मायावती, ये एक ऐसा नाम है जिसे अब किसी पहचान की आवश्यकता नहीं । एक सशक्त राजनेता और तेज तर्रार स्वभाव वाली मायावती के निर्णय लेने की क्षमता पर किसी को कोई शक नहीं रहा । एक सामान्य से दल को देश के बड़े दलों के समकक्ष खड़ा कर, यूपी के मुख्यमंत्री पद तक धमक जमाने वाली मायावती 63 बरस की हो गई हैं । मायावती से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जो उनके उतार-चढ़ाव भरे इस सफर को बयां करते हैं । उनके जन्मदिन के मौके पर जानते हैं कुछ ऐसे किस्से जो आपको मायावती के व्यक्तिगत स्वभाव से रूबरू कराएंगे ।
1977 में रखा राजनीति में कदम
मायावती 1977 में कांशीराम के संपर्क में आईं, कांशीराम देश में दलित राजनीति को एक नए स्तर पर ले जा रहे थे, जिसमें मायावती उनका दाहिना हाथ बनकर जुड़ गईं । 14 अप्रैल 1984 को बसपा के गठन के बाद मायावती पूर्ण रूप से पार्टी से जुट गईं । 1984 में कैराना, 1985 में बिजनौर और 1987 में वह उत्तर प्रदेश के हरिद्वार से बसपा की लोकसभा की उम्मीदवार बनकर चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन तीनों ही बार उनको हार का सामना करना पड़ा।बिजनौर से जीता पहला चुनाव
साल 1989 के आमचुनाव में मायावती बिजनौर से सांसद चुनी गईं । लेकिन 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में उन्हें अपनी सीट गंवानी पड़ी । ये वो दौर था जब कांशीराम ने मायावती को पार्टी का महासचिव बना दिया था । मायावती ने पार्टी की सेवा की और बहुजन समाज पार्टी को उस कद तक पहुंचा दिया जहां उनका दल उत्तर प्रदेश का प्रमुख दल बन गया और सत्तासीन भी हुआ । मायावती अपने तेज तरार्र भाषणों और स्वभाव के लिए जानी जाती रही हैं । लेकिन उनके जीवन से जुड़े कुछ मौके ऐसे भी हैं जब वो उतार चढ़ाव से गुजरी और अंदर तक टूट गईं । गेस्ट हाउस कांड
मायावती के जीवन से जुड़ा एक काला अध्याय है, गेस्ट हाउस कांड । इस घटना में मायावती को एक कमरे में बंद कर दिया गया था और उनके कपड़े फाड़ दिए गए थे । मायावती के साथी भी उनका साथ छोड़ कर भाग गए । इसी दौरान सिर्फ एक शख्स ने उनकी मदद की, जो बसपा से नहीं बल्कि भाजपा से था । अपनी जान पर खेलकर इस नेता ने मायावती की जान बचाई । मायावती की जान बचाने वाले फर्रुखाबाद से भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी थे । ब्रह्मदत्त की हत्या कर दी गई
घटना के कुछ समय बाद ब्रह्मदत्त द्विवेदी की गोली मारकर हत्या कर दी गई । उनकी हत्या के बाद जब मायावती उनके घर पहुंची तो फूट-फूटकर रोने लगी । माया ने घटना के बारे में बात करते हुए कहा कि जब मैं मुसीबत में थी तो मेरी पार्टी के लोग मुझे झोड़कर भाग गए थे लेकिन ब्रह्मद्त्त भाई ने अपनी जान की परवाह किए बिना मेरी जान बचाई । मायावती ने उनको अपना भाई माना और बसपा की नेता होने के बावजूद वह फर्रुखाबाद से ब्रह्मदत्त द्विवेदी के लिए प्रचार करती रहीं । ब्रह्मदत्त के मरने के बाद वो उनकी पत्नी के लिए भी प्रचार करती रहीं, उन्होने उनके सामने अपनी पार्टी से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा ।