नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पुलवामा और उरी हमले की जांच की निगरानी करने और पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की जनहित याचिका को ठुकरा दिया है. इन मामलों की जांच कोर्ट की निगरानी में करने की मांग की गई थी.
इस याचिका में हाल ही में जम्मू कश्मीर के पुलवामा और 2016 में उरी में हुए हमले में कथित प्रशासनिक विफलता की न्यायिक जांच की मांग की गई थी. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों पर किसी भी तरह से हमला करने वालों पर सख्त कानूनी कदम उठाए जाने की मांग की गई थी. यह याचिका एडवोकेट विनीत धांडा ने दी थी.
एशियन ऐज के मुताबिक इस याचिका में कहा गया था कि अगर किसी भारतीय नागरिक ने पाकिस्तान स्थित आतंकियों की मदद की है तो उनके खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया जाए. साथ ही उन्होंने कोर्ट से अपील की थी कि ‘एंटी-नेशनल गतिविधियों में सक्रिय तौर पर शामिल’ ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) के नेताओं के खिलाफ उठाए गए कदमों की भी जानकारी ली जाए.
इसके अलावा इसमें सरकार से भी अपील की गई थी कि हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस ली जाए और उनके बैंक खातों के संचालन पर भी रोक लगाई जाए.
बता दें कि 14 फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे. यह हमला एक आत्मघाती हमलावर ने किया था. इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी.
याचिका में करगिल युद्ध का भी जिक्र किया गया था. इसमें कहा गया था कि 1999 के करगिल युद्ध के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के लिए स्थिति और खराब हो गई है. 1999 के बाद से अब तक देश भर में 4000 जवानों की जान गई है. इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि राज्य में आतंकवाद और राजनीति समर्थित आतंकवाद अपने चरम पर है और युवाओं को बहका कर अपने ही सुरक्षा बलों पर हमले के लिए उकसाया जा रहा है.
याचिका में कहा गया था, ‘जम्मू-कश्मीर के धर्मगुरु और राजनेता राज्य को अस्थिर करने और युवाओं को भ्रमित करने के काम में लगे हुए हैं. वे युवाओं को स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर का नकली सपना दिखा रहे हैं. APHC जैसे राजनीतिक संगठन पाकिस्तान समर्थित संगठनों के साथ सक्रिय तौर पर मिलकर राज्य को अस्थिर करने में बहुत नकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं.’ साथ ही कहा गया था कि केंद्र सरकार इन गतिविधियों को मूक दर्शक बने हुए देख रही है और राज्य में आतंकवाद को बढ़ाने वालों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले रही है.