नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से ठीक पहले जवाहर लाल नेहरू को अनहोनी का अंदेशा हो गया था. 30 जनवरी, 1948 को बापू की हत्या से ठीक पहले नेहरू ने पांच पत्र लिखे, जिनसे जाहिर होता है कि वे देश में हिंदू महासभा और आरएसएस की बढ़ती गतिविधियों से बेचैन थे. उन्हें आभास हो गया था कि देश में हालात कुछ ठीक नहीं हैं.
22 नवंबर, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा. इसमें उन्होंने कहा, ‘हमारे सामने बाहरी खतरा उतना बड़ा नहीं है, जितना कि भीतरी खतरा है. प्रतिक्रियावादी ताकतें और सांप्रदायिक संगठन आजाद भारत का ताना-बाना ध्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं. वे इस बात को नहीं समझते कि अगर तबाही शुरू हुई तो वे खुद भी नहीं बचेंगे. इसलिए हमें इन ताकतों से सख्ती से निबटना होगा.’
इसके ठीक दो हफ्ते बाद 7 दिसंबर, 1947 को नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को लिखा, ‘मुझे इस तरह की सूचनाएं मिली हैं कि कुछ प्रांतों में आरएसएस ने बड़े प्रदर्शन किए हैं. अक्सर देखा गया है कि यह प्रदर्शन धारा 144 जैसे निषेधाज्ञा आदेश लागू होने के बावजूद किए गए. कुछ प्रांतीय सरकारों ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की और आदेशों की धज्जियां उड़ने दीं.’
नेहरू ने आगे लिखा- ‘हमारे पास इस बात के ढेरों सबूत हैं, जिससे यह पता चलता है कि आरएसएस अपने स्वभाव से निजी सेनाओं के जैसा संगठन है, जो नीति और संगठन के मामले में साफ तौर पर नाजियों का अनुसरण कर रहा है. हमारी यह बिल्कुल इच्छा नहीं है कि हम नागरिक आजादी में दखल दें, लेकिन बड़ी संख्या में लोगों को हथियारों की ट्रेनिंग देना और यह मंसूबा रखना कि उनका इस्तेमाल भी किया जाएगा, कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे बढ़ावा दिया जाए.’
पत्र में नेहरू ने कहा कि कुछ प्रांतीय सरकारों ने कछ ऐसी पत्र-पत्रिकाओं पर कार्रवाई की है जो समुदायों के बीच नफरत फैलाती हैं. इस मामले में पाकिस्तान के अखबारों को छोड़कर अगर किन्हीं अखबारों को सबसे ज्यादा दोष दिया जा सकता है तो वह आरएसएस के अखबार होंगे.
नेहरू ने अपने पत्र में नाजी आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि नाजी पार्टी ने जर्मनी को तबाह कर दिया और मुझे बिलकुल भी संदेह नहीं है कि अगर यह प्रवृत्तियां इसी तरह भारत में बढ़ती रही तो वह भी भारत को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगी.
नेहरू का यह अंदेशा कुछ ही दिन में सही साबित हो गया और 20 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला भवन में गांधी जी की प्रार्थना सभा में बम फेंका गया. इस घटना के दो दिन बाद ही 22 जनवरी 1948 को नेहरू ने गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को पत्र लिखा. इसमें उन्होंने लिखा, पिछले कुछ हफ्ते से दिल्ली के ज्यादातर उर्दू और हिंदी अखबार जहर उगल रहे हैं. गांधी जी के उपवास के दौरान यह बात खासतौर पर दर्ज की गई. यह अखबार या इनमें से कुछ अखबार हिंदू अखबार हिंदू महासभा के आधिकारिक अंग हैं या इससे जुड़े हुए हैं. हिंदू महासभा और आरएसएस के रवैये को देखते हुए उनके प्रति उदासीन बना रहना दिन-पर-दिन कठिन होता जा रहा है.
ये पत्र साफ इशारा करते हैं कि नेहरू खतरे को बहुत तेजी से भांप रहे थे. 29 दिसंबर 1947 को रीवा में आरएसएस के एक कार्यक्रम में पहुंचे सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने संघ की जमकर तारीफ की थी. नेहरू ने इस पर उनसे भी कहा कि मुझे यह पढ़कर दुख हुआ कि आपने आरएसएस की हौसलाफजाई की. यह संगठन मौजूदा भारत में सबसे ज्यादा शरारतपूर्ण संगठन है.
महात्मा गांधी की हत्या से ठीक तीन दिन पहले 27 जनवरी 1948 को नेहरू ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के पहले डायरेक्टर टी जी संजीवी पिल्लई को पत्र लिखा. इसमें उन्होंने कहा कि दिल्ली और अन्य प्रांतों से विभिन्न स्त्रोतों से जो खबरें मेरे पास पहुंची हैं, उनसे पता चलता है कि हिंदू महासभा लगातार आक्रामक और उत्तेजक गतिविधियों में शामिल हो रही है. नेहरू ने संजीवी से पूछा कि अगर आपको इन सबके बारे में पता है तो आप क्या कार्रवाई कर रहे हैं.
राष्ट्रपिता की हत्या से ठीक दो दिन पहले 28 जनवरी 1948 को नेहरू ने पटेल को लिखे खत में कहा कि संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) सरकार के मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मुझे बताया है कि आरएसएस के लोगों को भरतपुर में हथियारों की ट्रेनिंग दी जा रही है. इनके शिविर में जाने वाले हथियारों के साथ लौटे हैं.
हिंदू महासभा की गतिविधियों से नेहरू बेचैन थे. नेहरू ने अपनी सरकार में उद्योग मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी से भी इस बाबत बात की. मुखर्जी हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे. नेहरू ने उनसे कहा कि अब पानी गले तक पहुंच गया है. नेहरू ने कहा कि आप हिंदू महासभा से करीब से जुड़े हुए हैं. इसके चलते हमसे सवाल किया जा रहा है. ये हालात उसी तरह आपको भी शर्मिंदा कर रहे होंगे, जिस तरह मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं. इसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने खुद को हिंदू महासभा से अलग कर लिया.
24 जनवरी को कुछ लोग बिड़ला भवन के गेट के बाहर खड़े हो गए और गांधी मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे. नेहरू गांधी से मुलाकात के बाद बाहर आ रहे थे. नारे सुनकर नेहरू अपनी कार से नीचे उतरे और जोर से चिल्लाए, तुम्हारी यह बात कहने की हिम्मत कैसे हुई, आओ पहले मुझे मारो. नेहरू के इस तरह चिल्लाने पर प्रदर्शनकारी वहां से चुपचाप चले गए. महात्मा गांधी के प्रति ऐसी नफरत देख नेहरू व्यथित हो चले थे. इधर बापू ने सुरक्षा लेने से भी इनकार कर दिया था. बापू जितने बेखौफ थे, नेहरू उतने ही बेचैन.
नेहरू को अनहोनी का अंदेशा हो गया है. जिस अनहोनी की आशंका थी, वो सही साबित हुई. 30 जनवरी को वह मनहूस दिन आया, जब तीन गोलियों ने पूरे देश को सन्न कर दिया. 30 जनवरी 1948 को बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे ने बापू की गोली मारकर हत्या कर दी.