नई दिल्ली। आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवारों की पहली सूची का इंतजार खत्म हो चुका है. पार्टी ने 184 नामों की अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस सूची के साथ सबसे हैरत बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के नाम को लेकर हुई जो गांधीनगर से चुनाव लड़ेंगे. अब तक यह सीट पार्टी के वरिष्ठ नेता आडवाणी के पास थी. तो क्या इसका सीधा मतलब यह हुआ कि आडवाणी चुनावी सीन से बाहर हो चुके हैं. आडवाणी का नाम लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची में नहीं होने से उनकी चुनावी राजनीति समाप्त होने के कयास लगाए जा रहे हैं.
गांधीनगर से छह बार सांसद रहे आडवाणी 91 साल के हो चुके हैं. हालांकि इस बार बीजेपी की तरफ से संकेत मिलने लगे थे कि 75 की उम्र के पार नेताओं को टिकट न देने का पार्टी ने पक्का मन बना रखा है. बीजेपी ने गांधीनगर सीट से अपने अध्यक्ष अमित शाह को उतारा है. बीजेपी की प्रदेश इकाई ने मांग की थी कि या तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को या शाह को इस बार गुजरात से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए. प्रदेश बीजेपी नेताओं ने यह भी मांग की थी कि शाह गांधीनगर से चुनाव लड़ें. पार्टी पर्यवेक्षक निमाबेन आचार्य ने बताया था कि बीजेपी ने 16 मार्च को पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की राय जानने के लिए गांधीनगर में पर्यवेक्षकों को भेजा था और इनमें से अधिकतर ने शाह का पक्ष लिया.
बहरहाल, बीजेपी की गुरुवार को जारी लिस्ट में जो सबसे बड़ा सवाल सामने आया वो यही है कि क्या लालकृष्ण आडवाणी के राजनीतिक करियर का अंत आखिरकार हो चुका है. कम से कम पहली लिस्ट के बाद तो यही कयास लगाए जा रहे हैं. आगे की सूची में क्या होगा कुछ बता नहीं सकते हैं, लेकिन संकेत साफ है कि अब उनकी विदाई तय है. 91 साल के आडवाणी को अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने वाला नेता माना जाता है.
लालकृष्ण आडवाणी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बीजेपी के उन नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने पार्टी को 2 सीटों की पार्टी को आज मुख्य पार्टी बना दिया है. बीजेपी को मौजूदा स्वरूप में खड़ा करने में इन दोनों नेताओं की अहम भूमिका रही है. आडवाणी ने 1992 की अयोध्या रथ यात्रा निकाल कर बीजेपी की राजनीति में धार दी थी. एक वक्त रहा है जब लालकृष्ण आडवाणी भारत की राजनीति की दिशा को तय करते थे और उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार तक माना जाता था. ये वही आडवाणी हैं जिन्होंने 1984 में दो सीटों पर सिमटी बीजेपी को 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया.
मगर लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी को 2004 और 2009 के चुनावों में मिली लगातार दो हार ने उन्हें पीछे ढकेल दिया. संसदीय राजनीति में वह गांधीनगर की सीट पर पहली 1991 में चुनाव लड़े थे. फिर 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 के चुनाव में जीते. हालांकि बाबरी केस की वजह से आडवाणी 1996 के चुनाव में मैदान में नहीं उतर पाए थे. 2009 में आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी कांग्रेस से हार गई थी और यहीं से उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई. 2014 में बीजेपी मोदी के नेतृत्व में जीती जिसके बाद आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल में भेजा गया.
गांधीनगर से अमित शाह के नाम के ऐलान के साथ वो सस्पेंस खत्म हो गया जिसमें कहा जा रहा था कि 91 साल के आडवाणी को इस बार टिकट दिया जाएगा या नहीं. हालांकि पिछली बार ही उनके टिकट को लेकर टकराव था, लेकिन इस बार पहले से ही कहा जा रहा था कि 75 की उम्र के पार नेताओं को टिकट नहीं दिया जाएगा और यही हुआ. यह भी सही है कि जब जब 75 पार उम्र के नेताओं के टिकट को लेकर चर्चा हुई तो बीजेपी लगातार ये कहती रही कि उम्र नहीं बल्कि सीट जीतने की संभावनाएं ज़्यादा मायने लगती है. लेकिन इस बार बीजेपी ने पहली लिस्ट से जो संकेत दिए हैं उसमें सीधी बात यही है कि बुज़ुर्ग नेताओं को टिकट न देने का मन पार्टी ने पक्का कर लिया.