नई दिल्ली। देश की राजनीति में इस समय प्रियंका गांधी का औपचारिक तौर पर राजनीति में आना सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है. ऐसे में कयासबाजी भी खूब हो रही है. दावे किए जा रहे हैं कि प्रियंका के राजनीति में आने से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा. लेकिन ये तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है. खुद बीजेपी को लगता है कि प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए कांग्रेस का प्रभारी महासचिव निुयक्ति किए जाने से आगामी लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी गठबंधन के खिलाफ लड़ाई में उसे फायदा होगा.
इस बात के लिए बीजेपी के पास अपने दावे हैं. पार्टी का मानना है कि 2014 में तो उसके पास चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह संगठन भी नहीं था. लेकिन अब पार्टी विपक्ष से लड़ने में बेहतर तरीके से तैयार है. बीजेपी नेताओं ने कहा कि पार्टी बूथ स्तर पर मजबूत उपस्थिति और बीते पांच वर्षो में मोदी सरकार के कामों के कारण 2014 की तुलना में उत्तर प्रदेश में विपक्ष से लड़ने के लिए बेहतर तरीके से तैयार है.
पार्टी का एक और दावा है कि कांग्रेस का भी वोट बैंक वही है, जो सपा और बसपा का है. ऐसे में अगर प्रियंका ने कुछ असर छोड़ा तो सपा और बसपा के वोट कटेंगे. हालांकि बीजेपी के कुछ नेताओं का ये भी मानना है कि प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाए जाने से कांग्रेस को राज्य में विश्वसनीयता या उसके उद्देश्यों को मजबूती मिल रही है और यह गठबंधन के खिलाफ पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा.
सपा-बसपा द्वारा गठबंधन की घोषणा के बाद कांग्रेस को किनारे कर दिए जाने के कुछ दिनों बाद प्रियंका गांधी की नियुक्ति हुई है. कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह राज्य में सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, हालांकि पार्टी ने समान विचारधारा वाले दूसरे दलों के लिए अपने दरवाजे खुले रखे हैं. भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन करते हुए 71 सीटें जीती थीं, जबकि दो सीटों पर उसके सहयोगियों को भी जीत हासिल हुई थी. पार्टी नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे.
भाजपा नेताओं ने हालांकि मोदी के दूसरी सीट से चुनाव लड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया है. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के प्रचार में तेजी आने के बाद इसपर फैसला होने की उम्मीद है. कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं की मांग है कि प्रियंका गांधी को वाराणसी से मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहिए.
भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी को अच्छा परिणाम पाने के लिए 2014 की तुलना में अपने कम वोट प्रतिशत में सुधार करना होगा और सपा, बसपा को और अधिक सुधार करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के कई उम्मीदवार हैं और चुनाव में प्रधानमंत्री कौन होगा, यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा होगा.
नेताओं ने कहा कि 2019 का चुनाव एक ‘वैचारिक जंग’ और ‘बहुत ही महत्वपूर्ण चुनाव’ रहने वाला है. उन्होंने कहा कि पार्टी 2014 के मुकाबले इसे और अधिक मजबूती से लड़ेगी. पार्टी के एक नेता ने कहा, “2014 में हम पांच राज्यों में सत्ता में थे, आज हम 16 राज्यों में हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं की संख्या 11 करोड़ तक पहुंच गई है. सरकारी योजनाओं के 22 करोड़ लाभार्थी हैं. हमें पूर्ण बहुमत मिलेगा और नरेंद्र मोदी 2019 में फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे.”
भाजपा पश्चिम बंगाल, ओडिशा और केरल जैसे राज्यों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है, जहां पार्टी को 2014 चुनाव में बहुत ही कम या कोई सीट हासिल नहीं हुई थी. पार्टी ने पश्चिम बंगाल में आक्रामक रणनीति अपना रखी है, जहां उसे 42 में से 23 सीटें जीतने की उम्मीद है. भाजपा का अप्रैल के पहले सप्ताह में कोलकाता में एक विशाल रैली के साथ-साथ राज्य के विभिन्न हिस्सों में 300 से अधिक रैलियां करने का कार्यक्रम है. पार्टी का लक्ष्य ओडिशा की 21 लोकसभा सीटों में से कम से कम आधी सीटें और केरल में कम से कम पांच सीटें जीतने का है.
महाराष्ट्र में जहां कांग्रेस व राकांपा पहले ही एक व्यापक समझ पर पहुंच चुकी हैं, वहीं भाजपा नेताओं ने शिवसेना के साथ समझौते पर पहुंचने का विश्वास जताया है. पार्टी नेताओं ने कहा कि वह पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक से संबंधित चिंताओं को हल करने के लिए भी कदम उठाएंगे. भाजपा अपने दम पर कितनी सीटों पर लड़ाई लड़ेगी, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। लेकिन पार्टी नेताओं ने संकेत दिया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन करीब सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगा.