नई दिल्ली। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर महागठबंधन के वजूद पर फाइनल मुहर लगा दी. उन्होंने बता दिया कि अंतत: आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी, वीआईपी और जीतनराम माझी की पार्टी एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव (Lok Sabha election 2019) लड़ेंगे. देखने में ऐसा लगता है कि यह गठबंधन बड़ा और मजबूत है. जिस तरह से लालू प्रसाद यादव ने अकेले दम पर बिहार में 17 साल तक राज किया है, उससे भी यही लगता है कि वे बिहार की राजनीति में कुछ भी कर सकते हैं.
महागठबंधन बनाम एनडीए
लेकिन कुछ भी कर गुजरने से पहले जमीन को तो देखना ही पड़ता है. ऐसे में जरा गौर से देखिए कि बिहार का एनडीए कितना मजबूत है. यहां एनडीए में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल युनाइटेड, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी मुख्य घटक हैं. पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो बीजेपी को 29.86 फीसदी, जेडीयू को 16 फीसदी और एलजेपी को 6.5 फीसदी वोट मिले थे. अगर इन तीनों दलों के पिछले लोकसभा चुनाव के वोट जोड़े जाएं तो एनडीए के पास 52 फीसदी से ज्यादा वोट हो जाते हैं. दूसरी तरफ पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी 20.46 फीसदी, कांग्रेस को 8.56 फीसदी और आरएलएसपी को करीब 5 फीसदी वोट मिले थे. इन तीनों दलों का वोट मिलाकर करीब 33 फीसदी बैठता है. महागठबंधन के बाकी सियासी सहयोगी नए हैं, ऐसे में उन्हें अपनी राजनीतिक हैसियत अभी साबित करनी है.
एनडीए के पास 20 फीसदी ज्यादा वोट
इस वोट फीसद पर इसलिए थोड़ा भरोसा करना पड़ेगा, क्योंकि बिहार में 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस, जेडीयू और आरजेडी एक साथ आ गए हों लेकिन उनका अकेले का वोट बैंक तकरीबन 2014 लोकसभा के स्तर पर रहा था. बीजेपी का वोट जरूर 4 फीसदी घटा था, लेकिन उसकी वजह साफ थी कि बीजेपी का गठबंधन कमजोर था. वोटों का यह गणित दोनों गठबंधनों के वोट बैंक में करीब 20 फीसदी का अंतर दिखा रहा है. यानी अगर महागठबंधन को एनडीए को हराना है तो उसे पिछली बार की तुलना में कम से कम 11 फीसदी अतिरिक्त वोट हासिल करने होंगे.
महागठबंधन को लालू कमी खलेगी
अब तक का जो चुनावी परिदृश्य है, उसमें ऐसी कोई चमत्कारी हवा बहती नहीं दिख रही जो महागठबंधन को इतना बड़ा वोट इजाफा कराती दिख रही हो. यही नहीं पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में लालू यादव खुद चुनाव मैदान में थे. वे सारी रणनीतियां खुद बना रहे थे और चुनाव प्रचार करने में तो कोई उनका सानी है ही नहीं. उनके भाषणों में जो दम है, वह बिहार की धरती पर किसी नेता के भाषणों में नजर नहीं आती. लेकिन इस बार वह जेल में हैं. इधर परिवार में भी सब कुछ ठीक नजर नहीं आ रहा है. गठबंधन की सीटों को अंतिम रूप देने में जितना वक्त लगा उससे लगता है कि गठबंधन सहयोगियों में मधुरता की कमी है.
अगर महागठबंधन को एकमुश्त मुस्लिम वोट मिले तो
यानी तेजस्वी यादव के सामने खड़ी चढ़ाई है. महागठबंधन के लिए सबसे संभावनाशील बात यह हो सकती है कि इस लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोट एक मुश्त उसे ही मिल जाएं. पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में मुसलमानों का वोट राजद-कांग्रेस और जदयू के बीच बंटा था. बिहार में करीब 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. ऐसे में महागठबंधन के सामने एक ही आशा की किरण है कि यह वोट रणनीतिक लिहाज से महागठबंधन को मिल जाए. अगर ऐसा होता है तो इसका सबसे ज्यादा और सीधा नुकसान नीतीश कुमार के जेडीयू को होगा क्योंकि भारतीय जनता पार्टी मुस्लिम मतों को लेकर बहुत उत्साहित नहीं रहती.
मुसलमान वोटों को एकमुश्त अगर महागठबंधन के साथ जोड़ दें तो भी महागठबंधन का कुल वोट एनडीए के वोट से कम ही दिखाई देता है. अगर मान लिया जाए कि पिछले चुनाव में जेडीयू और आरजेडी-कांग्रेस को आधा-आधा यानी 8-8 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था, और अब यह महागठबंधन को मिल रहा है तो भी एनडीए का वोट 52 फीसदी से घटकर 44 फीसदी पर आता है. वहीं, महागठबंधन को वोट 33 फीसदी से बढ़कर 40-41 फीसदी तक आता है. यानी इस स्थिति में भी एनडीए भारी है.
चमत्कार की दरकार
अब एक अंतिम संभावना लेते हैं कि मुसलमान वोटर महागठबंधन के साथ आ गया और किसी बड़े चमत्कार या समीकरण से महागठबंधन ने पांच फीसदी वोट और पा लिया. ऐसी स्थिति में महागठबंधन मजबूत हो जाएगा. लेकिन इस हार की जितनी ज्यादा चोट बीजेपी को लगेगी उससे कहीं ज्यादा चोट जेडीयू को लगेगी. इसकी मुख्य वजह होगी कि 8 फीसदी मुस्लिम वोट जेडीयू के खाते से गया होगा न कि बीजेपी के खाते से. वैसे भी एनडीए ने मुस्लिम मतदाताओं के प्रभाववाली अधिकतर सीटें जेडीयू को दी हैं. ऐसे में अगर महागठबंधन चमत्कारी परिणाम देता है तो उसकी सबसे ज्यादा चोट जेडीयू को लगेगी.