अरुण श्रीवास्तव
न तो मैं खिलाड़ी हूं, न खेल प्रेमी/प्रशंसक। खिलाड़ी परिवार से भी नहीं हूं। उम्र के किसी भी पड़ाव में खेल का प्रतीक चिह्न तक को हाथ नहीं लगाया। अपवाद स्वरूप शतरंज खेला और बैडमिंटन भी। पर मोहल्ले स्तर की प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं रहा। अखबार में नौकरी की पर खेल डेस्क पर नहीं रहा। भारत बैटिंग कर रही होती है तो देख लेता हूं पर बारीकियां नहीं मालुम। यह सब कमियां होते हुए भी भारत का हारना किसी भारतीय खिलाड़ी का हारना अखरता है। इस बार बैडमिंटन खेलते भारतीय शटलर लक्ष्य सेन को देखा और हारते हुए देखा स्वाभाविक रूप से दुखी हुआ कारण इधर कुछ वर्षों से मैं उत्तराखंड में रह रहा हूं। लक्ष्य सेन भी उत्तराखंडी हैं दुःख का कारण यह भी हो सकता है। दो तीन दिन पहले टीवी से पता चला कि विनेश फोगट जो की रेसलर है अपने आयु वर्ग में हार गई। खेल और चुनाव में हार जीत लगी रहती है ऐसा उपदेश राजनीतिक दल अक्सर देते हैं पर पचा नहीं पाते। मैं भी नहीं पचा पाया। कारण आमिर खान की फिल्म दंगल और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला खिलाड़ियों का सड़कों पर “दंगल” रहा।
चूंकि अखबार की नौकरी के कारण लेखन से जुड़ा हूं इसलिए अंदर का लेखक धिक्कारने लगा कि कुछ तो लिखो राजन…। लिखने को चला तो पता चला कि, विनेश ने खेल से संन्यास ले लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय बाद राजा महाराजा राज पाठ से संन्यास लेकर जंगल में चले जाते थे। राजनीति में नेतागण एक समय बाद राजनीति से संन्यास ले लेते हैं। अब राजशाही है नहीं इसलिए केंद्र बिंदु खेल और राजनीति। विनेश की संन्यास लेने की घोषणा चौंकाने वाली है। विनेश का खेल ढलान की ओर तो है नहीं कि वे खेल को अलविदा कह दें। विनेश की उम्र भी नहीं है संन्यास लेने की और फिटनेस भी चुस्त-दुरुस्त है। अब सवाल ये है कि फिर वे खेल से संन्यास क्यों ले रहीं हैं। तात्कालिक कारण खेल और खेल का स्तर नहीं खेल की आड़ में “खेल” करने का है। विभिन्न खेलों से जुड़ी शीर्ष महिला खिलाड़ियों ने अपने और अपने साथियों के शारीरिक शोषण है। इन खिलाड़ियों ने कुश्ती संघ के सर्वेसर्वा भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। आरोप इशारों में नहीं स्पष्ट रूप से लगाया गया। इन महिला खिलाड़ियों ने जो आरोप लगाए तथ्य रखे वो काफ़ी गंभीर थे। इन खिलाड़ियों में एक नाबालिग भी थी हालांकि बाद में उसे तोड़ लिया गया। अपनी मांगों के समर्थन में इन्होंने धरना-प्रदर्शन किया, लाठियां खाईं, सड़कों पर घसीटी गईं। यही नहीं ये खिलाड़ी अपने अपने पदक/मेडल गंगा में बहाने का निर्णय तक लिया और इसे अंजाम देने के लिए हरिद्वार के लिए निकल भी पड़ीं। यह तो अच्छा रहा कि किसान नेता नरेश टिकैत के हस्तक्षेप से इन्होंने अपना फैसला वापस लिया। पर बहुमत के घमंड में चूर सरकार टस्स से मस्स नहीं हुई। आखिर होती भी कैसे उन्नाव, कठुआ, हाथरस, बीएचयू में भी तो उसका रुख अड़ियल रहा। फिर महिला खिलाड़ियों के मामले में विनेश फोगाट ने बढ़ – चढ़ कर हिस्सा जो लिया था।
गौरतलब है कि विनेश ने फ्रीस्टाइल कुश्ती होने के तय नियमों का पालन किया। प्रतिद्वंद्वी से और न रेफरी से अभद्रता की। तकनीकी कारणों से वह डिस्क्वालीफाई हुईं जिसकी वो अकेली जिम्मेदार नहीं। खिलाड़ी का ध्यान मुख्य रूप से अपने खेल की तरफ होता है बारीकियां एक्सपर्ट बताते हैं। जिसे खिलाड़ियों को मानना ही होता है। क्योंकि मामला तकनीकी है इसलिए सवाल भी तकनीकी बिंदुओं पर ही। विनेश ने एक ही तीन तीन कुश्तियां लड़ीं। सबमें उम्दा प्रदर्शन रहा। किसी में 20-22 बार की विजेता को धूल चटाई तो कोई राउंड 5-0 से जीता। नियम के तहत हर प्रतियोगिता से पहले तमाम जांचों से गुजरना पड़ा होगा जिसमें वज़न भी है। फिर भारी भरकर दल में खिलाड़ियों से अधिक नहीं तो कम भी नहीं है अधिकारियों की फौज। इसी में कई डाइटीशियन हैं तो कई फिजियोथेरेपिस्ट। छोटे – मोटे डाक्टर तो होंगे ही। सुना है कि कोच भी हर क्षेत्र का छोटा विशेषज्ञ तो होता ही है। इन विशेषज्ञों की पूरी जिम्मेदारी है कि, खिलाड़ियों को क्या क्या खाना है,कब कब खाना है और कितना कितना खाना है। पानी कितना पीना है। इससे तो यही पता चलता है कि डाइटीशियन महोदय कितनी जिम्मेदारी से अपनी ड्यूटी कर रहे थे। वजन पर नज़र भी खिलाड़ियों से अधिक सपोर्टिंग स्टाफ की होती है और तब तो और भी जब इस तरह की घटनाएं घट चुकी हों। क्या इन सबने अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को निभाया या सरकारी खर्च पर पिकनिक मनाने गए हैं।
एक जानकारी के मुताबिक, 117 खिलाड़ियों का दल है तो 140 सपोर्टिंग स्टाफ है। यानी ‘एक हाथ ककड़ी नौ हाथ बिया’।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, टीम के कई सदस्य होटलों में भी रुके हुए हैं जिनका खर्च खेल मंत्रालय या उससे जुड़ी एजेंसियां उठा रही हैं। हालांकि भक्त मंडली इसे ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रही है कि, विनेश के कोच सहित अन्य निजी हैं जो सीधे खिलाड़ी से ही जुड़े हुए हैं। इसलिए तोहमत सरकार के ऊपर ठीक नहीं। पर अंतिम जिम्मेदारी तो सरकार की ही है। किसी न किसी नियम के तहत ही निजी सेवाओं की अनुमति दी गई होगी। प्रसंगवश जब कोच आदि विनेश फोगाट की निजी व्यवस्था के तहत था तो इन पर होने वाला खर्चा भी वही उठाती होंगी। अब जब वो खर्चा उठाती हैं तो संसद में खेल मंत्री का बयान कि सरकार विनेश पर 70 हजार रुपए से अधिक खर्च कर रही है। इसका मतलब नहीं समझ में आया। हर देश की सरकार अपने अपने खिलाड़ियों पर खर्च करती है। इस पर ताना मारने की क्या जरूरत है फिर किसी सदस्य ने पूछा भी नहीं था कि सरकार कितना खर्च कर रही है। गनीमत है कि खेल मंत्री यूपीए सरकार पर तोहमत मढ़ते – मढ़ते नेहरू जी तक नहीं पहुंचे कि हमारी सरकार इतना खर्च करती है नेहरू जी इतना खर्च करते थे। हर चीज़ का वक्त होता है। वक्त को भुनाने का का तरीका पीएम मोदी जी से सीखना चाहिए। जब फोगाट सेमीफाइनल जीतीं तब उन्होंने ट्वीट कर कोई बधाई नहीं दी और जब वे डिस्क्वालीफाई हो गईं तो सबसे पहले ट्वीट किया। फोन किया तो पीटी उषा को। उसी समय फोगाट से बात कर लेते। बताते चलें कि जब विराट कोहली की उंगली में चोट लगी थी तो पीएम मोदी ने ट्वीट कर दुःख जाहिर किया था। छोटे छोटे मौकों पर भी वे अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। उन्हें और सरकार को, खेल मंत्री और मंत्रालय को रस्मी नहीं कड़ा विरोध करना चाहिए। चीन को लाल आंखें नहीं दिखाई तो क्या ओलंपिक संघ को दिखा देना चाहिए। ऐसे ही संगठन से मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी जुड़ी हुई हैं उनकी क्या प्रतिक्रिया रही यह तो सामने आया नहीं, ओलंपिक में साथ गये सपोर्टिंग स्टाफ के एक बड़े अधिकारी का अंबानी परिवार से जुड़ा होना बताया जा रहा है।
यहां इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि विनेश फोगाट ने आशंका जताई थी कि उनके साथ किसी तरह की साजिश हो सकती है। हालात भी कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि साजिश हो गई है। होती भी क्यों न आखिर में उनके सुपुत्र ने चुनाव के दौरान कहा था कि दबदबा था, दबदबा है और दबदबा रहेगा। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि उनके खास आदमी अब भी ओलंपिक संघ में बड़े पद पर काबिज़ हैं और भाजपा ने बृजभूषण शरण सिंह की जगह उनके बेटे को लोकसभा का टिकट दिया और गोंडा की महान जनता ने उनके पुत्र को जिता भी दिया। आखिर में जिताती भी क्यों न? बृजभूषण शरण सिंह का दबदबा था, दबदबा है और दबदबा रहेगा।
एक बात विनेश फोगाट से समस्या का समाधान संन्यास नहीं है बल्कि समस्याओं से जूझना और जूझते रहना है। हिंदी साहित्य के एक बड़े साहित्यकार राहुल सांस्कृत्यायन की पुस्तक है ‘भागो मत दुनिया को बदलो’ और सूत्र वाक्य भी ” वीर भोग्या वसुंधरा “।