हाल के दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर हाफिज सईद के कथित बेटे के अपहरण और उसकी हत्या की खबरें ट्रेंड में रही. ‘पाकिस्तान में हाफिज सईद के बेटे का अगवा कर कत्ल’, ‘कराची में लश्कर-ए-तैयबा के सह संस्थापक को गोली मारी गई’ के दावों वाली पोस्ट से सोशल मीडिया पटा पड़ा रहा. सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं बल्कि मुख्यधारा के न्यूज प्लेटफॉर्म पर भी ऐसी ही खबरें छाई रहीं.
इंटेलिजेंस सूत्रों ने बताया कि इनमें से कई दावे या तो तथ्यात्मक रूप से गलत हैं या फिर एलन मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सोशल इंगेजमेंट बढ़ाने के लिए जानबूझकर इन्हें मैनिपुलेट किया गया है.
हाफिज सईद के काल्पनिक बेटे का काल्पनिक अपहरण
सोशल मीडिया एक्स पर जो सबसे ट्रेंडिंग टॉपिक रहा. वह लश्कर-ए-तैयबा के नेता हाफिज सईद के कथित बेटे के अपहरण और हत्या का है. यह दावा सबसे पहले 28 सितंबर को उस समय सोशल मीडिया पर किया गया, जब एक कथित भारतीय अकाउंट के जरिए यह दावा किया गया कि उन्हें पाकिस्तान के एक सूत्र से हाफिज सईद के बेटे के अपहरण की सूचना मिली है. देखते ही देखते इस पोस्ट पर लोगों ने बढ़-चढ़कर प्रतिक्रिया देनी शुरू की. इसके ठीक बाद इसी तरह के पोस्ट कई अकाउंट्स पर देखने को मिले.
इन भ्रामक सोशल मीडिया अकाउंट्स में हाफिज सईद के पिता के नाम कमालुद्दीन का इस्तेमाल कर कथित बेटे की नई पहचान गढ़ने के लिए किया गया, जिसके तहत उसके अपहरण और हत्या की काल्पनिक कहानी गढ़ी गई. इन दावों पर आधिकारिक बयान की गैरमौजूदगी और पाकिस्तान से आ रहे बयानों में विश्वसनीयता की कमी की वजह से इस काल्पनिक रिपोर्ट को मुख्यधारा की न्यूज मीडिया में जगह मिली.
सोशल मीडिया एक्स पर इन दावों की शुरुआती सफलता के आधार पर इसी तरह के अकाउंट के जरिए एक अलग तरह की कहानी गढ़ी गई. स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फ्जल के 30 साल के सदस्य मुफ्ती कैसर फारूक की ईधी सेंटर के पास गुलशन-ए-उमर मदरसा मस्जिद के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
एक्स पर वेरिफाइड अकाउंट्स की पोस्ट में ये दावा किया गया कि फारूक लश्कर-ए-तैयबा का वॉन्टेड सदस्य है. कुछ मामलों में यह कहा गया कि वह आतंकी संगठन लश्र का संस्थापक सदस्य था. हालांकि, ना ही सरकार की आतंकी सूची में और ना ही इंटरपोल की रेड कॉर्नर वॉरेंट लिस्ट में फारूक का नाम नहीं है.
हाफिज सईद ने 1986 में लश्कर-ए-तैयबा की स्थापना की थी, जिसका बाद में नाम बदलकर जमात-उद-दावा कर दिया गया. संगठन ने 1990 में कश्मीर में आतंकी घटनाओं के लिए एलईटी की मदद करनी शुरू की. आधिकारिक रिकॉर्ड और उम्र पर ध्यान दें तो फारूक ना तो कभी मोस्ट वॉन्टेंड आतंकी था और ना ही वह लश्कर का सह संस्थापक था. लश्कर-ए-तैयबा के सह संस्थापकों में जफाक इकबाल, अब्दुल रहमान मक्की, शेख अब्दुल्ला और अमीर हमजा के नाम आधिकारिक तौर पर दर्ज हैं.