कांग्रेस नीत UPA सरकार के दौरान CBI मुझ पर PM नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए दबाव डाल रही थी- Rising India 2023 में बोले अमित शाह

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक विस्फोटक खुलासा करते हुए कहा कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में केंद्रीय जांच एजेंसियां उन पर लगातार दबाव बना रही थीं कि वह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ले लें. ‘न्यूज18 राइजिंग इंडिया समिट’ में नेटवर्क18 समूह के ग्रुप एडिटर इन चीफ राहुल जोशी के साथ एक इंटरव्यू में अमित शाह ने सवाल उठाते हुए कहा कि उस वक्त यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम क्यों चुप रहे.

अमित शाह ने कहा कि जब यह सब हो रहा था तब ये सभी लोग मौजूद थे. चिदंबरम, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी सभी लोग मौजूद थे… मेरे साथ पूरी पूछताछ के दौरान यही कहा गया कि ‘मोदी का नाम दे दो, दे दो.’ लेकिन मैं उनका नाम क्यों देता? आज वही कांग्रेस अपने नसीब पर रो रही है. उन्हें अपने व्यवहार में यह दिखाना चाहिए. राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य ठहराने जाने और वर्ष 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्ष की एकजुटता संबंधी भ्रम को भी खारिज करते हुए शाह ने इस इंटरव्यू में कई अन्य मसलों पर अपने विचार रखे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के नई ऊंचाइयां छूने का भरोसा जताते हुए शाह ने यह भी कहा कि अगले साल होने वाले आम चुनाव में भाजपा और बड़ी जीत हासिल करेगी.

अमित शाह जी, राइजिंग इंडिया समिट में आने के लिए धन्यवाद. मैं कुछ समय लेकर यह बताना चाहता हूं कि हम यहां क्या करना चाह रहे हैं. हम पिछले चार-पांच साल से राइजिंग इंडिया समिट कर रहे हैं. इस साल की थीम थी राइजिंग इंडिया रीयल हीरोज. हम उन लोगों पर स्पॉटलाइट डालना चाहते थे जो आम आदमी हैं देश के. जो साधारण लोग असाधारण काम कर रहे हैं. इनको आपकी सरकार ने भी पद्म अवार्ड के जरिए महत्व दिया है. हमने ऐसे लोगों के साथ सीधी बात भी की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात रेडियो प्रोग्राम में इनमें से कई के साथ सीधी बात की है.

तो सबसे पहला सवाल राइजिंग इंडिया समिट पर यह होगा कि आप इंडिया राइजिंग को कैसे देखते हैं. पिछले नौ साल से आपकी सरकार है. और इसमें रीयल हीरोज का योगदान कैसे रहा है.

देखिए, विगत नौ साल में भारत ने हर क्षेत्र में दुनिया के सामने अपने आप को सिद्ध किया है. चाहे खेल का क्षेत्र हो, चाहे अर्थतंत्र का सुधार करना हो, चाहे डेमोक्रेसी का रीयल कोऑपरेटिव करना हो, डेमोक्रेसी को मजबूत भी करना हो, केंद्र और राज्य का संबंध बेहतर बनाकर इसे दुनिया के समक्ष रखना हो. अनुसंधान के क्षेत्र में भी हमने बहुत कुछ प्राप्त किया है. रक्षा और रक्षा के क्षेत्र में आत्म निर्भरता दोनों क्षेत्रों में शायद आजादी के बाद सबसे ज्यादा किसी एक दशक में काम हुआ है तो वो इस 10 साल के अंदर हुआ है. देश के आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में भी कश्मीर, नॉर्थ ईस्ट और वामपंथी उग्रवाद तीन हॉटस्पॉट को करीब करीब एक प्रकार से संपूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर पाए हैं. ढेर सारे क्षेत्रों में भारत ने बहुत अच्छा किया है. और उसका श्रेय संपूर्ण अर्थ में ग्राउंड पर काम करने वाले नागरिकों को जाता है. यह जरूर है कि ये तो पहले भी थे. परंतु व्यवस्था सुधरती है तब भी अगर हौसले के साथ रियल हीरो आगे नहीं आते हैं तो ये परिणाम नहीं आता है. मुझे पूरा भरोसा है अब इस नींव पर मोदी ने हमारे सामने जो स्वप्न रखा है. 2047 में जब आजादी के 100 साल पूरे होंगे तो भारत विश्व में हर क्षेत्र में नंबर वन होगा, सर्व प्रथम होगा. इसको हम निश्चित ही सिद्ध करेंगे.

बहुत धन्यवाद आपका. सवालों का सिलसिला शुरू करता हूं. आपसे फिर कुछ महीने बाद मुलाकात हो रही है और एक दिलचस्प समय पर मुलाकात हो रही है. चुनाव आ रहे हैं और इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा, जो सबसे गरम मुद्दा है वो है राहुल गांधी का मुद्दा. तो मेरा पहला सवाल होगा राहुल गांधी पर. सूरत की कोर्ट से उनका कंविक्शन हुआ और उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई और वह तुरंत डिस्क्वालिफाई भी हो गए और आप लोगों ने जरा भी देर नहीं की उनको बेघर करने में. तो इसको आप कैसे देखते हैं. क्या आपको लगता है कि इससे एक सिंपैथी का माहौल भी बन सकता है राहुल गांधी जी के लिए.

देखिए, राहुल जी अगर आपने इस पूरे कानून को और सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट की स्डटी की होती तो आप यह सवाल ही नहीं पूछते. खैर अच्छा ही हुआ कि पूछ लिया क्योंकि बहुत बड़ी भ्रांति फैलाने का प्रयास कांग्रेस के नेता कर रहे हैं. मैं आपके चैनल के माध्यम से देश की समग्र देश की जनता को रियलिटी बताना चाहता हूं. हमारा जो कानून था, उसमें प्रावधान था कि किसी भी व्यक्ति को अगर दो साल की सजा मिलती है तो उसे तीन माह का समय मिलेगा अपनी सजा को स्टे कराने का. सजा को स्टे कराना और दोष को स्टे कराना दो अलग-अलग चीजें हैं. तो दोष को भी स्टे कराना है और सजा को भी स्टे कराना है. और हमारे कानून में यह प्रावधान ही नहीं है कि जिस अदालत ने किसी भी व्यक्ति को दो साल या उससे अधिक की सजा दी है तो वो उस दोष पर रोक लगा सकती है. कंविक्शन स्टे नहीं हो सकता. सेंटेंस हो सकता है. अब एक लीली थॉमस वर्सेस गवर्मेंट ऑफ इंडिया का जजमेंट आया था 2013 में. उस जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने तय कर दिया कि तीन महीने आपको नहीं मिलेगें. क्यों देना है. चुने हुए प्रतिनिधि क्यों विशेष प्रायोरिटी इंज्वाय करे. जिस क्षण से आपको सजा होती है उसी क्षण से आपकी सदस्या रद्द हो जानी चाहिए. यह सुप्रीम कोर्ट का वर्डिक्ट है. 2013 का है जब राहुल जी की माता जी के नेतृत्व में यूपीए चलता था. हम तो तब दूर-दूर तक नहीं थे. अब एक जजमेंट आने के बाद हम तो आज भी नहीं सुधारना चाहते हैं इस जजमेंट को. मगर कांग्रेस सरकार उसे सुधारना चाहती थी क्योंकि वह लालूजी को बचाना चाहती थी. एक ऑर्डिनेंस लेकर आए मनमोहन सिंह जी. उसे नॉनसेंस करकर श्रीमान राहुल गांधी ने पूरे देश के सामने अपनी ही सरकार के ऑर्डिनेंस को फाड़ दिया. अब उनके फाड़ने के बाद किसकी मजाल थी कांग्रेस सरकार में कि उसे कानून का शक्ल दे. विड्रॉ कर लिया गया. आज अगर वह कानून होता तो वह शायद बच जाते. इतनी हायतौबा नहीं करनी पड़ती. और दूसरी बात उन्होंने अब तक अपने दोष पर रोक लगाने के लिए अपील भी नहीं की है. यह किस प्रकार की एरोगेंसी है. आपको फेवर चाहिए. आप मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बने रहना चाहते हो. मगर अदालत के सामने नहीं जाओगे. यह किस प्रकार की एरोगेंसी है. कहां से जेनरेट होती है. और ये श्रीमान पहले नहीं हैं. अब तक राजनीति में उनसे ज्यादा बड़े पद पर रहने वाले और उनसे भी ज्यादा अनुभव रखने वाले ढेर सारे नेता इसी प्रावधान के तहत अपनी सदस्या गंवा चुके हैं. मैं तीन नाम तो अभी ही गिना सकता हूं- श्रीमान लालू प्रसाद यादव सबसे पहला भोग बने. उसके बाद जयललिता बनीं फिर राशिद अल्वी बने. ऐसे 17 लोग राहुल गांधी सहित. सबकी सदस्यता गई है. किसी ने काले कपड़े नहीं पहने, किसी ने हायतौबा नहीं की. क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट का कानून है. कांग्रेस वाले कहते हैं कि गांधी फैमिली के लिए अलग कानून बने. मैं देश की जनता से पूछना चाहता हूं कि किसी एक परिवार के लिए इस देश में अलग कानून बनना चाहिए क्या. यह देश की जनता को तय करना है. और फिर कुछ भी होता है तो मोदीजी पर आरोप करना. लोकसभा स्पीकर पर आरोप मढ़े जा रहे हैं. अरे भाई कानून पढ़ो. वो तो पढ़ नहीं पाएंगे शायद समझ भी नहीं पाएंगे. लेकिन कांग्रेस के बड़े-बड़े वकील जो राज्यसभा में बैठे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि लोकसभा स्पीकर के हाथ में कुछ भी नहीं है. लोकसभा स्पीकर शायद दो दिन के बाद भी अगर कुछ कर दे तो वो दो दिन तक आपने एज ए मेंबर ऑफ पार्लियामेंट में जो भी वक्तव्य दिया है उसे लोकसभा को इरेज करना पड़ता. सदस्यता उस क्षण से जाती है, जिस क्षण से सजा होती है.

पर घर से तुरंत निकाल दिया… घर थोड़े दिन दे सकते थे. थोड़ दिन रुक जाते.

इससे फायदा क्या होता….

नहीं सिम्बॉलिक है… बैर की राजनीति बोल रहे हैं ये. इसलिए मैं सवाल पूछ रहा हूं.

नहीं, सिम्बॉलिक तो ये है कि फॉर व्हाट स्पेशल ट्रीट. आप बता सकते हैं कि क्यों स्पेशल फेवर करना चाहिए. जब संज्ञान में आए उसके बाद तुरंत कदम उठाने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है. ऑनलाइन जजमेंट भी पहुंच गया. याचिका दायर करने वाले ने पहुंचा दिया. और लोकसभा स्पीकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना क्यों करे. क्योंकि वो गांधी परिवार हैं… इसलिए स्पेशल फेवर करना चाहिए. आप हमें सवाल पूछ रहे हैं. आप उनको सवाल क्यों नहीं पूछ रहे हैं भाई कि आप कोर्ट में क्यों नहीं गए. बताइए आपको पूछना चाहिए या पूछना चाहिए कि नहीं.

मुझे लगता है कि वो मामले को आगे ले जाना चाहते हैं? वापस जहां पर मोदी जी…

अब राहुल गांधी ये कह रहे हैं कि कर्नाटक में जो वह पहली रैली करेंगे वो कोलर में करेंगे जहां उन्होंने यह अपशब्द मोदीजी के लिए कहे थे. तो इस बात को आगे बढ़ाना चाहते हैं. क्या उनको लगता है कि इससे उनको सहानुभूति मिलेगी. क्या वह इसे मोदी बनाम राहुल बनाना चाहते हैं कर्नाटक में.

देखिए, अगर वो उसी जगह से भाषण करना चाहते हैं तो हम कैसे रोक सकते हैं. डेमोक्रेसी में हर व्यक्ति जो चाहे वह बोल सकता है. मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है. वह मोदी बनाम राहुल करना चाहते हैं तो भी हमें कोई आपत्ति नहीं है. भाजपा के लिए जीतने की इससे बड़ा कोई फॉर्मूला ही नहीं हो सकता.

देखिए, उन्होंने मोदी जी को नहीं कहा है. पूरा भाषण सुन लीजिए. मेरे इंटरव्यू के पहले चलाकर भी दिखाइएगा ताकि लोग भी सुनें. उन्होंने मोदी समाज मतलब तेली समाज के सब लोग क्यों चोर होते हैं. उन्होंने एग्जैक्ट ऐसा नहीं कहा. उन्होंने कहा कि सारे चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है. ये कहा है. तो उन्होंने ओबीसी समाज का जानबूझकर अपमान किया है. इसमें पार्टी के बनाने का मामला ही है. उन्होंने बोला ही वही है. और जो महाशय इसके खिलाफ कोर्ट गए उनका कंटेंशन भी वही है और जजमेंट का सार भी वही है.

आगे ये भी कह रहे हैं कि मैं कोई सावरकर नहीं हूं कि माफी मांगू. गांधी माफी नहीं मांगते. इसको आप कैसे देखते हैं.

देखिए, उनको माफी नहीं मांगनी है तो बेल भी जमा नहीं कराना था. महात्मा गांधी ने किया था ऐसा एक बार. अंग्रेजों ने जब उनको सजा करी तो उन्होंने कहा कि मैं माफी नहीं मांगूंगा. पेनाल्टी नहीं भरूंगा. दंड भी नहीं करूंगा. सब कर दिया. तो उनको भी करना चाहिए था. मेरी जानकारी है कि इन्होंने 15 हजार का मुचलका भरकर बेल लिया है. और दूसरा, माफी नहीं मांगनी तो मत मांगिए. मगर सावरकर जी के लिए ऐसे शब्द नहीं कहने चाहिए. मैं इतना कह सकता हूं कि इस देश के लिए ज्यादा से ज्यादा यातनाएं सहने वाले व्यक्तियों में से एक वीर सावरकर रहे. आजादी के पूरे संग्राम के अंदर एक ही व्यक्ति ऐसे है जिन्हें एक साथ दो जन्म तक की सजाएं हुई है. ऐसे वीर हुतात्मा के लिए आज इस प्रकार के शब्द का प्रयोग करना ठीक नहीं. शायद उनको हम पर भरोसा न हो मगर अपनी दादी के भाषण सावरकरजी के बारे में पढ़े लें कि इंदिरा जी क्या कहती थीं. वो पढ़ लेंगे तो उनको मालूम पड़ेगा. उनके साथी ही उनको कह रहे हैं, शिव सेना, शरद पवार सब उनको एडवाइस कर रहे हैं.

देखिए राहुल जी मैं जब से राष्ट्रीय राजनीति में आया तब से यह सवाल आ रहा है. मुझे बताओ दोनों साथ में आ गए. कोई भी प्लेटफॉर्म पर आ गए. बंगाल में क्या करेंगे. केजरीवाल जी क्या दिल्ली की सीट राहुल जी के लिए छोड़ देंगे. साथ में आने का क्या मतलब है. सब एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. क्या साथ आएंगे. एक बात साफ है कि मोदी का विरोध करने के लिए सब साथ में दिखाई दे रहे हैं. अब ठीक ही है… हमें कोई आपत्ति नहीं है.

अब इसी बात को लेकर सारा विपक्ष कह रहा है कि देश में लोकतंत्र खतरे में है. अब इस तरह का नैरेटिव वेस्टर्न मीडिया के भी कुछ सेक्शन में भी उठ जाता है. तो क्या इस डिस्क्वालिफिकेशन को मुद्दे को लेकर आपको लगता है कि ऐसे नैरेटिव को बल मिलेगा.

अमित जी… थोड़ा आने वाले चुनाव कर्नाटक के चुनाव की ओर देखते हैं. कुछ प्रदेश के चुनाव इस साल होने हैं. बड़े चुनाव हैं… कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान… ये बड़े चुनाव हैं और 2024 से पहले इसे सेमीफाइनल माना जा रहा है. तो आप कर्नाटक के चुनाव कैसे देखते हैं. आज आपको क्या लगता है, वहां पर स्थिति क्या है. कितनी सीटें देते हैं आप. यह सवाल हर बार मैं आपसे पूछता हूं.