नई दिल्ली/लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को उत्तर प्रदेश में रोकने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में तीसरे पार्टनर के तौर पर राष्ट्रीय लोकदल भी शामिल हो गई है. इसका औपचारिक ऐलान 19 जनवरी के बाद किया जाएगा. आरएलडी के शामिल होने के बाद पश्चिम यूपी में सपा-बसपा गठबंधन का समीकरण और भी मजबूत होता दिख रहा है. ऐसे में बीजेपी के लिए इस इलाके में मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
पश्चिम उत्तर प्रदेश के तहत 22 लोकसभा सीटें आती हैं. सपा-बसपा और आरएलडी के बीच सीट बंटवारे का फैसला कर लिया गया है. सूत्रों के मुताबिक पश्चिम यूपी की 11 सीटों पर बसपा, 8 सीटों पर सपा और 3 सीटों पर आरएलडी चुनावी मैदान में उतरेगी. पश्चिम यूपी बसपा का मजबूत गढ़ माना जाता है, यही वजह है कि सपा से ज्यादा सीटें बसपा को मिली हैं.
बसपा के खाते में पश्चिम यूपी की नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ-हापुड़, बुलंदशहर, आगरा, फतेहपुर सिकरी, सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर, नगीना और अलीगढ़ सीटें आई हैं. मौजूदा समय में इन सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. वहीं, सपा हाथरस, कैराना, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, मैनपुरी, फिरोजाबाद और एटा लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि आरएलडी बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा सीट पर किस्मत आजमाएगी. इन 11 सीटों में से 2 पर सपा और उपचुनाव में जीती कैराना सीट पर आरएलडी के पास है. इसके अलावा सभी 8 सीटें बीजेपी के पास है.
पश्चिम यूपी में दलित, मुस्लिम, जाट मतदाता अच्छी खासी तादाद में हैं. पश्चिम यूपी की करीब एक दर्जन सीट हैं, जहां 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है. इनमें सहारनपुर में 39 फीसदी, कैराना में 39 फीसदी, मुजफ्फरनगर में 37, मुरादाबाद में 45, बिजनौर में 38 फीसदी, अमरोहा में 37 फीसदी, रामपुर में 49 फीसदी, मेरठ में 31 फीसदी, संभल में 46 फीसदी, नगीना में 42 फीसदी और बागपत में 17 फीसदी हैं.
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगे के चलते मुस्लिम और जाट समुदाय के बीच खाई गहरी हो गई थी. इसके अलावा सपा-बसपा और कांग्रेस को अलग-अलग चुनाव लड़ने का फायदा बीजेपी को मिला था. मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने विपक्ष का पूरी तरह से सफाया कर दिया था. इसी रणनीति पर बीजेपी ने 2017 के चुनाव में भी कमल खिलान में कामयाब रही है.
पश्चिम यूपी में मुस्लिम और दलित मतदाता किंगमेकर की भूमिका में है. इसके अलावा पश्चिम यूपी की कई लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां जाट मतदाताओं की अहम भूमिका है. इस तरह से सपा-बसपा और आरएलडी मिलकर इन वोटों को साथ रख पाने में सफल होते हैं तो उन्हें जीत की राह आसान हो सकती है. बसपा ने पश्चिम यूपी की उन्हीं सीटों को लिया हैं जो मुस्लिम और दलित बहुल मानी जाती है. इससे साफ जाहिर है कि मायावती यादव वोटों से ज्यादा दलित और मुस्लिम पर ज्यादा भरोसा जाता रही हैं.
पश्चिम यूपी की जिन 22 सीटें सामने आई हैं, इनमें से यादव बहुल सीटें सपा के खाते में हैं. इनमें मैनपुरी, एटा, और फिरोजबाद सीट शामिल हैं. इसके अलावा मुस्लिम बहुल सीटों में मुरादाबाद, रामपुर, संभल और कैराना जैसी भी सीटें है. बसपा इस सीटों पर बहुत कुछ करने के बाद भी जीत नहीं सकी है. जबकि इन सीटों पर सपा का प्रदर्शन बेहतर रहा है.
हालांकि, कांग्रेस अगर पश्चिम यूपी में सपा-बसपा के खिलाफ मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारती है तो फिर मुकाबला दिलचस्प हो जाएगा. इस इलाके में यादव मतदाता बहुत कम है. ऐसे में फिर त्रिकोणीय चुनावी मुकाबला हो सकता है.