नई दिल्ली। अयोध्या जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को 8 हफ्ते के लिए टालने का फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट ने अभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद देखने के लिए 6 हफ्ते दिए हैं. कोर्ट का कहना है हमारे विचार में 8 हफ्ते के वक्त का इस्तेमाल पक्ष मध्यस्थता के ज़रिए मसला सुलझाने के लिए भी कर सकते हैं. मध्यस्थता पर कोर्ट अगले मंगलवार को आदेश देगा. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही है.
सुनवाई के दौरान CJI ने कहा, ”अगर सभी पक्ष UP सरकार की तरफ से दिए दस्तावेजों के अनुवाद से सहमत तो कार्रवाई आगे बढ़ाएं. वहीं मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन का कहना था कि हम दस्तावेज देख के बताएंगे.” इसके बाद बेंच के सदस्य जस्टिस बोबडे ने कहा कि ”हम मध्यस्थता पर विचार कर रहे हैं. अगर हमारे आदेश से दोनों पक्षों में मध्यस्थता हो. 1% सफलता की भी उम्मीद हो, तो ज़रूर करना चाहिए.” हालांकि बेंच के सदस्य दवे और धवन ने सफलता पर शक जताया और कहा, ”ये गंभीरता से हो. मीडिया भी रिपोर्ट न करे.” वहीं वैद्यनाथन ने कहा, पहले ऐसी कई कोशिश विफल हुई हैं.
अयोध्या में जमीन विवाद को समझिए
अयोध्या में जमीन विवाद बरसों से चला आ रहा है, अयोध्या विवाद हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बड़ा मुद्दा रहा है. अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर होने की मान्यता है. मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. हिंदुओं का दावा है कि राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई. दावा है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी. 90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया था. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन हिस्सों में 2.77 एकड़ जमीन बांटी थी. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को मिला, राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को मिला. जमीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने जमीन बांटने के फैसले पर रोक लगाई थी. अयोध्या में विवादित जमीन पर अभी राम लला की मूर्ति विराजमान है.