुसलमानों से बदला लेने के बारे में अपनी राय जाहिर की थी. तब प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने इस काम के लिए लोग उपलब्ध कराने के लिए तत्परता दिखाई थी. एनआईए ने दावा किया कि एजेंसी ने फिर से गवाह से पूछताछ की और वह अपने बयान से मुकर गया. हालांकि विशेष अदालत ने कहा कि मुकदमे के दौरान देखा जाएगा कि गवाह के दो बयानों में से कौन सा बयान सही है.

इस केस से जुड़े मुकदमे में अन्य सबूतों के तौर पर आरोपी कर्नल पुरोहित और रमेश उपाध्याय के बीच हुई वो बातचीत भी शामिल है, जिसमें वे प्रज्ञा की गिरफ्तारी पर चर्चा कर रहे हैं. अभियोजन पक्ष के अनुसार, वे दोनों कथित तौर पर मोटरसाइकिल और उससे संभावित बचाव पर चर्चा कर रहे थे.

कर्नल पुरोहित ने साध्वी से की गई पूछताछ का जिक्र करते हुए कथित तौर पर उपाध्याय को बताया कि “सिंह ने एक छोटा गीत गाया है. क्योंकि प्रज्ञा ने इस मामले में पुरोहित के नाम का खुलासा किया था.

अदालत को विस्फोट से पहले के महीनों में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, सुधाकर चतुर्वेदी और अन्य सह-अभियुक्तों समेत दो फरार आरोपियों के बीच फोन पर हुई बातचीत पर भी भरोसा जताया. प्रज्ञा ने विस्फोट से तीन दिन पहले, विस्फोट के दिन और उसके अगले दिन वॉन्टेड अभियुक्त संदीप डांगे से कथित तौर पर बात की थी. अदालत ने कहा कि ये विकट परिस्थितियां विस्फोट में उनकी भागीदारी का मजबूत शक जाहिर करती हैं.

अदालत ने साध्वी प्रज्ञा को बरी किए जाने की अपील खारिज करते हुए कहा कि यह ध्यान में रखना होगा कि एटीएस अधिकारी से पहले गवाहों के बयानों के मुताबिक आरोपी नंबर 1 ने विस्फोट के लिए लोग उपलब्ध कराने के लिए सहमति जताई थी. दोनों जांच एजेंसियों एटीएस और एनआईए के अनुसार, फरार आरोपी रामचंद्र कलसांगरा और संदीप डांगे ही बम के प्लांटर्स हैं. इसलिए, उपरोक्त बातों को पहले नजर में ही अनदेखा नहीं किया जा सकता है.

अब तक इस मामले में 106 गवाह पेश हुए. ये सभी मुख्य रूप से विस्फोट में घायल हुए लोग थे. जिन्होंने इस केस में अपना बयान पूरा कर लिया है. प्रज्ञा पिछली बार 30 अक्टूबर को अदालत में पेश हुई थी. जब उसके खिलाफ आरोप तय किए गए थे और उसने अदालत से उसे दोषी करार ना देने की अपील की थी.

अदालत में व्हीलचेयर पर आने से पहले प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने दावा किया था कि उसके खिलाफ सभी आरोप झूठे थे और ये सब कांग्रेस पार्टी की साजिश थी. अपनी पहली जमानत याचिका में उसने दावा किया था कि वह ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित है और वह कमजोर हो गई थी और बिना सहारे के चल नहीं सकती थी.

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