आपने अभी तक तो यह जाना कि उत्तर प्रदेश में अवैध तरीके से हो रहे खनन के गोरखधंधे की छानबीन के सिलसिले में सीबीआई ने निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की चहेती रहीं आईएएस अधिकारी बी चंद्रकला के लखनऊ से लेकर तेलंगाना तक के ठिकानों पर छापेमारी की। सीबीआई ने समाजवादी पार्टी के एमएलसी रमेश कुमार मिश्र, उसके भाई दिनेश कुमार मिश्रा, पूर्ववर्ती सत्ता के करीबी अंबिका तिवारी, बसपा से चुनाव लड़ चुके संजय दीक्षित, पट्टाधारक सत्यदेव दीक्षित, लीज होल्डर आदिल खान, खनन विभाग के रिटायर्ड क्लर्क राम अवतार सिंह, करण सिंह, हमीरपुर के माइनिंग अफसर मोईनुद्दीन, हमीरपुर के खनन क्लर्क रामआसरे प्रजापति के ठिकाने खंगाले। सपाई एमएलसी रमेश मिश्र अखिलेश यादव के काफी करीबी रहे हैं और प्रजापति के साथ खनन के गोरखधंधे में लिप्त रहे हैं। आईएएस अफसर चंद्रकला समेत सीबीआई ने अभी 11 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया है। इसके पहले सीबीआई शामली खनन घोटाले में भी गायत्री के करीबी विकास वर्मा, अमरेंद्र सिंह, शामली के तत्कालीन असिस्टेंट जियोलॉजिस्ट डॉ. अदल सिंह, आमिर सिद्दीकी, जेपी पांडेय, सतीश कुमार, संदीप राठी, मंगल सेन वर्मा, रमेश कुमार गहलयान समेत कई लोगों के खिलाफ 23 फरवरी 2017 को ही एफआईआर दर्ज कर चुकी है। तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति पहले से जेल में है। आप जानते ही हैं कि प्रजापति अवैध खनन के साथ-साथ बलात्कार के भी एक मामले में अंदर है।
समाजवादी पार्टी के शासनकाल में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की खनन में अत्यधिक दिलचस्पी थी। खनन को लेकर बाप-बेटे में खींचतान मची थी। सीबीआई ने अवैध खनन मामले की जांच दो अगस्त 2016 को शुरू की थी। चपेट में आने के डर से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गायत्री प्रजापति को 11 सितम्बर 2016 को मंत्रिमंडल से बाहर निकाल दिया था। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश पर इतना दबाव बढ़ाया कि निष्कासन के 13 दिन बाद ही 25 सितम्बर 2016 को अखिलेश यादव ने गायत्री प्रजापति को फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया और फिर खनन विभाग ही दे दिया। अखिलेश पर मुलायम का दबाव था या समझौता। हम यह कहते हैं कि गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल में वापस लेने और फिर से खनन विभाग देने के पीछे कोई दबाव नहीं था, बल्कि पिता-पुत्र में समझौता था। खनन मामले की जांच कराने वाले तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा कहते हैं… ‘सही बात यह है कि खनन को लेकर ही दो समाजवादी पार्टी बनी। इस माइन्स (खदान) के झगड़े को लेकर ही परिवार में झगड़ा हुआ। और कुछ नहीं था, सिर्फ माइन्स माइन्स। और मुलायम सिंह जी ने इनको (अखिलेश को) राय दी थी कि तुम छोड़ दो खनन विभाग। तुम्हारे भले के लिए कह रहा हूं, तुम्हारे भविष्य के लिए कह रहा हूं। तब अखिलेश ने खनन विभाग छोड़ा था।’
तो देखा आपने… मुलायम परिवार में खनन को लेकर ही झगड़ा शुरू हुआ और खनन को लेकर ही पिता-पुत्र में समझौता भी हुआ। समझौते के बाद गायत्री प्रजापति ने मुलायम के साथ-साथ अखिलेश की भी सेवा शुरू कर दी। दोबारा मंत्री बनते ही गायत्री ने सारे लोकलाज छोड़ कर राज्यपाल के सामने ही मुख्यमंत्री अखिलेश के एक बार नहीं, तीन-तीन बार पैर छुए और सबको यह संदेश दिया कि दूसरे टर्म में वे अखिलेश के लिए क्या-क्या करेंगे। गायत्री ने मुलायम को भगवान कहा और उनके आगे दंडवत लेट गए। मुलायम भी बड़े प्रसन्न दिखे। उस समय भी सपा के ही नेता यह कहते फिर रहे थे कि गायत्री की पुनरवापसी समझौता-फार्मूले के तहत हुई है। वह समझौता फार्मूला क्या था, इसे आप अच्छी तरह समझते हैं। बेटे अखिलेश को अलर्ट करने वाले पिता मुलायम अपने चहेते गायत्री को भी बार-बार सतर्क कर रहे थे। आप थोड़ा फ्लैशबैक में चलें… अप्रैल 2016… पिछड़ों के सम्मेलन में मुलायम ने कहा था, गायत्री कागज पत्तर दुरुस्त कर लो, सीबीआई से मत डरना। अनुभवी मुलायम जानते थे कि अकूत कमाई का मामला कहां तक जाएगा।
गायत्री के लिए मुलायम के हृदय में इतना प्रेम रहा है कि वे गायत्री से मिलने जेल तक चले गए। पहले दिन गए तो मुलाकात की इजाजत नहीं मिली। मुलायम दूसरे दिन भी जेल पहुंच गए और गायत्री से मिल कर ही माने। जेल में एक घंटे से अधिक समय तक हुई इस एकांत मुलाकात के गहरे मतलब हैं। आज के डेवलपमेंट के प्रसंग में उस समय की मुलाकात के मतलब समझे जा सकते हैं।
खनन और आबकारी ऐसे दो महकमे हैं, जो सरकार को सबसे अधिक राजस्व देते हैं। इन्हीं दो महकमों में लूट सबसे अधिक है। खनन से इतना अकूत धन निकलता है कि सारे दबाव वहीं दम तोड़ देते हैं। धन के समुचित बंटवारे का समझौता ही तब एकमात्र विकल्प रह जाता है। अभी तो सीबीआई ने एक लॉकर और दो बैंक खाते जब्त किए हैं। लॉकर और बैंक खाते हमीरपुर की जिलाधिकारी रहीं बी. चंद्रकला के हैं। क्लर्क राम अवतार सिंह के घर से भी दो करोड़ रुपए और दो किलो सोना जब्त किया गया है। लेकिन अभी असली तिजोरियां तो खुलना बाकी हैं। चंद्रकला ने शीर्ष सत्ता के इशारे पर ई-टेंडर के प्रावधान को ताक पर रख कर मौरंग खनन के 60 पट्टे खनन माफियाओं को अवैध तरीके से बांट दिए थे। ऐसी अंधेरगर्दी पूरे प्रदेश में मची हुई थी।
अवैध खनन की अकूत कमाई का जब तिलिस्म खुलेगा तो अखिलेश, मुलायम के अलावा कई नेताओं के चेहरे नजर आएंगे। इसमें केवल समाजवादी पार्टी के नेता ही नहीं बल्कि कांग्रेस के भी नेता और उनके रिश्तेदार हैं, जिनके चेहरे हम आपको बाद में दिखाएंगे। इन नेताओं के रिश्तेदारों ने अखिलेश सरकार के खनन मंत्री गायत्री प्रजापति के गुर्गों के साथ मिल कर धंधे किए, अवैध कमाई के धन से दुबई तक जाकर कंपनियां खोलीं, स्कूल खोले, फिल्में बनाईं और हमारे-आपके पैसे से खूब गुलछर्रे उड़ाए। हम क्रमशः पर्दा उठाएंगे, आप देखते जाएं। नेताओं, माफियाओं, नौकरशाहों ने प्रदेश को किस तरह लूटा है उसका भी एक जायजा लेते चलते हैं।
उत्तर प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है। सोनभद्र में तो जंगल की एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर खनन-माफिया कब्जा जमाए बैठे हैं। सरकार झूठ कहती है कि भूमाफियाओं के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने सोनभद्र की वन-भूमि को खनन माफियाओं के कब्जे से मुक्त करने का राज्य सरकार को आदेश दे रखा है, लेकिन सरकार इस आदेश को कोई तवज्जो नहीं देती। प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और पड़ोस के जिले मिर्जापुर का भी यही हाल है। वाराणसी के जाल्हूपुर और उससे सटे इलाकों में वरुणा नदी के किनारे की सैकड़ों एकड़ जमीन पर माफिया कब्जा जमाए बैठे हैं। मिर्जापुर में पत्थर कटान से लोग आजिज हैं। आप याद करें तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय राजधानी से जुड़े नोएडा में अवैध खनन के खिलाफ अभियान चलाने वाली आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल को निलंबित कर दिया था। नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में अवैध खनन का सिलसिला निर्बाध रूप से जारी है। ग्रेटर नोएडा के जागनपुर, अफजलपुर, जागनपुर दोआबा, दनकौर, अट्टा गुजरान, गुनपुरा, फलेदा, टेकपुर, शेरगढ़, मेहंदी, घरबारा जैसे दर्जनों गांवों में अवैध खनन जारी है। वीभत्स स्थिति यह हो गई है कि गौतमबुद्धनगर यानी नोएडा में अवैध खनन के चलते यमुना नदी कई सौमीटर नोएडा की तरफ खिसक आई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर और मेरठ, अवध क्षेत्र में बहराइच, गोंडा और बलरामपुर पूर्वांचल में देवरिया, श्रावस्ती, कुशीनगर समेत तमाम जिले खनन माफियाओं के चंगुल में हैं। प्रदेश में अवैध खनन का सालाना कारोबार पांच हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। सरकारी नुमाइंदे ही बताते हैं कि हर साल करीब 20 करोड़ ट्रक माल अवैध रूप से इधर से उधर होता है। बरेली की बहेड़ी तहसील में किच्छा नदी, फरीदपुर में कैलाश नदी और सदर तहसील में रामगंगा नदी पर अवैध खनन बड़े पैमाने पर चल रहा है। मेरठ में धनैटा के जंगलों मेंअवैध खनन चलता ही रहता है। बुंदेलखंड में चंबल, नर्मदा, यमुना और टोंस नदियों के किनारे-किनारे भारी पैमाने पर अवैध खनन चल रहा है। फैजाबाद के गुप्तारघाट के नजदीकबना बांध अवैध खनन के कारण खतरे में है। हमीरपुर के सरीला तहसील के विरहट इस्लामपुर गांव की तलहटी से बेतवा नदी के किनारे-किनारे बेतहाशा अवैध खनन हो रहा है।
स्वाभाविक प्रश्न उठा कि अवैध खनन की जांच की प्रक्रिया में सीबीआई को ऐसा कौन सा ब्रह्मास्त्र हाथ लग गया कि आईएएस अफसर समेत दर्जनभर लोगों पर सीबीआई ने सीधे हाथ डाल दिया..! इसका जवाब यह है कि सीबीआई तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति को अपना ब्रह्मास्त्र बनाने में जुटी है। गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बनाने की कोशिश चल रही है। गायत्री ने सरकारी गवाह बनने की सहमति दे दी है। सीबीआई प्यादे से सुल्तान को धराशाई करने की जुगत में है। अखिलेश यादव को कसने के लिए अखिलेश के ही प्यादे का इस्तेमाल किए जाने का फार्मूला बना है। यह फार्मूला भले ही भाजपाई-थिंकटैंक से निकला हो, लेकिन दांव पर तो सीबीआई ही है।
सीबीआई को अखिलेश यादव के खिलाफ डायरेक्ट एविडेंस चाहिए। इसके लिए सबसे कारगर औजार गायत्री प्रजापति है, जिसकी मदद से सीबीआई डायरेक्ट एविडेंस हासिल करेगी। सरकारी गवाह बनने के एवज में प्रजापति को सजा में काफी रियायत मिल जाएगी। बलात्कार जैसे गंभीर मामले में गायत्री को सजा तय है। लेकिन सीबीआई के हाथ में बलात्कार पीड़िता के दो बयान हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 164 के तहत दिए बयान में पहले महिला ने बलात्कार में गायत्री की भूमिका से इन्कार किया था। बाद में 164 के तहत महिला का दोबारा बयान दर्ज कराया गया, जिसमें उसी महिला ने गायत्री को बलात्कार में शामिल होने की बात कही। गायत्री प्रजापति सरकारी गवाह बना तो महिला पहले बयान के आधार पर कोर्ट में अपना स्टैंड बदल सकती है। इसके अलावा खनन घोटाले में भी सरकारी गवाह होने के नाते उसे सजा में काफी रियायतें मिल जाएंगी। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 337 नई धारा 306 सजा में छूट या माफी का प्रावधान करती है। सीबीआई इसी बिसात पर लगातार काम कर रही है।
राजीव गांधी हत्याकांड की गुत्थियां सुलझाने वाले सीबीआई अफसर आर श्रीकुमार सरकारी गवाह बनने-बनाने के कानूनी प्रावधान के बारे में कहते हैं कि सरकारी गवाह खुद उस अपराध का एक प्रमुख अभियुक्त होता है। अपराध से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सबूत और तथ्य हासिल कराने के एवज में सरकारी गवाह की सजा में रियायत या छूट का कानूनी प्रावधान है। सरकारी गवाह के सबूत को ठोस माना जाता है, क्योंकि सबूतों की विश्वसनीयता को ठोस तथ्यों, दस्तावेजों और प्रमाणों से साबित कराना भी सरकारी गवाह की जिम्मेदारी होती है। अभियुक्त स्वेच्छा से भी सरकारी गवाह बन सकता है या एजेंसी भी उसे सरकारी गवाह बनने के लिए राजी कर सकती है।
गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बना कर अखिलेश यादव के खिलाफ उसका इस्तेमाल करेगी सीबीआई। सरकारी गवाह बनाने के बाद सीबीआई के लिए गायत्री की डायरी और अन्य सबूतों की प्रामाणिकता पर मुहर लग जाएगी, जिसकी उसे जरूरत है। गायत्री की डायरी में तमाम बड़ी-बड़ी हस्तियों से हुए लेन-देन का ब्यौरा लिखा है। गायत्री के सरकारी गवाह बनने की सहमति मिलने के बाद ही सीबीआई ने उसकी डायरी में दर्ज ब्यौरों की प्रामाणिकता हासिल करने की कवायद शुरू की। हाल में हुई छापेमारियों के पीछे उस कवायद का बड़ा रोल है। इसी कवायद में मुलायम परिवार के एक रिश्तेदार की संदेहास्पद भूमिका भी उजागर हुई है। मुलायम परिवार के इस सदस्य की अखिलेश से नहीं बनती, या ऐसा भी कह सकते हैं कि अखिलेश की इस सदस्य से नहीं बनती। बहरहाल, मुलायम परिवार के इस सदस्य का नाम हम बाद में बताएंगे। हां, अखिलेश सरकार में खनन विभाग के प्रमुख सचिव गुरदीप सिंह का नाम हम जरूर बता रहे हैं, जिनसे सीबीआई पहले भी पूछताछ कर चुकी है, अब उन्हें फिर से सीबीआई में सम्मन किया जाएगा। अखिलेश के प्रसंग में कुछ और अधिकारी सीबीआई में तलब किए जाने वाले हैं, जो उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में उनके सचिवालय में तैनात रहे हैं।
गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बनाने की सीबीआई की कोशिशों पर पूर्व लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा से पूछा कि क्या सीबीआई की यह कोशिश लॉजिकल है, तार्किक है? क्या यह लीगल है, कानूनी है? यूपी में अवैध खनन का मामला मेहरोत्रा साहब के कार्यकाल में ही परवान चढ़ा और सुर्खियों में रहा। इसलिए उनकी राय बेहद महत्वपूर्ण है। लोकायुक्त ने कहा… ‘इसे इल्लीगल (गैर-कानूनी) नहीं कह सकते क्योंकि कानून में इसका प्रोविजन तो है ही। लेकिन यह लॉजिकल (तार्किक) नहीं है। गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बनाना अनुचित है। इससे मौजूदा गवर्नमेंट की और इमेज गिरेगी। जैसे सीबीआई मामले में हुआ। जैसे ज्युडिशियरी के केस में आप देख रहे हैं रोज ही कुछ न कुछ हो रहा है।’
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को घेरने के लिए भाजपा कोई भी हथकंडा आजमाने के मूड में है। आपने देखा ही कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के दूसरे ही दिन केंद्र ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को फिर से हटा दिया। सीबीआई ने अवैध खनन मामले की जांच जुलाई 2017 में शुरू की। जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुलाई 2016 में ही सीबीआई को जांच करने का आदेश दिया था। आईएएस अफसर चंद्रकला समेत दर्जभर लोगों के ठिकानों पर की गई छापामारी दो जनवरी 2019 में दर्ज की गई तीसरी एफआईआर के आधार पर की गई। शामली और कौशाम्बी के खनन घोटाले की एफआईआर पिछले साल ही दर्ज हो चुकी है। अब फतेहपुर, देवरिया, सहारनपुर, सिद्धार्थनगर समेत कुछ अन्य जिलों के खनन घोटाले के मामले में एफआईआर दर्ज किए जाने की औपचारिकताएं पूरी हो रही हैं। ताजा एफआईआर में सीबीआई के डीएसपी केपी शर्मा लिखते हैं कि आईएएस बी. चंद्रकला ने 10 अन्य लोगों के साथ मिलकर आपराधिक षडयंत्र किया और बड़े पैमाने पर हमीरपुर में अवैध खनन करवाया। यह बड़ा संकेत है कि आपराधिक षडयंत्र (भारतीय दंड विधान की धारा 120-बी) के तहत कई और लोग कानून की परिधि में लिए जाएंगे। इनमें अखिलेश यादव भी हो सकते हैं।
खनन घोटाले की जांच करने वाली सीबीआई की टीम में शामिल अधिकारी कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ कई ठोस सबूत हैं और कई और प्राप्त हो रहे हैं। बस, उनके कोरोबोरेशन अर्थात पुष्टिकरण का काम चल रहा है। लोकायुक्त की जांच के दस्तावेज देखें तो उसमें पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पृष्ठ-भूमिका नजर आएगी। तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा कहते हैं… ‘खनन मामले में अखिलेश के खिलाफ भी एविडेंस मेरे सामने आए, लेकिन मुख्यमंत्री लोकायुक्त के विधिक अधिकार के बाहर होते हैं, इसलिए मैं उन्हें छू नहीं सकता था। सारे एविडेंस थे, लेकिन मेरे कार्यक्षेत्र में खनन राज्य मंत्री थे। खनन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव गुरमीत सिंह ने मुझसे कहा भी था कि मुझे बार-बार क्यों बुलाते हैं। जब मुख्यमंत्री आपके विधिक क्षेत्र में आते ही नहीं तो क्यों कर रहे हैं जांच। सीबीआई द्वारा जांच टेकओवर करने के बाद अब सारे एविडेंस सीबीआई के पास हैं। स्वाभाविक है अखिलेश यादव से जुड़े एविडेंस भी सीबीआई के पास हैं।’
तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा की जांच के दस्तावेज बताते हैं कि शीर्ष सत्ता के इशारे और मिलीभगत से प्रदेश में अवैध खनन का धंधा चल रहा था। उस समय अवैध खनन का कारोबार हर महीने करीब दो सौ करोड़ का था। इस कारोबार में शीर्ष सत्ता पर आसीन और शीर्ष सत्ता पर प्रभावी नेता, अफसर, कुछ पत्रकार और भूमाफिया लिप्त थे। लोकायुक्त ने इस मिलीभगत को ‘सिंडिकेट’ नाम दिया था। अवैध खनन के साथ ही रॉयल्टी और टैक्स चोरी भी की जाती थी। लोकायुक्त की अदालत में ऐसे तमाम सूबत आए थे जो अवैध खनन के जरिए राजस्व की भयावह लूट का पर्दाफाश करते थे। खनन से अरबों की कमाई होती थी, लेकिन सरकार को रॉयल्टी अत्यंत कम दी जाती थी। रॉयल्टी का चुराया हुआ धन नेता, खनन ठेकेदार, सिंडिकेट और अफसरों के बीच बंटता था।ट्रांसपोर्टेशन में भी लूट मची थी। खदान के गेट पर सिंडीकेट का बैरियर लगता था, जिसमें हर ट्रक से अवैध वसूली कर कच्ची रसीद दी जाती थी। यह रसीद ही ट्रक चालक के लिए परमिट का काम करती थी। पूरा तंत्र कच्ची रसीद देख कर ही ट्रकों को पास करता था। वसूली का हिस्सा सिंडीकेट, अफसर, थाने, चौकियों तक हर महीने पहुंचता रहता था।
इतने संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति कतई नहीं होनी चाहिए। ऐसी भयावह लूट पर अगर कार्रवाई न हो तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा। पूर्व लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा सही कहते हैं कि ‘निर्णायक स्थिति तब आएगी जब राजनीतिक दल एक दूसरे के दुश्मन हो जाएंगे। जिस दिन फिर हाथ मिला लिया तो कुछ नहीं होगा। निर्णायक स्थिति निर्भर करती है राजनीतिक इक्वेशंस पर। अगर इक्वेशंस ठीक हो गए तो कुछ नहीं होना और इक्वेशंस ठीक नहीं हुए तो बहुत भयानक परिणाम निकल सकता है।’
लगता है कि खनन घोटाले को लेकर सीबीआई वाकई गंभीर है। इसका संकेत तभी मिलने लगा था जब लखनऊ जोन के सीबीआई के संयुक्त निदेशक डॉ. जीके गोस्वामी को सीबीआई मुख्यालय दिल्ली में एंटी करप्शन इकाई के प्रमुख का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया। सीबीआई मुख्यालय के एंटी करप्शन यूनिट के प्रमुख वी मुरुगेशन को हटा कर ईमानदार और प्रखर छवि वाले आईपीएस अफसर डॉ. जीके गोस्वामी को बिठाए जाने के खास मतलब तो हैं ही। लखनऊ जोन के संयुक्त निदेशक डॉ. जीके गोस्वामी को एंटी करप्शन युनिट के प्रमुख का अतिरिक्त कार्यभार दिए जाने का यह सटीक समय था। डॉ. गोस्वामी के होते हुए सीबीआई गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह कैसे बनाती है और इसमें डॉ. गोस्वामी की क्या भूमिका होती है… यह देखना है।
सीबीआई छापेमारी की ‘इनसाइड-स्टोरी’… गायत्री को सरकारी गवाह बना रही सीबीआई
प्रभात रंजन दीन