नई दिल्ली। शारदा चिट फंड घोटाले में सीबीआई के एक्शन का ऐसा रिएक्शन हुआ कि बीजेपी विरोधी खेमा फिर एक बार एक मंच पर आ गया. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दलों की इस मोर्चेबंदी ने सियासत का रुख बदल दिया है. कांग्रेस जहां इस घटना को एकजुटता के लिए बड़ा अवसर मान रही है, वहीं बीजेपी घोटालेबाजों के गठजोड़ का दावा कर महागठबंधन के अस्तित्व को कमजोर करार दे रही है. साथ ही वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर राजदार को बचाने का आरोप भी लगा रही है. ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या वाकई ऐसा कुछ है, जिसकी पर्दादारी हो रही है.
इसका जवाब तलाशने के लिए चिटफंड केस को तफ्सील से समझना पड़ेगा. दरअसल, शारदा चिटफंड घोटाला करीब 40 हजार करोड़ रुपये का है, जिसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल में जुलाई 2008 में शारदा ग्रुप के नाम से चिटफंड कंपनी बनाकर हुई थी. इस कंपनी के जरिए आम लोगों को ठगने के लिए लुभावने ऑफर दिए गए और करीब 10 लाख लोगों से पैसे लिए गए जिसमें पश्चिम बंगाल के अलावा ओडिशा और असम के लोग भी शामिल थे.
शारदा ग्रुप ने आम लोगों को बॉन्ड्स में निवेश से 25 साल में रकम 34 गुना करने के ऑफर दिए. साथ ही आलू के कारोबार में निवेश के जरिए 15 महीने में रकम दोगुना करने का सब्जबाग दिखाया गया. महज चार सालों में पश्चिम बंगाल के अलावा झारखंड, उड़ीसा और नॉर्थ ईस्ट राज्यों में 300 दफ्तर खोले गए. लेकिन जब लोगों को उनकी रकम लौटाने की बारी आई तो शारदा चिटफंड कंपनी के दफ्तरों पर ताला लगा मिला.
आरोप लगे कि शारदा चिटफंड कंपनी के मालिक सुदीप्तो सेन ने इस घोटाले के दौरान हर पार्टी के नेताओं से जान पहचान बढ़ाई. जिसकी वजह से इतने बड़े घोटाले को अंजाम दिया जा सका. लेकिन जब ये घोटाला खुला तो इसके लपेटे में ममता सरकार के कई मंत्री और सांसद आ गए.
2013 में हुआ घोटाले का खुलासा
शारदा घोटाले का खुलासा साल 2013 में हुआ, जिसकी जांच के लिए ममता सरकार ने पश्चिम बंगाल पुलिस की SIT जांच के आदेश दिए और इस SIT का नेतृत्व आईपीएस राजीव कुमार ने किया. एसआईटी हेड के तौर पर राजीव कुमार ने जम्मू-कश्मीर में शारदा घोटाले के मास्टरमाइंड और शारदा चिटफंड कंपनी के प्रमुख सुदीप्तो सेन और उनकी सहयोगी देवजानी मुखर्जी को गिरफ्तार किया गया.
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जांच दी
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी. सीबीआई पूछताछ में गिरफ्तार आरोपी देवजानी ने बताया कि एसआईटी ने उनके पास से एक लाल डायरी, पेन ड्राइव समेत कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज जब्त किए थे. अब सीबीआई का दावा है कि एसआईटी द्वारा जब्त लाल डायरी में चिटफंड कंपनी से रुपये लेने वाले नेताओं के नाम थे. आरोप है कि उस वक्त एसआईटी हेड रहे राजीव कुमार ने इस केस से जुड़े अहम दस्तावेज सीबीआई को नहीं सौंपे. सीबीआई का कहना है कि एसआईटी जांच के दौरान कुछ खास लोगों को बचाने के लिए घोटालों से जुड़े कुछ अहम सबूतों के साथ या तो छेड़छाड़ हुई थी या फिर उन्हें गायब कर दिया गया था.
इसी सिलसिले में सीबीआई ने कोलकाता के मौजूदा पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करना चाही लेकिन जब राजीव कुमार ने सीबीआई के नोटिसों का जवाब नहीं दिया तो सीबीआई की एक टीम बीते रविवार (3 जनवरी) को राजीव कुमार के घर पहुंची. पुलिस ने इसका विरोध किया, जिसके बाद पश्चिम बंगाल में सियासी घमासान शुरु हो गया.
घोटाले में टीएमसी नेताओं पर आंच
शारदा घोटाले में गिरफ्तार होने वाले टीएमसी के राज्यसभा सांसद कुणाल घोस पहले टीएमसी नेता थे, जिन्हें नवंबर 2013 में गिरफ्तार किया गया. घोष चिटफंड घोटाले वाली कंपनी शारदा ग्रुप की मीडिया यूनिट के ग्रुप सीईओ थे. इस केस में गिरफ्तार होने वाले दूसरे नेता श्रुंजॉय बोस थे. टीएमसी के राज्यसभा सांसद श्रृंजॉय को 21 नवंबर 2014 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. उनपर घोटाले के मास्टरमाइंड और शारदा ग्रुप के सीएमडी सुदीप्तो सेन से घोटाले की रकम में हिस्सा लेने का आरोप लगा. इसके बाद 14 दिसंबर 2014 को सीबीआई ने ममता बनर्जी के करीबी कहे जाने वाले मदन मित्रा को गिरफ्तार किया, जो उस वक्त ममता सरकार में परिवहन मंत्री थे. मदन मित्रा कई मौकों पर शारदा ग्रुप के कार्यक्रमों में घोटाले के मास्टरमाइंड सुदीप्तो सेन की तारीफें करते रहे थे.
शारदा घोटाले में सीबीआई ने सितंबर 2014 में पश्चिम बंगाल के पूर्व डीजीपी रजत मजूमदार को भी गिरफ्तार किया था, जो वर्तमान में टीएमसी के उपाध्यक्ष हैं और ममता के साथ धरने पर बैठे हैं. सीबीआई के मुताबिक रजत मजूमदार शारदा ग्रुप के लिए सिक्यॉरिटी एडवाइजर के तौर पर काम कर चुके हैं. 2016 में शारदा घोटाले से जुड़े एक स्टिंग ऑपरेशन में टीएमसी के उपाध्यक्ष और सांसद मुकुल रॉय का नाम भी सामने आया, जिसके बाद उनसे सीबीआई ने पूछताछ भी की. इसके बाद ममता बनर्जी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले मुकुल रॉय ने बीजेपी का दामन थाम लिया.
रोजवैली घोटाला
शारदा घोटाले के बाद बंगाल में ऐसा ही एक और चिटफंड घोटाला सुर्खियों में आया, जिसने रोजवैली घोटाले के नाम से सुर्खियां बटोरीं. रोज वैली चिटफंड घोटाले में रोज वैली ग्रुप ने लोगों से दो अलग-अलग स्कीम का लालच दिया और आम लोगों का पैसा हड़प लिया. होलिडे मेंबरशिप स्कीम के नाम पर लोगों को ज्यादा रिटर्न देने का झांसा देकर रोजवैली ग्रुप ने करीब 1 लाख निवेशकों को 15 हजार करोड़ रुपये का चूना लगा दिया.
रोजवैली ग्रुप के प्रबंध निदेशक शिवमय दत्ता इस घोटाले के मास्टरमाइंड बताए जाते हैं. इस घोटाले के तार बॉलीवुड और रिएल स्टेट कारोबारियों से जुड़े होने के आरोप हैं. रोजवैली घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने इस केस में दिसंबर 2016 में टीएमसी के सांसद तापस पॉल को गिरफ्तार किया था. जबकि इस केस में जनवरी 2017 में गिरफ्तार सुदीप बंदोपाध्याय टीएमसी के दूसरे सांसद थे. टीएमसी सांसद मुकुल रॉय का नाम रोजवैली घोटाले में भी सामने आया था.
शारदा घोटाले से लेकर रोजवैली घोटाले तक टीएमसी के नेताओं, मंत्री और सांसदों की गिरफ्तारी पर संयम बरतती आईं ममता बनर्जी ने कभी केंद्र सरकार के खिलाफ धरना नहीं दिया. लेकिन जब पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के पास सीबीआई पहुंचीं तो ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं. अब बीजेपी सवाल उठा रही है कि आखिर राजीव कुमार के पास ऐसे कौन से राज हैं, जिन पर पर्दा डालने के लिए ममता बनर्जी सड़क पर उतर आई हैं. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि जब टीएमसी के बड़े नेता जेल गए तब ममता बनर्जी ने धरना नहीं दिया लेकिन पुलिस कमिश्नर के लिए वो धरने पर बैठी हैं, पुलिस कमिश्नर के पास ऐसा क्या है जिसे छुपाने के लिए ममता बनर्जी सड़क पर बैठी हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है जब मुख्यमंत्री किसी पुलिस कमिश्नर को बचा रही हैं. इस पर ममता बनर्जी का कहना है कि मेरी पार्टी के नेताओं को जेल में रखा गया. मैंने ये अपमान भी सहा. मैं राज्य की मुखिया हूं तो मेरा फर्ज है कि सबकी रक्षा करूं. आप कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर बिना वॉरेंट आ जाते हैं. आपकी इतनी हिम्मत कैसे हुई.
बहरहाल, अब ये मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर हो गया है. लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पनपे इस विवाद ने सियासी भूचाल मचा दी है और जांच एजेंसियों की प्रक्रिया को राजनीतिक अखाड़े में तब्दील कर दिया है.