नई दिल्ली। देश में करीब 35 ऐसी पार्टियां हैं जो लोकसभा चुनावों से पहले गठबंधनों में शामिल होती हैं. या तो ये पार्टियां बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए में या फिर कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन से चुनाव पूर्व सीटों पर तोलमोल तो करती हैं, लेकिन आमतौर पर हर चुनाव में एक गठबंधन या उसके आसपास वाली पार्टियों से समझौता करते हैं. लेकिन इन 35 पार्टियों में 9 ऐसी हैं जो दो धुर-विरोधी गठबंधनों के बीच बेरोकटोक चुनाव पूर्व समझौता करती हैं.
चार लोकसभा चुनावों गठबंधन से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि तमिलनाडु की चार प्रमुख राजनीतिक पार्टियां पहले पायदान पर हैं. यह खिताब इसलिए है कि ये पार्टियां लगभग सभी गठबंधन, यूपीए और एनडीए के अलावा तीसरे मोर्चे तक से सीटों का समझौता कर चुकी हैं. समझौते के बाद अगर चुनावी नतीजे ठीक नहीं आए तो अगले चुनाव में ये पार्टियां दूसरे गठबंधन का हिस्सा बन जाती हैं.
1999 में डीएमके, एमडीएमके और पीएमके ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ मिलकर तमिलनाडु की 31 सीटों पर चुनाव लड़ा और 21 पर जीत हासिल की. जबकि चौथी बड़ी पार्टी एआईएडीएमके कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए के साथ चुनाव लड़ी और 10 सीट जीत पाई.
एआएईडीएमके
लेकिन अगले लोकसभा चुनावों में (2004) में इन सभी पार्टियों ने पलटी मार ली. डीएमके, एमडीएमके और पीएमके यूपीए के साथ तो एआईएडीएमके बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए का दामन थाम लिया. हालांकि यूपीए वाली पार्टियों को तो फायदा हुआ, लेकिन एआईएडीएमके का दांव उलटा पड़ा तमिलनाडु की लोकसभा सीट में कोई खाता तक नहीं खोल पाई.
जबकि इसी चुनाव में यूपीए के साथ आने पर डीएमके ने 16 सीट, पीएमके ने 5 सीट और एमडीएमके ने 4 लोकसभा सीट जीत लिया.
2004 में खाता नहीं खुलने के बाद एआएईडीएमके ने 2009 में नए गठबंधन तीसरे मोर्चे से हाथ मिला लिया और 9 सीट जीत गई. लेकिन 2014 में एआईएडीएमके अकेले चुनाव लड़ी और तमिलनाडु की 39 में से 37 सीटों पर रिकॉर्ड जीत हासिल की. एनडीए के साथ जुड़ने वाली बाकी तमिल पार्टियां मोदी हवा के बावजूद भी दो सीट पर सिमट गई. 2014 में पीएमके और बीजेपी को मात्र एक-एक सीट मिल पाई. अब एआईएडीएमके ने यूपीए, एनडीए, थर्ड फ्रंट से होते हुए 2019 में फिर से एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है.
पीएमके
पीएमके भी एनडीए, यूपीए, थर्ड फ्रंट और एनडीए के बाद फिर से 2019 में फिर से एनडीए के रथ पर सवार होने वाली है.
पिछड़ी जातियों के भीतर वोटबैंक में दखल रखने वाली पार्टी के वोट शेयर से लेकर सीट तक लगातार घटती रही. 2009 में तो पीएमके जीरो पर सिमट गई. उस वक्त पीएमके ने थर्ड फ्रंट के साथ चुनाव लड़ा था.
डीएमके
गठबंधन की राजनीति की शुरुआत 1999 से मानी जाती है. इस शुरुआती दौर में तमिलनाडु की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी डीएमके ने एनडीए के साथ चुनाव लड़ा, लेकिन ठीक अगले चुनाव यानी 2004 में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन यूपीए में शामिल हुई और 16 सीट पर जीत हासिल की. लगातार सीट में फायदा देखते हुए डीएमके ने 2009 का चुनाव भी यूपीए के साथ लड़ा और 18 सीट पर जीत हासिल की. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में डीएमके ने एआईएडीएमके के तर्ज पर अकेले चुनाव लड़ा और खाता तक नहीं खोल पाई. हालांकि डीएमके 27 सीटों पर दूसरे नंबर की पार्टी थी.
एमडीएमके
तमिलनाडु की राजनीति में चौथा बड़ा दल एमडीएमके की भी राजनीति पीएमके की तरह गठबंधनों के बीच झूलती रही है. 1999 मे एनडीए, 2004 में यूपीए और 2009 में तीसरा मोर्चा और 2014 में फिर एनडीए के साथ चुनाव लड़ी. 2014 में मोदी की हवा थी बावजूद उसके एमडीएमके तमिलनाडु में खाता तक नहीं खोल पाई.
तृणमूल कांग्रेस
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस ने 1999 और 2004 का चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लड़ा. पहली बार 8 सीट मिली, लेकिन दूसरी बार केवल दो सीट. ममता ने तीसरे चुनाव यानी 2009 में यूपीए से हाथ मिलाया और 19 सीटों पर जीत हासिल कर ली. उसके बाद 2014 में तृणमूल किसी भी गठबंधन के साथ नहीं गई. लेकिन पार्टी 2019 के चुनावों के लिए एक बार फिर गठबंधन का हिस्सा बनने जा रही है. मौजूदा संकेतों के मुताबतिक ममता बनर्जी 2019 का चुनाव महागठबंधन के नाम पर लड़ सकती हैं.
लोक जनशक्ति पार्टी
गठबंधन में आने-जाने को लेकर लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान को विरोधियों ने मौसम विज्ञानी जैसा खिताब दे डाला है. लोक जनशक्ति पार्टी 2004 में यूपीए के साथ चुनाव लड़ी और चार सीट पर जीत हासिल की. बिहार की राजनीति में लालू यादव के हैसियत को आंकते हुए लोक जनशक्ति पार्टी ने 2009 का चुनाव लालू यादव और सपा की और बनाए गए तथाकथित चौथे मोर्चे के साथ चुनाव लड़ा. लेकिन कोई भी सीट नहीं जीत पाई. हार के बाद 2014 में रामविलास पासवान की पार्टी बीजेपी नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए के खेमे में जा पहुंची, जहां सात सीटों पर चुनाव लड़ते हुए छह में जीत हासिल कर ली.
राष्ट्रीय लोकदल
यूपी में दोनों विरोधी गठबंधन के बीच झूलने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोकदल रही है, लेकिन उसका दुर्भाग्य रहा है कि उसने जिसके साथ चुनाव लड़ा वो सत्ता तक नहीं पहुंच पाई. 1999 में आरएलडी ने कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन यूपीए का हाथ थामा जबकि 2009 में एनडीए की. इस बदलाव से सीट संख्या तो 2 से बढ़कर 5 जरूर हुई लेकिन उनके समर्थन वाले गठबंधन सत्ता में नहीं पहुंच पाया. एनडीए में किस्मत आजमाने के बाद 2014 में आरएलडी फिर से यूपीए के साथ आई लेकिन उसे किसी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई.
शुरुआती संकेतों के मुताबिक 2019 में आरएलडी सपा-बसपा गठबंधन का समर्थन लेते हुए यूपी में कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए)
महाराष्ट्र में गठबंधन बदलने का रिकॉर्ड आरपीआई (ए) के पास है. 2004 और 2009 में पार्टी यूपीए का हिस्सा रही और 2004 को छोड़कर पार्टी को कोई सीट हासिल नहीं हुई. यूपीए में नाकामी के बाद आरपीआई (ए) ने 2014 में एनडीए के छत्रछाया में आई लेकिन वहां भी पार्टी को कोई कामयाबी नहीं मिली.
देश का उत्तर-पूर्व क्षेत्र में भी ऐसी एक पार्टी है जो चुनाव पूर्व में दो प्रमुख गठबंधनों को आजमा चुकी है. अरुणाचल कांग्रेस 1999 में एनडीए के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया लेकिन जब कोई सीट नहीं मिली तो 2004 में यूपीए के साथ आ गई लेकिन पार्टी को इसके बावजूद पार्टी को कोई सीट नहीं मिली.
आमतौर पर ये पार्टियां क्षेत्रीयता, जातिगत वोटबैंक के अलावा पुराने कानूनी मामलों से बचने के लिए गंठबंधनों का चुनाव करती रहती हैं. इनकी कमजोरी और ताकत दोनों मुख्यधारा की रानजनीतिक पार्टिया पूरी तरह भुनाती है ठगे जाते हैं तो केवल मतदाता.