तालिबान अफगानिस्तान में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए चीन का सपोर्ट चाहता है। इसके लिए उसने चीन को यह भरोसा भी दिलाया है कि वह अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकियों को किसी दूसरे देश को निशाना बनाने के लिए नहीं करने देगा। तालिबान लीडर मुल्ला बरादर अखुंद ने एक डेलिगेशन के साथ चीन के विदेश मंत्री वांग यी से 27 जुलाई को मुलाकात की है।
तालिबान के डेलिगेशन ने बातचीत के दौरान चीन को कोरोना वायरस से लड़ाई में मदद और सहयोग के लिए शुक्रिया अदा किया है। अफगानिस्तान पर नजर रख रहे विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान अपने पाकिस्तानी हैंडलरों की मदद से चीन से अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए मदद चाहते हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के गेम प्लान से कुछ अहम पॉइंट…
1. दुनिया के डर को कम करना चाहता है तालिबान
मुल्ला बरादर ने कहा, ‘दोनों देशों के डेलिगेशन के बीच मुलाकात में राजनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को लेकर चर्चा हुई है। इसके अलावा अफगानिस्तान के मौजूदा हालात और शांति प्रक्रिया भी चर्चा का मुद्दा रहे।’ अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकियों को नहीं करने दिया जाएगा, इसका भरोसा चीन को दिलाया गया है। तालिबान ऐसा करके दुनिया के उस डर को कम करना चाहता है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन और अलकायदा जैसे संगठन असैनिक विवाद का फायदा उठाकर अफगानिस्तान में टेरर कैंप बना लेंगे और इनका इस्तेमाल कट्टर इस्लाम का विरोध करने वाले देशों के खिलाफ करेंगे।
2. चीन और अमेरिका जैसे देशों के मन में आशंका
तालिबान जब 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन कर रहा था, तब उसने अलकायदा, हरकत-उल-अंसार, हूजी बांग्लादेश जैसे आतंकी संगठनों को पनाह दी। लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन ने अफगानिस्तान में टेरर कैंप लगाए और दुनिया में ग्लोबल जिहाद को स्पॉन्सर किया। उधर, चीन इस बात को लेकर परेशान है कि उइगर चरमपंथी वाखा बॉर्डर के जरिए अफगानिस्तान में पनाह पा सकते हैं और चीन के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
3. तालिबान के गेम प्लान के कूटनीतिक मायने
पाकिस्तान: एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाकिस्तान तालिबान पर अपने प्रभाव का फायदा उठाकर अमेरिका से अपने संबंधों को बहाल करना चाहेगा।
तालिबान: चीन की मदद से अफगानिस्तान में अपने पैर जमाएगा और इस्लामाबाद के कंधों पर सवार होकर चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करेगा।
चीन: अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव को आगे बढ़ाएगा। अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देकर कोयला, तांबा और लोहा जैसे रिसोर्सेज का इस्तेमाल करेगा और सेंट्रल एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाएगा। अफगानिस्तान को चीन ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों तक पहुंचने के रास्ते के तौर पर देख रहा है।
4. तालिबान को डर किस बात का है
अमेरिका ने घोषणा कर दी है कि वह 31 अगस्त तक अफगानिस्तान छोड़ देगा। हालांकि, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पहले ही कह दिया है कि वह अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं हटा रहे हैं, लेकिन वहां उनका दखल जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि हमारा अफगानिस्तानी दूतावास बेहद मजबूत है और हम वहां विकास और सुरक्षा को बढ़ाने के लिए इकोनॉमिक सपोर्ट करते रहेंगे। ऐसे में तालिबान को यह भी आशंका है कि तालिबान को लेकर अमेरिका की सोच कहीं बदल न जाए, खासतौर से अफगानिस्तान में बड़ी तादाद में सिविलियंस की मौतों के बाद।
5. अफगानिस्तान सरकार का स्टैंड
अफगानिस्तान की सरकार भी देश के 85% इलाके पर कब्जा कर चुके तालिबान से बातचीत के लिए तैयार हो गई है। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इसके संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान के हालातों को सेना के जरिए ठीक नहीं किया जा सकता, इसलिए हमारी सरकार तालिबान से सीधे बातचीत करने के लिए तैयार है।