नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा ने नारा दिया है अबकी बार चार सौ पार. एक इंटरव्यू में तो अमित शाह ने बड़े जोश के साथ यहां तक कह दिया कि अगर उत्तर प्रदेश में 73 से एक भी सीट कम हो जाए तो 23 मई को उन्हें दोपहर एक बजे तक फोन किया जाए. लेकिन क्या सच में भाजपा नेतृत्व को इतना ही भरोसा है कि वह अपने दम पर फिर से बहुमत ला सकती है?
पिछले एक महीने में भाजपा की तरफ से दो सर्वे हुए और दोनों के नतीजों ने पार्टी के पसीने छुड़ा दिए हैं. इनके मुताबिक भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश में हो रहा है. भाजपा के एक आंतरिक सर्वे के मुताबिक यहां उसकी कम से कम तीस सीटें घट रहीं हैं. दूसरे सर्वे ने तो भाजपा की सीटें 40 के करीब घटा दी हैं. इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा का अपना आतंरिक सर्वे ही यह बता रहा है कि इस बार भाजपा को उत्तर प्रदेश में सिर्फ तीस से चालीस सीटें ही मिल रही हैं.
भाजपा ने 11 अशोक रोड में एक वॉर रूम बनाया है. इस वॉर रूम का एक हिस्सा फीडबैक और फॉर्मूलेबाजी के लिए है. यहां भाजपा के नेता सीट बढ़ाने का हिसाब-किताब लगा रहे हैं. नई रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश के घाटे को पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर-पूर्व के राज्यों और दक्षिण के सहयोगियों की मदद से भरने की कोशिश की जा रही है.
लेकिन नुकसान सिर्फ उत्तर प्रदेश से ही होता नहीं दिख रहा है. पिछली बार गुजरात (26) और राजस्थान (25) की सभी सीटें भाजपा के पास थी. मध्य प्रदेश की भी दो सीटें छोड़ दें तो सभी सीटों पर कमल खिला था. छत्तीसगढ़ में भी एक सीट के अलावा सभी सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे. लेकिन इन सभी राज्यों में अब हालात पहले जैसे नहीं हैं.
इसलिए संघ के और स्थानीय इनपुट के बाद भाजपा नेतृत्व ने गुजरात जैसे राज्य में भी सिटिंग सांसदों के टिकट खूब काटे हैं. सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी का ही नहीं, यहां के दस से ज्यादा सांसदों के टिकट कट चुके हैं लेकिन फिर भी पहले वाली बात नहीं दिख रही है. भाजपा का अपना सर्वे ही बताता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस उससे बहुत आगे है और सिटिंग सांसदों के टिकट काट देने से स्थिति में कोई खास अंतर नहीं पड़ने वाला है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कमलनाथ हर सीट के हिसाब से भाजपा को हराने की रणनीति बना रहे हैं और वहां भाजपा की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.
भाजपा के लिए सबसे बंजर जमीन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना साबित हो रहे हैं. इन दोनों राज्यों में उसे फिलहाल एक भी सीटें मिलने की उम्मीद नहीं है. इसलिए भाजपा ने दूसरे दलों के मजबूत नेताओं को पार्टी का उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है. केरल में भी अभी भाजपा को ज्यादा से ज्यादा एक सीट पाने की ही उम्मीद है. वहां राहुल गांधी के जाने के बाद से भाजपा के लिए हालात और बिगड़ गए हैं. अब वह अपनी रणनीति बदलकर इस चुनाव को यूडीएफ बनाम भाजपा बनाने की कोशिश कर रही है. केरल में वाम मोर्चा यानि एलडीएफ में भी मतभेद बढ़ रहा हैं जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. सीताराम येचुरी गुट राहुल गांधी की कांग्रेस के प्रति नरम दिखता है जबकि प्रकाश करात गुट कांग्रेस को हराने में पीछे नहीं दिखना चाहता.
हालांकि तमिलनाडु में इस बार भाजपा पहले से थोड़ी ठीक हालत में है. यहां का पूरा चुनाव रेल मंत्री पीयूष गोयल देख रहे हैं. वे दिल्ली से ज्यादा वक्त तमिलनाडु में ही बिता रहे हैं. यहां भाजपा एआईएडीएमके सहित सात अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करके पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत लगाई हुई है लेकिन नतीजा उम्मीद से कोसों दूर दिख रहा है. बंगाल की 42 सीटों में से ज्यादातर पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस बहुत आगे चल रही है. यहां कांग्रेस और लेफ्ट शून्य पर पहुंच सकती हैं. लेकिन भाजपा भी दस से ज्यादा सीटें जीतने की हालत में नहीं दिखाई देती. ओडिशा की 21 सीटों पर नवीन पटनायक की बीजेडी ज्यादा मजबूत दिख रही है और यहां भी भाजपा दहाई के आंकड़े से दूर है.
इस तरह देश की सौ से ज्यादा ऐसी सीटें है जहां भाजपा कहीं दूर-दूर तक दिखाई तक नहीं देती. भाजपा का अपना सर्वे भी कहता है कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर पूर्व और दक्षिण से अगर भाजपा को 50 सीटें ही मिली तो उसे अकेले दम पर बहुमत हासिल नहीं हो सकता. ऐसे में भाजपा इस वक्त हर दिन और हर सीट के हिसाब से अपनी रणनीति बनाने का काम कर रही है. जहां पार्टी पिछले 37 साल से कभी नहीं जीती अब उन्हीं सीटों पर उसकी सरकार बनाने की जिम्मेदारी आन पड़ी है.