BSP ने अमेठी-रायबरेली में उतारा उम्मीदवार तो कितनी मुश्किल होगी राहुल-सोनिया की राह?

नई दिल्ली/लखनऊ। बीजेपी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को उसी के गढ़- अमेठी और रायबरेली में घेरने की रणनीति पर काफी लंबे समय काम कर रही है. जबकि सपा-बसपा गठबंधन ने इन दोनों लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ अपने उम्मीदवार न उतारने की फैसला करके राहुल गांधी और सोनिया गांधी की सियासी राह को आसान बना दिया था. लेकिन, बुधवार को कांग्रेस की महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा का भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर से मुलाकात करने के बाद राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राहुल को अमेठी में घेरने की कवायद की थी, जिसके चलते कांग्रेस को अपना किला बचाने में पसीने छूट गए थे. माना जा रहा है कि सपा-बसपा गठबंधन अब अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए उम्मीदवार न उतारने का मन बदल गया है. अगर गठबंधन ने अमेठी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और रायबरेली में सोनिया गांधी के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारती तो कांग्रेस को अपने गढ़ को बचाने में लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं.

अमेठी और रायबेरली दोनों सीटों पर दलित और ओबीसी खासकर यादव समुदाय के मतदाता अच्छे खासे हैं. अमेठी में मुस्लिम मतदाता करीब 4 लाख के करीब हैं. जबकि रायबरेली में तीन लाख के करीब यादव हैं. जानकार मानते हैं कि सपा-बसपा गठबंधन ने अगर कांग्रेस के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने का कदम उठाते हैं तो इन वोटरों में बिखराव होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में कांग्रेस के जीत की राह बिगड़ सकती है.

सपा नेता और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रामसिंह यादव ने कहा कि सपा-बसपा गठबंधन रायबरेली और अमेठी में चुनावी मैदान में उतरते तो कांग्रेस के लिए ये सीटें जीतना आसान नहीं होगा. दोनों सीटों पर जातीय समीकरण गठबंधन के पक्ष में है, ऐसे में सपा-बसपा ने कांग्रेस को इन सीटों पर संजीवनी दी है. 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा रायबरेली की चार सीटें जीतने में सफल रही थी और कांग्रेस खाता नहीं खोल पाई थी.

जबकि, कांग्रेस के रायबरेली जिला सचिव नौशाद खतीब कहते हैं कि रायबरेली और अमेठी में बसपा हर बार चुनाव लड़ती रही हैं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को कभी भी कोई दिक्कत नहीं आई है. इस क्षेत्र की जनता जातिवाद, धर्मवाद और भाई-भतीजेवाद से ऊपर उठकर कांग्रेस नेतृत्व को वोट करती है. ऐसे में सपा-बसपा इन दोनों सीटों पर चुनाव लड़ते भी तो कोई खास असर नहीं डाल पाते, क्योंकि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग होते हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के खिलाफ मैदान में उतारा था. अमेठी संसदीय सीट पर राहुल गांधी को करीब चार लाख और बीजेपी की स्मृति ईरानी को करीब तीन लाख वोट मिले थे. जबकि सपा ने कांग्रेस के समर्थन में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. इसके बावजूद राहुल करीब 1 लाख वोट से ही जीत सके थे. इसके अलावा 2017 के विधानसभा चुनाव अमेठी में कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका था. जबकि बीजेपी ने पांच विधानसभा सीटों में से चार पर जीत हासिल की थी और एक सीट सपा की झोली में गई थी.

वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रायबरेली से सोनिया गांधी के सामने अजय अग्रवाल को मैदान में उतारा था. मोदी लहर के बावजूद वो सोनिया के सामने कड़ी चुनौती पेश नहीं कर सके थे. लेकिन बीजेपी को करीब पौने दो लाख वोट मिले थे. इसके बाद जब 2017 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को 2, कांग्रेस को 2 और एक सीट पर सपा को जीत मिली थी.

अमेठी और रायबरेली में बीजेपी इस बार में कमल खिलाने के लिए काफी लंबे समय से सक्रिय है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रायबरेली का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने कई विकास योजनाओं को हरी झंडी दिखाई थी और एक बड़ी रैली को भी संबोधित किया था. इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोनों क्षेत्रों का दौरा करके कांग्रेस नेताओं को अपने साथ जोड़ने का काम किया है.

बीजेपी ने 2019 में रायबरेली और अमेठी की घेराबंदी करने का प्लान बना रखा है.  बीजेपी नेता स्मृति ईरानी पिछले पांच साल से अमेठी में सक्रिय हैं. वो लगातार अमेठी का दौरा कर रही हैं और स्थानीय मुद्दों को उठाकर कांग्रेस आलाकमान को घेरती रहती हैं. इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने सोनिया गांधी की संसदीय सीट से एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को अपने साथ मिला लिया है.

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