नई दिल्ली। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने विरोधाभासी फैसला दिया है. जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने अधिकारियों की नियुक्ति और ट्रांसफ़र का अधिकार केंद्र के पास हो या दिल्ली सरकार के पास, इस मामले में अलग-अलग मत व्यक्त किया है.
तीन सदस्यीय बेंच का गठन
दिल्ली में सर्विसेज का नियंत्रण किसके पास होगा, इस पर दोनों जजों की राय में मतभेद होने के कारण इसका फैसला अब सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की बेंच करेगी. राज्य सूची में राज्य पब्लिक सर्विसेज की एंट्री 41 के अधीन दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों के संबंध में जस्टिस सीकरी और जस्टिस भूषण की राय भिन्न थी. जस्टिस भूषण ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास इस संबंध में कोई कार्यकारी शक्तियां नहीं हैं, जबकि जस्टिस सीकरी ने कहा कि ज्वाइंट सेक्रेट्री और उसके ऊपर की रैंक के अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार उपराज्यपाल के पास रहेगा. उससे नीचे की रैंक के अधिकारियों की नियुक्ति और ट्रांसफर का अधिकार GNCTD के पास रहेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच कमीशन की नियुक्ति का अधिकार केंद्र के पास होगा. दिल्ली सरकार कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट, 1952 के तहत इसकी नियुक्ति नहीं कर सकती. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल किसी भी मुद्दे पर अपनी राय बना सकते हैं लेकिन यहां ‘किसी’ का मतलब हर ‘छोटे-मोटे मुद्दे’ पर भी राय बनाने का नहीं है. उपराज्यपाल को रूटीन के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, बल्कि दिल्ली से जुड़े उन बुनियादी मसलों पर अपनी राय रखनी चाहिए जोकि राष्ट्रपति तक जा सकते हैं. उपराज्यपाल को फाइलें नहीं रोकनी चाहिए बल्कि कैबिनेट की भावना का सम्मान करना चाहिए.
ACB के गठन का अधिकार केंद्र के पास
हालांकि कई मुद्दों पर दोनों जजों के बीच सहमति भी देखने को मिली है. मसलन सुप्रीम कोर्ट ने कहा किसी मामले में विशेष सरकारी वकील की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है. एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी)के मामले में कोर्ट ने एकमत से व्यवस्था देते हुए कहा कि दिल्ली के ACB का अधिकार क्षेत्र केंद्र के पास होगा और इस कारण केंद्र को इस संबंध में अधिसूचना जारी करने का अधिकार होगा. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि बिजली के नियमन का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. इसी तरह कृषि भूमि की दरों का निर्धारण और सर्कल रेट का निर्धारण का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा.
दिल्ली सरकार की याचिका
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार ने याचिका दायर कर दिल्ली में वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले का अधिकार केंद्र के बजाय दिल्ली सरकार के पास होने की मांग की थी. साथ ही एक और याचिका दायर कर दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच के अधिकार क्षेत्र का दायरा बढ़ाकर इसमें केन्द्र सरकार से जुड़े मसलों पर भी कार्रवाई करने के अधिकार की मांग की थी. ये याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसलों के ख़िलाफ़ दायर की गई थीं, जिनमें हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की इन मांगों को ठुकराते हुए फैसला केन्द्र सरकार के पक्ष में सुनाया था.
ये है विवाद –
*केंद्र सरकार का 21 मई 2015 का नोटिफिकेशन- होम मिनिस्ट्री ने 21 मई को नोटिफिकेशन जारी किया था. नोटिफिकेशन के तहत एलजी के अधिकार क्षेत्र के तहत सर्विस मैटर, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड से संबंधित मामले को रखा गया है. इसमें ब्यूरोक्रेट के सर्विस से संबंधित मामले भी शामिल हैं.
*केंद्र सरकार का 23 जुलाई 2015 का नोटिफिकेशन- केंद्र सरकार द्वारा 23 जुलाई 2014 को जारी किए गए नोटिफिकेशन को भी चुनौती दी है. नोटिफिकेशन के तहत दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों को सीमित किया गया है और दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच का अधिकार क्षेत्र दिल्ली सरकार के अधिकारियों तक सीमित किया गया था. इस जांच के दायरे से केंद्र सरकार के अधिकारियों को बाहर कर दिया गया था.
दरअसल, पिछले साल 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने संविधान के अनुच्छेद-239 एए पर व्याख्या की थी. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि दिल्ली में उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के मंत्री परिषद की सलाह से काम करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी के अधिकार को सीमित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे, अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे, उस पर अमल करेंगे.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से मामले को उठाया गया और कहा गया कि सर्विसेज और एंटी करप्शन ब्रांच जैसे मामले में गतिरोध कायम है ऐसे में इस मुद्दे पर सुनवाई की जरूरत है.
केंद्र सरकार ने 23 जुलाई 2014 को नोटिफिकेशन जारी किया था. हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार ने उक्त नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आ गया. केन्द्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि एलजी को केंद्र ने अधिकार प्रदान कर रखे हैं. सिविल सर्विसेज का मामला एलजी के हाथ में है क्योंकि ये अधिकार राष्ट्रपति ने एलजी को दिया है. चीफ सेक्रेटरी की नियुक्ति आदि का मामला एलजी ही तय करेंगे. दिल्ली के एलजी की पावर अन्य राज्यों के राज्यपाल के अधिकार से अलग है. संविधान के तहत गवर्नर को विशेषाधिकार मिला हुआ है.
वहीं, दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कहा था कि एलजी को कैबिनेट की सलाह पर काम करना है. जैसे ही जॉइंट कैडर के अधिकारी की पोस्टिंग दिल्ली में हो, तभी वह दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन के अंदर आ जाता है. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि एंटी करप्शन ब्रांच दिल्ली सरकार के दायरे में होना चाहिए क्योंकि सीआरपीसी में ऐसा प्रावधान है. ग़ौरतलब है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य की दर्जा हासिल नहीं है, यह केन्द्र शासित प्रदेश है जिस पर काफ़ी हद तक केन्द्र का नियंत्रण है.