गुवाहाटी। असम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा चाहते हैं कि भारत के राष्ट्रगान में उत्तर-पूर्व (नॉर्थ-ईस्ट) के लोगों के हिंदुस्तान की आजादी में और देश के तरक्की में योगदान को देखते हुए एवं पूर्वोत्तर के लोगों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए राष्ट्रगान में उत्तर-पूर्व का भी उल्लेख होना चाहिए! इसके लिए कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और असम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल भी पिछले सत्र में दाखिल कर चुके हैं.
जी मीडिया के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने कहा कि चूंकि सिंध अब भारत का हिस्सा नहीं रहा इसलिए राज्यसभा में राष्ट्रगान से सिंध शब्द को हटाकर उत्तर-पूर्व का नाम जोड़ने के लिए साल भर पहले भी वह एक प्राइवेट मेंबर बिल लाए थे पर तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि सिंध भले ही पाकिस्तान में शामिल हो गया हो, पर सिंधी लोग भारी तादाद में आज़ाद हिंदुस्तान में रहते हैं और उनके सम्मान को ठेस न पहुंचे इसलिए अब सांसद रिपुन बोरा सदन के पिछले सत्र में राष्ट्रगान से सिंध शब्द को हटाए बिना, उत्तर-पूर्व (नॉर्थ-ईस्ट) के नाम को जोड़ने के लिए दूसरी बार प्राइवेट मेंबर बिल को सदन में पेश किया है और राज्यसभा में इसे स्वीकार करते हुए दर्ज कर लिया गया है!
असम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा ने साफ़ किया की इस बिल के पीछे उनकी कोई राजनीतिक मंशा नहीं हैं बल्कि वे मानते हैं कि अक्सर नॉर्थ-ईस्ट के लोग राष्ट्रगान में अपने स्थान का उल्लेख न पाकर दुखी होते हैं जबकि ब्रिटिश राज में उत्तर-पूर्व बंगाल प्रांत के तहत आता था और स्वाधीनता की लड़ाई में उत्तर-पूर्व के लोगों का भी बहुत योगदान रहा है और देश की तरक्की में भी उत्तर-पूर्व मजबूती से कदम से कदम मिलाकर चल रहा हैं इसलिए उत्तर-पूर्व के लोगों के जज़्बात की कद्र करते हुए उन्हें देश से अलग-थलग न मानते हुए और नार्थ-ईस्ट के लोगों में देश प्रेम की भावनाओं को जागृत करने के लिए राष्ट्रगान में सिंध शब्द के साथ ही उत्तर-पूर्व शब्द को जोड़ना देश के उत्तर-पूर्व लोगों के प्रति सम्मान प्रकट करना होगा.
कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने इसके साथ ही कहा कि संविधान में राष्ट्रगान में संशोधन का प्रावधान पहले से ही मौजूद है कि देश की सामाजिक परिस्थिति और राजनीतिक स्थिति के हिसाब से राष्ट्रगान में संशोधन संभव हैं. संविधान में भारत के प्रथम राष्ट्रपति से जब राष्ट्र गान स्वीकृत हुआ था तब ही यह नोटिफिकेशन भी दिया गया था कि भविष्य में देश की राजनीतिक, सामाजिक परिस्थिति को देखते हुए जरूरत पड़ी तो राष्ट्रगान में संशोधन किया जा सकता है. ऐसा करने से गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के राष्ट्रगान की रचना पर कहीं कोई आंच नहीं आएगी.