नई दिल्ली/जम्मू। जम्मू- कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन को 29 साल का वक्त गुजर चुका है, लेकिन सरकार के पास आंकड़ा तक नहीं है कि आखिर कितने कश्मीरी पंडितों को इस दौरान अपनी जान गंवानी पड़ी थी. जनवरी 1990 में घाटी से कश्मीर पंडितों के विस्थापन का सिलसिला शुरू हुआ था और वहां से भगाए गए पंडित कभी वापस अपने घरों में नहीं जा सके. इस मुद्दे पर देश की सियासत खूब गरम हुई, लेकिन आज तक किसी भी सरकार ने कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए ठोस कदम नहीं उठाए.
कश्मीर में करीब 30 साल पहले 3 लाख से ज्यादा कश्मीर पंडितों को जबरन वहां से निकाला गया था. इस दौरान सैकड़ों मंदिर तबाह कर दिए गए, लेकिन इस मामले की न तो कोई SIT जांच हुई और न ही किसी आयोग का गठन किया गया. लोकतांत्रिक देश के नागरिक कश्मीर पंडितों को अपने ही घरों को छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा. उस दौर में अलगाववादी और आतंकी राज्य में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाने के लिए आमादा थे. समुदाय के सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई, यहां तक कि पंडितों के दरवाजों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाए गए थे. अखबारों में धमकाने वाले इश्तेहार छपा करते थे.
जुल्म हुआ खत्म, नहीं भरे जख्म…
उन दिनों घाटी में सब तरफ हिन्दू विरोधी नारे गूंजा करते थे. मस्जिदों में लगे स्पीकर भी पंडितों को डराने और धमकाने का जरिया बने. साल 1990 की 19-20 जनवरी को कश्मीरी पंडितों को घाटी से बेदखल करने का सिलसिला शुरू हुआ और महीने भर में 3 लाख पंडित कश्मीर छोड़कर देश के अलग-अलग हिस्सों में बसने को मजबूर हो गए. आज भी वहां से विस्थापित लोग अपना दर्द बयान करते हुए सिहर जाते हैं.
कश्मीरी पंडितों पर जुल्म की कहानी भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन जख्म का दर्द अब भी हरा ही है. बावजूद इसके हमारी सरकार को नहीं मालूम कि इस दौरान किसने कश्मीरी पंडितों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. इंडिया टुडे संवाददाता अशोक उपाध्याय ने इस मामले में सूचना के अधिकार के तहत गृह मंत्रालय में एक RTI दायर की, जिसमें पूछा गया कि इस दौरान आतंकियों ने कितने कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया और इन मामलों में अब तक क्या-क्या प्रोग्रेस हुई है. लेकिन गृह मंत्रालय का जवाब चौंकाने वाला था.
RTI पर गृह मंत्रालय का जवाब
मंत्रालय की ओर से इंडिया टुडे की RTI के जवाब में कहा गया कि उसे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है. साथ ही जवाब में कहा गया कि इसके लिए जम्मू कश्मीर सरकार से जानकारी मांगी जाए क्योंकि साल 2005 में बना RTI कानून राज्य में लागू ही होता. अब गृह मंत्रालय के इस जवाब ने कश्मीर में नए सियासी विवाद को जन्म दे दिया है.
जम्मू- कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष रविंद्र शर्मा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह बीजेपी सरकार की लापरवाही दर्शाता है कि उन्होंने अब तक आंकड़े नहीं जमा किए हैं. उनके पास अब तक कश्मीरी पंडितों की मौत और आतंकियों के खिलाफ दर्ज किए गए मामलों की कोई जानकारी नहीं है. वहीं इस पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना का कहना है कि यह गृह मंत्रालय के अधिकारियों की लापरवाही को दिखाता है, जबकि उस दौरान घाटी में सैकड़ों कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हुआ था. उन्होंने कहा कि इस मामले के लिए जांच आयोग गठित होना चाहिए. रैना ने यह भी कहा कि कांग्रेस को इसमें बोलने का कोई हक नहीं है क्योंकि जब यह सब हो रहा था, तब कांग्रेस सिर्फ मूकदर्शक बनी हुई थी.
सवाल यह है कि सरकार ने अब तक कश्मीरी पंडितों की हत्या की जांच के लिए आयोग का गठन क्यों नहीं किया? क्या पंडितों को न्याय दिलाना सरकार की प्राथमिकता नहीं है या फिर वे अब राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक का जरिया नहीं रह गए हैं? वजह कुछ भी हो लेकिन इतना साफ है कि सभी सरकारें कश्मीर पंडितों को न्याय दिलाने में अब तक विफल ही साबित हुई हैं.