नई दिल्ली। संसद के दोनों सदनाें से संविधान का 124वां संशोधन पास हो गया, जिसके बाद सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है. इस आरक्षण पर आरजेडी, AIADMK और AIMIM को छोड़कर कांग्रेस सहित सत्तापक्ष और विपक्ष के ज्यादातर दल समर्थन में नजर आए. इसी का नतीजा है कि यह बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में 48 घंटे के अंदर पास हो गया, लेकिन इस विधेयक के खिलाफ लोकसभा में 3 और राज्यसभा में 7 वोट पड़े थे. इसके पक्ष और विपक्ष दोनों के अपने-अपने राजनीतिक समीकरण हैं.
हाल ही में हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में सवर्णों की नाराजगी के चलते बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी है. ऐसे में मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सवर्ण समुदाय को साधने की लिए सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का कार्ड चला है. मोदी के इस दांव पर विपक्ष न चाहते हुए भी साथ खड़ा नजर आया. हालांकि आरजेडी नेता तेजस्वी ने याद इसके विरोध में खड़े होकर अपनी अलग सियासी लकीर खींचने की कोशिश की है.
मोदी सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में सामान्य वर्ग के गरीब लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का संविधान संशोधन विधेयक पेश किया. लोकसभा में इस विधेयक के समर्थन में 323 सांसदों ने मतदान किया जबकि विपक्ष में 3 वोट डाले गए थे. विपक्ष में वोट डालने (AIADMK) के एम थंबिदुरई, आईयूएमएल (IUML) के ईटी मोहम्मद बशीर और एआईएमआईएम (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी ने वोट डाले. वहीं राज्यसभा में बिल के पक्ष में 165 वोट पड़े जबकि 7 सांसदों ने इसके खिलाफ वोट किया. उच्चसदन में जो सात वोट खिलाफ पड़े हैं, इसमें आरजेडी और AIADMK व डीएमके के सदस्य शामिल थे.
आरजेडी नेताओं ने इस विधेयक का खुलेतौर पर विरोध किया और इसे दलित, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलने वाले आरक्षण को खत्म करने एक साजिश करार दिया था. उन्होंने कहा था कि 15 फीसदी सवर्ण आबादी को अगर 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने की कोशिश हो रही है तो फिर 52 फीसदी ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण के दायरे को बढ़ाया जाए. आरजेडी सांसद इस विधेयक का विरोध करते हुए लोकसभा से वॉकआउट कर गए, जबकि राज्यसभा में उन्होंने खिलाफ वोट किया.
दरअसल, आरजेडी इस विधेयक के विरोध में अपने को खड़ा कर दलित-ओबीसी आरक्षण के सबसे बड़े समर्थक के तौर पर अपने को स्थापित करने की कोशिश में है. आरजेडी ने इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी दलित और ओबीसी मतों को फोकस किया था. आरजेडी ने अपनी छवि कभी सवर्ण समर्थक के तौर पर नहीं रखा. ऐसे में इस विधेयक के विरोध के पीछ बिहार के दलित और ओबीसी मतदाता हैं. लालू प्रसाद यादव की राजनीति भी इसी के इर्द-गिर्द रही है.
वहीं, AIADMK और डीएमके के विरोध के पीछे भी राजनीतिक और जातीय समीकरण हैं. तमिलनाडु में आरक्षण का दायरा पहले से ही 69 फीसदी है, जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी शामिल हैं. इस आरक्षण के दायरे में तमिलनाडु की 87 फीसदी जनसंख्या आती है. इसका मतलब साफ है कि सूबे में सवर्ण समुदाय की आबादी बहुत कम है. AIADMK और डीएमके के विरोध के पीछे सूबे के 87 फीसदी लोग हैं. ऐसे में मोदी सरकार के 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण का समर्थन करके वो इनकी नाराजगी को मोल नहीं ले सकते हैं.