नई दिल्ली। पड़ौसी देशों से घुसपैठ नासूर बनने की ओर है। बाहरी नागरिकों के भारत में अवैध रूप से बसते जाने का संकेत दे रहे आंकड़े और अनुमान चौंकाते हैं। बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों से हो रही घुसपैठ भारतीय नागरिकों के हितों और हक को हड़पने का सबब बन गई है। खासतौर पर वे, जो सीधे तौर पर इसके सामाजिक-आर्थिक दुष्प्रभाव को झेल रहे हैं, इसे सहन करने की स्थिति में नहीं हैं। प्रभावितों की संख्या देश के विभिन्न राज्यों में है। लिहाजा, घुसपैठ का यह मसला राष्ट्रीय मुद्दा बन बैठा है। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में इसे प्रमुखता से शामिल किया है। क्या है यह मुद्दा? यह क्यों बन गया राष्ट्रीय मुद्दा?
भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प पत्र में घुसपैठ को रोकने की बात प्रमुखता से कही है। न केवल घुसपैठ को रोकने बल्कि इस समस्या के समुचित समाधान की बात कही गई है। दरअसल यह वह गंभीर मुद्दा है, जिसे लेकर भारतीय जनता पार्टी संवेदनशील रही है। राष्ट्रीय नागरिक पंजी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) को विस्तार देने की बात पार्टी उठाती रही है, लेकिन अब यह मुद्दा उसके संकल्प पत्र में प्रमुखता से चिन्हित हुआ है।
एनआरसी के पूर्णता से अमल का वादा करते हुए पार्टी ने कहा है कि भारत में दूसरे देशों से घुसपैठ के कारण न केवल स्थानीय लोगों की आजीविका पर बुरा असर पड़ा है बल्कि स्कृतिक और भाषायी पहचान भी प्रभावित हुई है। सत्ता में आने पर इसका पुख्ता समाधान किया जाएगा। एनआरसी के अलावा सीमा पर मुस्तैदी की बात भाजपा ने की है। कहा है कि घुसपैठियों को रोकने के लिए सीमाओं पर सुरक्षा को और चाकचौबंद करेगी। सीमाओं की सुरक्षा के लिए असम में लागू किए गए स्मार्ट फेंसिंग के पायलट प्रोजेक्ट को सभी सीमाओं पर लागू करेगी।
पार्टी ने सीमाओं पर साल 2024 तक 14 और इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट बनाए जाने की भी बात की है। बना हुआ था राजनीतिक मुद्दा घुसपैठ का मसला लंबे समय से राजनीतिक मुद्दा बना हुआ था, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि यह राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। घुसपैठियों की संख्या के बारे में हालांकि कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं रहा है, लेकिन एक विशेष वर्ग की लगातार बढ़ती आबादी के सापेक्ष इसका अनुमान सामने आता है। 2001 की जनगणना में प्रवासियों की संख्या के बारे में बताया गया है पर अनधिकृत रूप से भारत की सीमा में दाखिल हुए लोगों के बारे में कोई आंकड़ा नहीं है।
बताया गया है कि इनमें से सर्वाधिक बांग्लादेश से आए हैं। पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में सबसे ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। दरअसल, भारत यदि एनआरसी की ओर बढ़ रहा है तो यह उसका हक है। इसमें अंतरराष्ट्रीय अड़चन नहीं आएगी। इस तरह की घुसपैठ भारत सहित कई देशों के लिए भी समस्या बनी हुई है। हालत यह है कि संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सदस्य देशों को प्रवासी कानून सख्त बनाने को कहा है। आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए इसे जरूरी बताया गया है। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में हालांकि इस अहम मुद्दे को संजीदगी से बयां किया है।
लेकिन पार्टी इसे लेकर कितनी गंभीर है यह उसके अध्यक्ष अमित शाह के गत बयान से समझा जा सकता है। अमित शाह कह चुके हैं कि- अगर हम 2019 लोकसभा चुनाव जीतते हैं, तो घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकाला जाएगा। ये घुसपैठिये दीमक की तरह होते हैं, वे खाना खा रहे हैं जो कि हमारे गरीबों को जाना चाहिए और वे हमारी नौकरियां भी खा रहे हैं। ये हमारे देश में विस्फोट कराते हैं, जिसमें बहुत सारे लोग मारे जाते हैं…। दिल्ली में हुई उक्त जनसभा में शाह ने जनता से मुखातिब हो कहा था देश के अंदर अवैध घुसपैठियों से परेशानी है या नहीं? इन्हें देश से निकालना चाहिए या नहीं? करोड़ों की संख्या में घुसपैठिये घुस गए हैं और दीमक की तरह चाट गए हैं देश को…। इन्हें उखाड़ फेंकना चाहिए या नहीं? 2019 में सत्ता में आने के बाद भाजपा राष्ट्रव्यापी स्तर पर इन घुसपैठियों की पहचान कराएगी…।
इस मसले पर नेताओं के बोल
मैं एनआरसी के दौरान कई लोगों को हुई दिक्कतों और मुश्किलों के बारे में जानता हूं, लेकिन मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि किसी भी वास्तविक भारतीय नागरिक के साथ अन्याय नहीं होगा। सरकार नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर और काम कर रही है। यह लोगों की जिदंगी और भावनाओं से जुड़ा है। यह किसी के फायदे के लिए नहीं है बल्कि अतीत में हुए कई गलत कार्यों एवं अन्याय का प्रायश्चित है। नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री (जनवरी 2019, असम के कालीनगर में)
अवैध घुसपैठिए दीमक की तरह होते हैं। वे खाना खा रहे हैं जो कि हमारे गरीबों को जाना चाहिए और वे हमारी नौकरियां भी ले रहे हैं। ये हमारे देश में विस्फोट कराते हैं जिसमें बहुत सारे लोग मारे जाते हैं। सत्ता में आने के बाद भाजपा राष्ट्रव्यापी स्तर पर देश में रहने वाले अवैध घुसपैठियों की पहचान कराएगी। हम वोट बैंक की राजनीति नहीं करते। हम हमारे दल से देश को बहुत ऊंचा मानते हैं। अमित शाह, अध्यक्ष, भाजपा
केंद्र व असम की भाजपा सरकारों ने जिस तरह से इस काम को अंजाम दिया वह आशा के अनुरूप नहीं है।भारतीय नागरिकों को एनआरसी के मसौदे में अपना नाम नहीं मिल रहा है, जिससे राज्य में भारी असुरक्षा का भाव है। 1200 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद यह पूरी प्रक्रिया सुस्त रही। सरकार को इस संकट के समाधान के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। राहुल गांधी, अध्यक्ष, कांग्रेस
मैं किसी भी हाल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लागू नहीं करने दूंगी। मोदी कौन होते हैं यह तय करने वाले कि यहां कौन रहेगा और कौन नहीं। नागरिकता (संशोधन) बिल देश में शरणार्थियों को कानूनी वैधता देने का भाजपा का प्रयास है। इस बिल की वजह से लोगों को परेशान होना पड़ेगा। यह बिल मोदी सरकार की नौटंकी है। ममता बनर्जी, अध्यक्ष, तृणमूल कांग्रेस और पश्चिम बंगाल की सीएम
सफर एनआरसी का… ’
- असम भारत का पहला ऐसा राज्य है, जिसके पास राष्ट्रीय नागरिक पंजी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स) है। नागरिकता हेतु प्रस्तुत लगभग दो करोड़ से अधिक दावों (इनमें लगभग 38 लाख लोग ऐसे भी थे जिनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावजों पर संदेह था) की जांच पूरी होने के बाद न्यायालय द्वारा एनआरसी के पहले मसौदे को 31 दिसंबर 2017 तक प्रकाशित करने का आदेश दिया गया था। 31 दिसंबर 2017 को बहु-प्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक पंजी का पहला ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया। कानूनी तौर पर भारत के नागरिक के रूप में पहचान प्राप्त करने हेतु असम में लगभग 3.29 करोड़ आवेदन प्रस्तुत किए गए थे, जिनमें से कुल 1.9 करोड़ लोगों के नाम को ही इसमें शामिल किया गया राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सबसे पहले वर्ष 1951 में तैयार किया गया था।
- 1979 में अखिल असम छात्र संघ द्वारा अवैध आप्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग करते हुए छह वर्षीय आंदोलन चलाया गया था।
- 15 अगस्त, 1985 को असम समझौते पर राजीव गांधी के हस्ताक्षर के बाद अखिल असम छात्रसंघ का आंदोलन थमा था।
- असम में बांग्लादेशियों की बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर नागरिक सत्यापन की प्रक्रिया दिसंबर, 2013 में शुरू हुई थी। मई, 2015 में आवेदन आमंत्रित किए गए थे।
- 31 दिसंबर, 2017 को असम सरकार द्वारा राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर मसौदे का पहला संस्करण जारी किया गया।
- भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता प्रदान किए जाने हेतु 3.29 करोड़ आवेदन प्राप्त हुए थे। इनमें से 1.9 करोड़ लोगों को वैध भारतीय नागरिक माना गया जबकि शेष 1.39 करोड़ आवेदनों की विभिन्न स्तरों पर जांच जारी।