तमिलनाडु में एक ईसाई डॉक्टर द्वारा मंदिर के अंदर जूते पहनने पर विवाद खड़ा हो गया है। यह घटना वेल्लोर के पोगोई गाँव की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, महिला डॉक्टर कथित तौर पर उस टीम का हिस्सा थी, जो कोविड-19 का टीके लगाने के लिए गाँव आई थी। ग्रामीणों के बार-बार मना करने के बावजूद डॉक्टर ने अपने जूते नहीं उतारे। इस पर गुस्साए ग्रामीणों ने डॉक्टर का विरोध जताया और उनकी टीम से वैक्सीन लगवाने से इनकार कर दिया।
स्थानीय मीडिया के अनुसार, वेल्लोर सरकारी अस्पताल द्वारा पोगोई गाँव के मुथलम्मन मंदिर परिसर में टीकाकरण शिविर का आयोजन किया गया था। इस दौरान ईसाई डॉक्टर रेजिना को भी गाँव में कोरोना का टीका लगाने के लिए टीम के साथ भेजा गया था।
बताया जा रहा है कि मंदिर के अंदर टीकाकरण शिविर का आयोजन किया गया था। इसलिए टीम में शमिल सभी डॉक्टरों ने अपने जूते बाहर निकाल दिए थे, लेकिन रेजिना ने ग्रामीणों के कहने के बावजूद जूते नहीं उतारे। वह मंदिर के अपवित्र होने की परवाह किए बिना मंदिर के अंदर जूते पहनकर बैठ गई।
उसके इस व्यवहार से ग्रामीण आक्रोशित हो गए। जब ग्रामीणों ने उसे जूते उतारने के लिए कहा तो उसने कहा, “क्या कोई ऐसा बोर्ड है, जो कहता है कि किसी को मंदिर के अंदर जूते नहीं पहनने चाहिए?” बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, जब रेजिना ने अपने जूते उतारने से इनकार कर दिया, तो हिंदू ग्रामीणों ने मंदिर के सामने ही उसका विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि हम तब तक वैक्सीन नहीं लगाएँगे जब तक कि वह मंदिर से बाहर नहीं निकल जाती।
कोरोना के डर से जूते पहने: डॉक्टर
मामला तूल पकड़ने के बाद इलाके के हिंदू मोर्चा के नेता आदि शिव अपने समर्थकों के साथ मंदिर पहुँचे। उन्होंने ईसाई डॉक्टर से हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करने और उनसे जूते उतारने का अनुरोध किया, लेकिन डॉक्टर अपनी बात पर अड़ी रही।
माहौल खराब होता देख डॉ. रेजिना ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वह कोरोना के डर से अपने जूते नहीं उतार रही है। उसने कहा कि अगर वह नंगे पैर मंदिर में बैठेगी तो उसे कोरोना हो सकता है। हालाँकि, आक्रोशित ग्रामीणों ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया और उसे तुरंत मंदिर परिसर छोड़ने को कहा। गाँव वाले इस बात पर अड़े थे कि उसके जाने के बाद ही वे टीका लगवाएँगे।
बता दें कि ग्रामीणों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ईसाई डॉक्टर की ओर से वहाँ मौजूद अन्य नर्सों और डॉक्टरों ने उनसे माफी माँगी। इसके बाद ही ग्रामीण वैक्सीन लेने के लिए राजी हुए।