श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में 1989 में आतंकवाद के सिर उठाने के बाद से हुए सबसे भीषण आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए हैं. इस भीषणतम हमले के बाद सुरक्षा में हुई चूक के बाद अब कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं. रक्षा विशेषज्ञ और जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि इतने बड़े काफिले को इस तरह गुजरना ही नहीं था. सीआरपीएफ के इस काफिले में 2500 से ज्यादा जवान शामिल थे. इतना ही नहीं खुफिया एजेंसियों के अलर्ट को भी नजरअंदाज किया गया.
खूफिया एजेंसी ने 8 फरवरी को बाकायदा IED हमले का अलर्ट जारी किया था. इसमें साफ तौर पर हिदायत दी गई थी कि बगैर इलाकों को sanitize किये सुरक्षा काफिले आगे न बढ़े. लेकिन इस चेतावनी को भी नजरअंदाज किया गया. इस अलर्ट में 9 फरवरी को सबसे ज्यादा खतरा बताया गया था. खासकर तड़के सुबह रात के समय. और लेकिन बर्फबारी के चलते इस रास्ते पर कोई भी मूवमेंट नहीं हुआ. 14 फरवरी गुरवार को सीआरपीएफ के जवान 70 से ज्यादा वाहनों में सवार होकर जम्मू से श्रीनगर के लिए निकले और ये आतंकी हमला हो गया.
अगर खुफिया अलर्ट पर ध्यान दिया जाता तो शायद इस आत्मघाती हमले से होने वाले नुकसान को टाला जा सकता था. इस हमले को अंजाम देने वाले घाटी के अहमद डार ने श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर अपनी विस्फोटकों से लदी एसयूवी सीआरपीएफ की बस से टकरा दी और उसमें विस्फोट कर दिया. इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए और कई अन्य घायल हुए हैं. पाकिस्तान स्थित आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) ने इस भयावह आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है और आत्मघाती हमलावर का एक वीडियो जारी किया है जिसे हमले से पहले शूट किया गया था.
यह हमला श्रीनगर से करीब 30 किलोमीटर दूर लेथपोरा इलाके में हुआ. समूह ने कहा कि उसका एक कमांडर आदिल अहमद दार आत्मघाती हमलावर था.