हिमांशु शेखर
कर्नाटक में एक बार फिर से सरकार बनाने के लिए तोड़-जोड़ का खेल शुरू हो गया है. पिछले तीन-चार दिनों में जो हुआ है उससे साफ है कि पिछले साल हुए चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी भाजपा सरकार बनाने के बावजूद इसे बचा नहीं पाने के सदमे से अब तक उबरी नहीं है. भाजपा ने राज्यपाल की मदद से अपने नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री तो बनवा दिया था लेकिन, जब सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया तो बहुमत साबित करने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
224 विधायकों वाली राज्य विधानसभा में अभी जनता दल सेकुलर और कांग्रेस गठबंधन को बहुमत हासिल है. इस गठबंधन में कम सीटें होने के बावजूद जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री हैं. बीते कुछ दिनों से राज्य में चल रही सियासी उठापटक के बीच सूत्र बताते हैं कि कि जिन दो निर्दलीयों ने कुमारस्वामी सरकार से समर्थन वापस लिया है, उन्होंने ऐसा भाजपा के कहने पर किया है. भाजपा भी कुछ दिन पहले अपने 104 विधायकों को कर्नाटक से काफी दूर और दिल्ली के काफी पास अपनी सरकार वाले राज्य हरियाणा के गुरुग्राम में ले आई. खबरों में यह बात आ रही है कि कांग्रेस के पांच से छह विधायक इस्तीफा दे सकते हैं.
बताया जा रहा है कि अगर दो निर्दलीय विधायक और बहुजन समाज पार्टी के एक विधायक को भी भाजपा अपने पाले में ले आती है तो उसकी संख्या 107 पर पहुंचेगी. इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा में विधायकों की संख्या को घटाकर 213 पर लाना होगा. इसके लिए जरूरी यह होगा कि वह कांग्रेस के कम से कम 11 विधायकों से इस्तीफा दिलाने में कामयाब हो.
कर्नाटक में भाजपा की गतिविधियों में हिस्सा लेने वाले भाजपा के एक नेता यह दावा करते हैं कि इतने कांग्रेसी विधायक उनके संपर्क में हैं कि वे कुमारस्वामी की सरकार गिरा सकें. लेकिन दूसरी तरफ वे यह भी बताते हैं कि भाजपा की योजना लोकसभा चुनावों से पहले कर्नाटक में अपनी सरकार बनाने की नहीं है. वे कहते हैं, ‘भाजपा कर्नाटक लोकसभा चुनावों में इस अवधारणा के साथ नहीं उतरना चाहती है कि हमने कुमारस्वामी सरकार को गिराकर अपनी सरकार बना ली.’
वे आगे जोड़ते हैं, ‘पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि कर्नाटक में भाजपा के सरकार बनाने से लोकसभा चुनावों में फायदा से अधिक नुकसान होगा. हमारे लिए सबसे अनुकूल स्थिति यह होगी कि कुमारस्वामी सरकार गिर जाए, हम सरकार नहीं बनाएं और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग जाए. इससे सरकार गिराने का दोष भाजपा पर नहीं आएगा बल्कि यह माना जाएगा कि कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा देकर सरकार गिरा दिया. इसलिए कर्नाटक भाजपा के नेता कांग्रेसी नेता डीके शिवकुमार के असंतोष की चर्चा बार-बार कर रहे हैं.’
इसके फायदों के बारे में वे बताते हैं, ‘इससे एक स्थिति यह भी पैदा हो सकती है कि लोकसभा चुनावों में टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और जेडीएस में मतभेद हो और ये गठबंधन चुनावों के पहले ही खत्म हो जाए. लोकसभा चुनावों में अगर हमारा प्रदर्शन ठीक रहता है और केंद्र में हमारी वापसी होती है तो फिर हमारे सामने दो विकल्प होंगे. या तो फिर से विधानसभा चुनाव कराया जाए या फिर जेडीएस को अपनी सहयोगी के तौर पर लाकर भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनाई जाए. क्योंकि फिर से केंद्र में भाजपा की वापसी के बाद जेडीएस के हमारे पाले में आने की संभावना बढ़ जाएगी.’
भाजपा के अंदर एक चर्चा यह भी चल रही है कि अगर कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार गिर जाती है और वहां राष्ट्रपति शासन लग जाता है तो इसका एक लाभ यह भी होगा कि कर्नाटक से कांग्रेस पार्टी को मिल रहे संसाधनों में कमी आएगी और इसका चुनावी लाभ भाजपा को दूसरे राज्यों में भी मिल सकता है.
इन चर्चाओं के आधार पर भाजपा के अंदर यह स्थिति दिख रही है कि पार्टी कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस सरकार को गिराने में तो दिलचस्पी ले रही है, लेकिन हाल-फिलहाल यहां अपनी सरकार बनाने में उसकी कोई खास दिलचस्पी नहीं है.
फिलहाल ताजा खबर यह है कि बीते तीन-चार दिन से गुरुग्राम के एक होटल में जमे भारतीय जनता पार्टी के सभी 104 विधायक बेंगलुरु वापस लौट रहे हैं. भाजपा विधायक दल के नेता बीएस येद्दियुरप्पा ने इसकी पुष्टि की है. वे ख़ुद बेंगलुरु पहुंच चुके हैं. उधर, कांग्रेस का कहना है कि ऑपरेशन लोटस असफल हो गया है. पार्टी नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वरा ने कहा, ‘हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोई कोशिश सफल नहीं होगी.’
लेकिन पुरानी कहावत है कि राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता.